बुधवार, 17 अप्रैल 2019

भारत में Google ने TikTok App को किया ब्लॉक


भारत में Google ने TikTok App को किया ब्लॉक

गूगल ने मद्रास हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए भारत में बेहद लोकप्रिय वीडियो ऐप्प टिकटॉक (TikTok) को ब्लॉक कर दिया है. इसका मतलब हुआ कि अब गूगल के प्ले स्टोर ऐप्प से टिकटॉक वीडियो ऐप्प को डाउनलोड नहीं किया जा सकता है. टिकटॉट को लेकर यह कदम उस फैसले के बाद आया है, जिसमें हाईकोर्ट ने चीन की कंपनी Bytedance Technology के उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था, जिसमें कंपनी ने कोर्ट से टिकटॉक ऐप्प पर से बैन खत्म करने को कहा था. भारत टिकटॉक का का एक बड़ा बाजार है और बैन लगाने से बाजार प्रभावित हो जाएगा.

मद्रास हाईकोर्ट ने 3 अप्रैल को केंद्र से टिकटॉक पर बैन लगाने को कहा था. साथ ही कोर्ट ने कहा था कि टिकटॉक ऐप्प पॉर्नोग्राफी को बढ़ावा देता है और बच्चों को यौन हिंसक बना रहा है. बता दें कि टिकटॉप पर अश्लील सामग्री परोसने का आरोप है.


टिकटॉक ऐप्प पर यह फैसला तब आया जब एक व्यक्ति ने इस पर प्रतिबंध के लिए एक जनहित याचिका दायर की. आईटी मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, केंद्र ने उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए Apple और Google को एक पत्र भेजा था. सरकार ने गूगल और एपल को मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश का पालन करने को कहा है जिसमें लोकप्रिय मोबाइल एप टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाया है. सरकार ने गूगल और एपल को मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश का पालन करने को कहा है जिसमें लोकप्रिय मोबाइल एप टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाया है.


भारत में टिकटॉक ऐप्प अभी भी ऐप्पल के प्लेटफार्मों पर मंगलवार देर रात तक उपलब्ध था, लेकिन Google के प्ले स्टोर पर उपलब्ध नहीं था. Google ने एक बयान में कहा कि यह इस ऐप्स पर टिप्पणी नहीं करता है लेकिन स्थानीय कानूनों का पालन करता है.


हालांकि, गूगल के इस कदम पर टिकटॉक की ओर से कोई बयान नहीं आया है. टिकॉटक यूजर्स को स्पेशल इफेक्ट के साथ वीडियो बनाने और शेयर करने की अनुमति देता है. यह भारत में काफी पॉपुलर हो गया है मगर कुछ राजनेताओं ने इस ऐप्प की आलोचना की है और उनका कहना है कि इसका कंटटे अनुचित होता है. फरवरी में एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अब तक 240 मिलियन लोगों द्वारा इस ऐप्प को डाउनलोड किया जा चुका है.


टिप्पणियां


मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि मीडिया रिपोर्टों से स्पष्ट है कि इस तरह के मोबाइल एप के जरिए अश्लील और अनुचित सामग्री उपलब्ध कराई गई है. अदालत ने मीडिया को टिकटॉक से बने वीडियो का प्रसारण नहीं करने का भी निर्देश दिया था. बता दें कि टिकटॉक एप का मालिकाना हक चीन की कंपनी बाइटडांस के पास है. यह एप लोगों को छोटे वीडियो बनाने और उन्हें साझा करने की सुविधा देता है. टिकटॉक ने मंगलवार को बयान में कहा कि उसे भारतीय न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है.


टिकटॉक ऐप्प पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिलहाल हाई कोर्ट मामले कोर्ट सुनवाई कर रहा है और अब अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी. मदुरै हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और याचिका में हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है. दरसअल मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह वीडियो ऐप टिक टॉक की डाउनलोडिंग पर बैन लगाए. साथ ही कोर्ट ने मीडिया को निर्देश दिया है कि वो इसका प्रसारण ना करे. 
(इनपुट रॉयटर्स)
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सोमवार, 25 मार्च 2019

शहीद भगत सिंह और पत्रकार पुरोधा शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जी के आपसी सम्बन्धों का इतिहास - अजीत सिंह चौहान

शहीद सरदार भगत सिंह को 23मार्च 1931 अंग्रेजों ने फाँसी दी। 
इस फांसी के विरोध में जवाहरलाल नेहरू देशभर में बन्द बुलाया, बन्द के दौरान कानपुर में दंगा हुआ जिसमें 25मार्च 1931 को प्रताप संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी जी शहीद हुए। 
दोनों शहीदों के आपसी सम्बन्धों का इतिहास 
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✍ अजीत सिंह चौहान


( लेखक अजीत प्रताप सिंह चौहान की गणेश शंकर विद्यार्थी जी पर " चंपारण सत्याग्रह का गणेश " नामक पुस्तक प्रतिष्ठित लोकहित प्रकाशन से प्रकाशित हो चुकी है 
 लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के शोध छात्र हैं तथा व इनकी स्नातक की शिक्षा प्रयागराज स्थित इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है ,व लेखक फतेहपुर जिले के खागा क्षेत्र के रहने वाले हैं )

अमेजन से ऑनलाइन खरीद सकते हैं " चंपारण का सत्याग्रह "
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जब सरदार भगत सिंह कॉलेज में ही पढ़ रहे थे तभी पिता सरदार किशन सिंह और घर वाले शादी का प्रबंध करने लगे। पंजाब केसरी रणजीत सिंह के वंशज मानावाला गाँव के एक खाते-पीते परिवार की एक कन्या से विवाह भी तय हो गया, यही नहीं रस्म अदायगी का दिन भी निश्चित हो गया। किशन सिंह पुत्र को तिलक जैसा क्रांतिकारी बनाना चाहते थे जो कांग्रेस से जुड़कर आजादी के सार्वजनिक आंदोलन को भारत के आंगन में उतारे। वह नही चाहते थे कि भगत सिंह फांसी पर झूले। वे अपने छोटे भाई अजीतसिंह, अपने मित्र रासबिहारी बोस और अपने पुत्रवत प्रिय करतार सिंह सराभा के कार्यों का परिणाम देख चुके थे। हालांकि उन्होंने गदर पार्टी के काम में आर्थिक सहायता दी थी, पर सराभा से साफ कह दिया था कि तुम्हारा गदर आंदोलन जिस खुले रूप में संगठित किया जा रहा है, वह भारत में सफल नहीं हो सकता क्योंकि यह अमेरिका नहीं है। चाचा अजीत सिंह के जीवन से प्रेरित भगतसिंह विवाह नहीं करना चाहते थे, उन्होंने अपनी चाचियों का हाल देखा था। पर दिल न दुखे इस ख्याल से बाबा के पूछने पर चुप्पी साध लेते थे मगर अपने पिता किशन सिंह को यह बात बहुत ही साफ ढंग से कह दिया था कि वह शादी नही करना चाहते। किसी ने इनकी एक न सुनी, अकस्मात एक दिन घर वालों ने देखा भगत सिंह गायब है, किशन सिंह को घर की अपनी मेज की दराज़ में एक पत्र, भगत सिंह का मिला।  जिसमें उन्होंने अपने घर छोड़ने का कारण बताया था। 
पत्र-

        पूज्य पिताजी
        नमस्ते।
        
        मेरी जिंदगी मकसदे आला (उच्च उद्देश्य) यानि आजादी-ए-हिंद के असूल (सिद्धांत) के लिए वक्फ़ (दान) हो चुकी है। इसलिए मेरी जिंदगी में आराम और दुनियावी खाहशात (सांसारिक इच्छाएं) बायसे कशिश (आकर्षक) नहीं है।
        आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था, तो बापूजी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमत-ए-वतन (देश सेवा) के लिए वक्फ़ कर दिया गया है। लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा कर रहा हूँ। 
उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएंगे।
                                             
                                                       आपका ताबेदार
                                                           भगत सिंह

शचीन्द्रनाथ सान्याल ने अपनी पुस्तक 'बंदी जीवन' में लिखा कि "इस दौरान भगत सिंह से उनका संपर्क था, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में इस पार्टी में पंजाब के युवाओं को अपने संगठन में शामिल करने के प्रयास में सान्याल भगत सिंह को भी शामिल करना चाहते थे - उन्हें जब भगत सिंह ने बताया कि घर वाले उनकी शादी करने पर तुले हुए हैं तो उन्होंने फौरन उनको लाहौर छोड़कर कानपुर चले जाने को कहा।" 
भगत सिंह क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से मिलने तथा सहायता प्राप्त करने जापान जाना चाहते थे, इसी उद्देश्य से वह लाहौर से कानपुर पहुंचे, और कानपुर में भगत सिंह रामनारायण बाजार में रहते थे। और अख़बार बेचकर अपने खाने-पीने का इंतजाम  करते थे। यह बाजार बंगाली लोगों का गढ़ था इतने बंगालियों के बीच में एक सिख का रहना किसी के भी संदेह का कारण बन सकता था। पुलिस के कुछ सिपाही भी उनके मकान के आस-पास टोह लेते दिखाई दिए थे। ऐसे में भगत सिंह को जगह बदलने की आवश्यकता थी। जल्द ही उन्हें भी प्रताप प्रेस के विषय में पता चल गया जो देशभक्त नवयुवकों के लिए अपना घर सा था। 'प्रताप' संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी के पास जो पहुंचता उसे यही अनुभव होता कि विद्यार्थीजी सबसे अधिक मुझ पर ही विश्वास करते हैं और मेरे नजदीक है। भगत सिंह ने विद्यार्थी जी से भेंट की, अनजान युवक ने देश सेवा करने का अपना दृढ़ निश्चय प्रकट किया, और जीवन निर्वाह के लिए कुछ काम चाहा। सहायता या दान लेने से साफ इंकार कर दिया। विद्यार्थीजी ने युवक में, प्रतिभा, आत्मविश्वास और एक अजीब धुन देखी, उन्होंने उसे प्रेस में काम दिया था, प्रताप प्रेस में भगत सिंह ने अपना परिचय  'बलवंत सिंह' दिया था।
 कानपुर उन दिनों उत्तर भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के सूत्र संचालन का केंद्र था। अनुशीलन समिति के एक प्रमुख संगठन कर्ता के रूप में श्री योगेश चटर्जी 'राय महाशय' के नाम से संगठन कर रहे थे। प्रांत में शचीन्द्रनाथजी सन्याल ने अपना संगठन शुरू कर दिया था तथा कुछ अन्य लोग भी स्थान-स्थान पर अपने छोटे-छोटे गुट बनाने लगे थे। पर कुछ दिनों बाद सब लोग "हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" नाम की संस्था के नीचे एकत्र होकर काम करने लगे। राय महाशय कानपुर के कुरसवां में एक मकान लेकर रहने लगे, भगत सिंह इन्हीं दिनों कानपुर आए और यहां उनका सम्बंध इसी क्रांतिकारी संस्था से हो गया।  क्रांतिवीर चन्द्रशेखर 'आजाद'  से भगत सिंह का परिचय प्रताप प्रेस में ही इसी दौरान विद्यार्थीजी ने करवाया था। यह समय भगत सिंह के जीवन के लिए निर्णायक बना, इसी समय से वह भारत की एक सुसंगठित क्रांतिकारी संस्था के सदस्य बने और जो आगे चलकर भारतीय क्रांति के इतिहास का एक अध्याय बना।
'प्रताप' में भगत सिंह की स्थायी रूप से नियुक्ति नहीं हुई। आवश्यकता के अनुसार खर्च मिल जाता था, पर यह रकम किसी भी दशा में 20आना माहवारी से अधिक नहीं पहुंची। उन्हीं दिनों बब्बर अकालीयों के खून से अंग्रेजों ने अपने हाथ लाल किए थे। होली के त्योहार के दिन थे। 'प्रताप' साप्ताहिक में "खून की होली" शीर्षक से छपा लेख सरदार भगत सिंह का लिखा हुआ था। 'प्रताप' की आर्थिक दशा स्वयं ही खराब थी। सरकार उसे किसी भी तरह बंद कर देना चाहती थी। तीन बार उसकी जमानत ज़ब्त की जा चुकी थी। रायबरेली में हत्याकांड करने वाले वीरपाल की मुख़ालफ़त करने और किसानों का पक्ष लेने के कारण मानहानि का मुकदमा चला। विद्यार्थीजी को हजारों रुपए जनता से लेकर मुकदमें में फूंकना पड़ा। जेल भुगतनी पड़ी। दैनिक प्रताप का संस्करण बन्द करना पड़ा। दशा यहां तक बिगड़ी कि डाक्टरों ने स्वयं विद्यार्थीजी को स्वास्थ्य खराब हो जाने की वजह से पहाड़ में जाने की सलाह दी थी, पर धन की कमी के कारण वे पहाड़ न जाकर फूलबाग में बैठकर अपना काम करते थे।
कानपुर में भगत सिंह का परिचय अन्य सदस्यों से हुआ -  जिसमें बटुकेश्वर दत्त के अतिरिक्त सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, अजय घोष, विजय कुमार सिन्हा आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है।
बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह को बांग्ला भाषा में पारंगत किया था। 1924 में भयानक भरी गंगा में जीवन की पर्वाह न करते हुए अपने अन्य साथियों के साथ नजदीकी गांव में रहने वाले किसानों को बचाने और उन्हें सहायता पहुंचाने का काम किया।
 विद्यार्थीजी ने अलीगढ़ जिले के शादीपुर गाँव के नेशनल स्कूल में भगत सिंह को हेडमास्टर बनाकर भेजने का निश्चय किया और, रहने की व्यवस्था वहां के स्थानीय नेता ठाकुर टोल सिंह के घर कर दी गई। इसी दौरान भगत सिंह के पारिवारिक मित्र रामचन्दर को नेशनल कॉलेज में भगत सिंह के सहपाठी रहे जयदेव गुप्ता का पत्र मिला। पत्र में जयदेव गुप्ता ने रामचन्दर को अपने साथ कानपुर चलने के लिए राजी किया। दोनों कानपुर पहुंचे और विद्यार्थी जी से मिले। वरिंदर संधू के अनुसार "तब तक विद्यार्थीजी को यह खबर नहीं थी कि उनके अखबार में काम करने वाला 'बलवंत' वास्तव में क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह का भतीजा और सरदार किशन सिंह का पुत्र भगत सिंह है। भगत सिंह के दोनों मित्रों ने विद्यार्थीजी को भगत सिंह के विषय में व दादी की गंभीर बीमारी और पोते से मिलने की इच्छा के बारे में बताया।" जयदेव के अनुसार भगत सिंह छुप रहे थे और उन दोनों (उन्हें और रामचन्दर) से नहीं मिले। इसलिए इन दोनों ने विद्यार्थीजी के पास भगत सिंह के लिए उनकी दादी की बीमारी का संदेश छोड़ा और साथ में यह आश्वासन भी था कि लौटने पर कोई उनसे शादी के लिए जिद नहीं करेगा। दोनों लाहौर लौटकर किशन सिंह से आग्रह किया कि वह अपने मित्र मौलाना हसरत मोहानी को पत्र लिखे जिसमें भगत सिंह से साफ-साफ वायदा किया गया हो कि उनसे शादी के लिए नहीं कहा जाएगा। मौलाना हसरत मोहानी ने भी विद्यार्थीजी से आग्रह किया कि वह भगत सिंह को घर वापसी के लिए राजी करें। इससे पहले किशन सिंह ने 'वंदेमातरम' समाचार पत्र में विज्ञापन छपवाया था कि "भगत सिंह, जहां भी हों, लौट आएं।"  लाहौर लौटने से पहले भगत सिंह कानपुर में अगस्त-सितंबर 1923 से अप्रैल 1924 के मध्य लगभग छः माह रहे।


सरदार भगत सिंह और गणेश शंकर विद्यार्थी जी की शहादत के बीच में  दो दिनों का अंतर था। हिंदी पत्रकारिता के भीष्म की  प्रायोजित हत्या के लिए औपनिवेशिक अंग्रेजी सत्ता ने भगत सिंह की शहादत को ही ढाल बनाया। दरअसल कानपुर के जिस सांप्रदायिक दंगे में विद्यार्थीजी शहीद हुए, वह दंगा उस दौरान भड़काया गया जब कानपुर सहित देश के अनेक बड़े शहरों में गांधी-इरविन समझौता के तहत सरदार भगत सिंह को जेल से छोड़ने की जगह फांसी देने के विरोध में बंद का आवाहन किया  गया था। दोनों शहीदों की पहली मुलाकात शहादत के लगभग सात बरस पहले कानपुर में हुई थी। जब भगत सिंह विवाह से बचने के लिए घर छोड़कर कानपुर आए थे और प्रताप साप्ताहिक में बलवंतसिंह के नाम से काम किया और प्रताप प्रेस में रुके भी।
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1916 लखनऊ अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन के बाद महात्मा गांधी एक दिन के लिए 'प्रताप प्रेस' कार्यालय पर रुके, जहां पर उन्होंने विद्यार्थीजी को कांग्रेस से जुड़ने और देश की राजनीति में सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद विद्यार्थीजी लगातार कांग्रेस में सक्रिय रहे। विद्यार्थीजी अपने जीवन में पांच बार जेल गए जिसमें दो बार कांग्रेस के नेता के रूप में में भाषण देने के कारण जेल गए। 1923 में आयोजित फतेहपुर जिला कान्फ्रेंस के सभापति के रूप में दिये गये उनके भाषण को अंग्रेज सरकार ने देशद्रोह माना और और उन्हें एक बरस साल की सजा सुनाई गयी। यह उनकी तीसरी जबकि पहली राजनीतिक जेल यात्रा थी। विद्यार्थीजी 20मार्च 1923 से 29 जनवरी 1924 को जेल से मुक्त हुए।
1925 में अखिल भारतीय कांग्रेस का चालीसवाँ अधिवेशन श्रीमती सरोजनी नायडू की अध्यक्षता में कानपुर में हुआ। स्वागत कार्यकारिणी के प्रधानमंत्री विद्यार्थीजी बनाये गये। इसके बाद वह 1926 में संयुक्त प्रांत काउंसिल के सदस्य के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए और उन्होंने उद्योगपति चुन्नीलाल गर्ग को मदनमोहन मालवीयजी के प्रचार के बावजूद पराजित किया और काउंसिल के सदस्य बने। जब सन 1929 में कांग्रेस ने निर्णय लिया कि कांग्रेसी सदस्य काउंसिल की सदस्यता छोड़ दे तो उन्होंने सबसे पहले त्यागपत्र दिया।
सन 1929 में फर्रुखाबाद में हुए युक्त प्रान्तीय राजनीतिक सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गये और उसके बाद प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गये। 1930 का कांग्रेस का नमक सत्याग्रह आरंभ हुआ तो विद्यार्थीजी युक्त प्रांत के प्रथम डिक्टेटर मनोनीत किया गये। 'कर्मयोगी' के संपादक व 'भारत में अंग्रेजी राज' जैसी पुस्तक के लेखक पं सुंदरलाल ने अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि "उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के पास से तकाजे-पर-तकाजे आ रहे थे कि मैं तुरंत उत्तर प्रदेश (उस समय मुंबई में थे) लौट आऊँ। कानपुर में प्रदेश कांग्रेस का प्रांतीय सम्मेलन हो रहा था। स्वागतकारिणी समिति ने मुझे अध्यक्ष चुना था। गणेशजी स्वागतकारणी समिति के सभापति थे। ... उत्तर प्रदेश के सब बड़े नेता, जवाहरलाल जी को छोड़कर सम्मेलन में उपस्थित थे। नमक सत्याग्रह का बिगुल बज चुका था। ... फूलबाग में सम्मेलन का विशाल पांडाल प्रतिनिधियों, सत्याग्रही स्वयंसेवकों और युवा कार्यकर्ताओं से खचाखच भरा था। गणेश शंकर विद्यार्थी ने स्वागतकारणी के सभापति की हैसियत से प्रतिनिधियों का स्वागत किया। उन्होंने सावधान किया कि सरकार और उसके गुर्गे, इस बात की चेष्टा करेंगे कि प्रदेश को सांप्रदायिक दंगों में उलझा दें। इसलिए हमें सावधानी बरतनी होगी और यदि कहीं भी साम्प्रदायिक उत्पात होते हैं तो हमें उन्हें रोकने में अपने प्राणों की बाजी लगा देनी चाहिए। उन्होंने युवा देशभक्तों से भी अपील की कि उन्हें अहिंसात्मक उपायों को अपनाकर नमक सत्याग्रह के पूरे मनोबल के साथ भाग लेना चाहिए।"
प्रांतीय राजनीतिक सम्मेलन में विद्यार्थीजी के भाषण को राजद्रोहात्मक बताकर 25 मई को दफा117 में गिरफ्तार हुए और उसी दिन एक बरस की सख्त सजा दे दी गयी। उसी दिन शाम को कानपुर से हटाकर रात बारह बजे हरदोई जेल पहुंचाया गया। विद्यार्थीजी के बाद पुरुषोत्तमदास टंडन दूसरे डिक्टेटर बने। टण्डनजी की गिरफ्तारी के बाद पंडित सुंदरलाल को डिक्टेटर बनाया गया।
गणेश शंकर विद्यार्थी की सजा पूरी होने के छः दिन पहले गांधी-इरविन समझौते के तहत उन्हें जेल से 15मार्च, 1931 के स्थान पर 9मार्च, 1931 को रिहा किया गया। गांधी-इरविन समझौते में राजनीतिक कैदियों को रिहा करना था, परंतु भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को रिहा नहीं किया गया। उन्हें 23मार्च, 1931 को लाहौर के किले में फांसी दे दी गयी और फिरोजपुर के पास सतलुज नदी के किनारे उनके शव को अत्यंत गोपनीय तरीके से अग्नि के सुपुर्द किया गया। इसके विरोध में जवाहरलाल नेहरू के आदेश पर 25 मार्च को देशभर में हड़ताल हुई। मुंबई, कराची, लाहौर, कोलकाता मद्रास और दिल्ली में यह हड़ताल शांतिपूर्वक रही, किंतु कानपुर में अंग्रेजों ने हड़ताल को हिंदू-मुस्लिम दंगे में बदल दिया। कई दिन तक चलता रहा, हजारों घर जला दिये गये। और 500 से अधिक लोग मारे गए।
25 मार्च 1931 को जब दंगा शुरू हुआ तो विद्यार्थीजी घर से निकलकर दंगाइयों के बीच पहुंचकर लोगों को शांत करने, उनकी प्राण रक्षा करने की कोशिश करने लगे। शाम तक उसी धुन में मारे-मारे फिरते रहे। लोगों को बचाते वक्त उनके पैर में कुछ चोट आयी। 24 तारीख की रात में और 25 की सुबह दंगे का रूप और भी भीषण हो गया। और वह नौ बजे सुबह सिर्फ थोड़ा सा दूध पीकर लोगों को बचाने के लिए चल पड़े। उनकी धर्मपत्नी ने जाते समय कहा-  "कहां इस भयंकर दंगे में जाते हो।" उन्होंने जवाब दिया- "तुम व्यर्थ घबराती हो। जब मैंने किसी की बुराई नहीं की तब मेरा कोई क्या बिगड़ेगा? ईश्वर मेरे साथ है।" इतना कहकर हिंदी पत्रकारिता का भीष्म अपनी मृत्यु को मृत्युंजय बनाने के लिए घर से निकल पड़ा, इसके बाद 'प्रताप' संपादक कभी अपने घर वापस नहीं आये। शहीद होने के लगभग 22 वर्ष पहले 'सरस्वती' में लिखे जीवन के प्रथम लेख 'आत्मोत्सर्ग' में विद्यार्थीजी ने अपना मार्ग स्पष्ट कर दिया था। लेख के अंतिम शब्द "यदि आप में आत्मोसर्गी बनने की अभिलाषा हो तो आपको अवसर की राह देखने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आत्मोसर्ग करने का अवसर प्रत्येक मनुष्य के जीवन में, पल-पल में आया करता है। देशकाल और कर्तव्य पर विचार कीजिये और स्वार्थरहित होकर साहस को नहीं छोड़ते हुए कर्तव्यपरायण बनने का प्रयत्न कीजिये।"
विद्यार्थीजी के लिए शायद आत्मोसर्ग के लिए इससे अनुकूल अवसर शायद नहीं था। उन्होंने पटकापुर, बंगाली मोहाल, इटावा बाजार के करीब 150 मुसलमान स्त्री, पुरुष और बच्चों को वहां से बचाया। ... उस समय विद्यार्थीजी अपनी डेढ़ पसली का दुबला-पतला शरीर लिए नंगे पांव, नंगे सिर, सिर्फ एक कुर्ता पहने, बिना कुछ खाये-पिये, बड़ी मुस्तैदी और लगन के साथ घायलों और निःसहायों को बचाने में व्यस्त थे। किसी को कंधे पर उठाए हुए हैं तो किसी को गोदी में लिए अपनी धोती से उसका खून पोंछ रहे हैं। किसी को डांटकर तो किसी से आरजू मिन्नत से, तो किसी से सत्याग्रह द्वारा वह विपत्तिग्रस्त लोगों को नर-पिशाचों के चंगुल से बचाते रहे। इसी बीच लोगों ने उनसे मुसलमानी मोहल्ले में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार का हाल बताया। यह जानते हुए कि जहां की बात कही जा रही है, वहां मुसलमान ही मुसलमान रहते हैं और वे इस समय बिल्कुल धर्मान्ध होकर पशुता का तांडव-नृत्य कर रहे हैं, विद्यार्थी जी निर्भीकता के साथ उधर चल पड़े। रास्ते में उन्होंने मिश्री बाजार और मछली बाजार के कुछ हिंदुओं को बचाया और वहां से चौबेगोला पहुंचे। वहां पर विपत्ति में फंसे हुए बहुत से हिंदुओं को उन्होंने निकलवाकर सुरक्षित स्थानों पर भेजा औरों के विषय में पूछ ही रहे थे कि मुसलमानों ने उन पर और उनके साथ के स्वयंसेवकों पर हमला करना चाहा।
दूसरे दिन 5:30 बजे प्रताप प्रेस और विद्यार्थीजी के घर वालों को खबर मिली कि विद्यार्थीजी कहीं पर घायल हो गए हैं। पहले तो लोगों को विश्वास नहीं हुआ कि विद्यार्थीजी पर कोई हाथ उठाएगा, परन्तु जब समय बीतने के साथ कुछ निश्चित पता नहीं चला तो संदेह बढा और कई मित्रों ने उन्हें ढूंढना शुरू किया। 11:00 बजे रात तक बराबर उनकी खोज होती रही, पता लगाया जाता रहा, पर कुछ भी पता न चला। चौबेगोला आने तक की बात लोग बतलाते थे। पर इसके बाद कहां गए, कैसे घायल हुए, यह कोई न बतलाता था। यह हाल देखकर विद्यार्थीजी घरवालों और मित्रों को शंका होने लगी। परंतु फिर भी 26 तारीख को दिन भर खोज होती रही। 27 मार्च को पता चला कि अस्पताल में जो बहुत सी लाशें पड़ी हुई हैं उनमें से एक विद्यार्थीजी की लाश होने का संदेह है। तुरंत शिवनारायण मिश्र और डॉ जवाहरलाल वहां पहुंचे। यद्यपि लाश फुलकर काली और बहुत कुरूप हो गयी थी, फिर भी खद्दर के कपड़े, उनके अपने ढंग के निराले बाल और हाथ में खुदे हुए 'गजेंद्र' नाम आदि देखकर पहचान लिया। उनका कुर्ता अभी तक उनके शरीर पर था जेब से तीन पत्र भी निकले, जो लोगों ने विद्यार्थीजी को लिखे थे। उन्हें देखकर यह बिल्कुल निश्चय हो गया कि लाश विद्यार्थीजी की ही है।
जिस समय गणेश जी शहीद हुए उसी समय कराची में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। विद्यार्थीजी अस्वस्थ होने के कारण कराची कांग्रेस में नहीं गये थे और वह घर से बाहर भी नहीं निकल रहे थे, परंतु जब दंगे और नरसंहार की बात सुनी तो बीमारी को भूलकर दंगा शांत करने निकल पड़े। कराची में कांग्रेस के नेताओं को जब सूचना मिली तो कराची कांग्रेस ने इस दु:खद घटना पर निम्नलिखित प्रस्ताव पास किया।
"कानपुर कांग्रेस के दंगे में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गणेशशंकर विद्यार्थी की मृत्यु के समाचार पर अपना गहरा दु:ख प्रकट करती है। श्री गणेश शंकर विद्यार्थी कांग्रेसजनों में सबसे अधिक बेलौस कांग्रेसजन थे। उनमें किसी प्रकार की संप्रदायिकता छू भी नहीं गयी थी। इसलिए वे हर दिल और हर संप्रदाय के लोगों में हर-दिल-अजीज थे। कांग्रेस शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करते हुए इस बात पर अभिमान प्रकट करती है कि प्रथम पंक्ति के काम करने वालों में श्रेष्ठ कार्यकर्ता कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने अपना बहुमूल्य जीवन, मुसीबत और खतरे में पड़े लोगों को बचाने के प्रयास में और मारकाट-पागलपन को रोककर शांति की स्थापना में बलिदान किया। कांग्रेस सब लोगों से अपील करती है कि इस अत्यंत बहुमूल्य और उदार बलिदान का वे प्रतिशोध के लिए नहीं बल्कि शांति स्थापना के लिए, एक आदर्श के रूप में उपयोग करेंगें। कांग्रेसी दंगे के कारणों की जांच करने के लिए और उचित उपाय सुझाने के लिए तथा जख्म को भरने के लिए तथा आस-पास के जिलों में दंगे को फैलने से रोकने के लिए एक समिति मुकर्रर करती है। समिति में छः सदस्य होंगे, उसके चेयरमैन डॉक्टर भगवानदास होंगे और मंत्री पंडित सुंदरलाल।"
गांधीजी ने कराची से ही विद्यार्थीजी के संबंध में एक तार  बालकृष्ण शर्मा 'नवीनजी' के नाम भेजा था।-
 "काम में बहुत व्यस्त रहने के कारण मैं न तो कुछ लिख सका न तार दे सका। यद्यपि हृदय खून के आंसू रोता है, फिर भी गणेश शंकर की जैसी शानदार मृत्यु की संवेदना प्रकट करने को जी नहीं चाहता। यह निश्चय है कि आज नहीं तो आगे किसी दिन उनका निष्पाप खून हिंदू-मुस्लिम एक्य को सुदृढ़ बनायेगा। इसलिए उनका परिवार संवेदना का नहीं, बल्कि बधाई का पात्र है। ईश्वर करे उनका दृष्टांत संक्रामक साबित हो।"
                                                                         गांधी
दंगे की जांच-पड़ताल के सिलसिले में डॉ भगवानदास, पुरुषोत्तमदास टंडन, अब्दुल लतीफ बिजनौरी, मंजर अली सोख़्ता और जफरूल मुल्क को महीनों कानपुर में रहना पड़ा। कानपुर में रहकर सैकड़ों व्यक्तियों की गवाही लेनी पड़ी और बाद में बाबू शिवप्रसाद गुप्त के बनारस के निवास स्थान 'सेवा उपवन' में बैठकर रिपोर्ट लिखी गयी। समिति ने बड़े परिश्रम, अनुसन्धान और छानबीन के बाद कई सौ पृष्ठों की एक रिपोर्ट तैयार करके वर्किंग कमेटी के सामने पेश की। काफी समय बाद यह रिपोर्ट छपी। परंतु सरकार ने उसके प्रकाशन के 24 घंटे के अंदर उस रिपोर्ट को ज़ब्त कर लिया।
रिपोर्ट के अनुसार कानपुर में भीषण दंगा होने की सूचना सरकारी हलकों में बहुत पहले से थी। मौलाना मोहम्मद अली की मृत्यु पर कानपुर के हिन्दू दुकानदारों ने अपनी दुकानें नही बंद की। इसलिए मुसलमान दुकानदारों ने तय किया कि आगे किसी हिन्दू नेता के मरने पर जब हड़ताल होगी तो मुसलमान भी दुकानें नहीं बंद करेंगे। पुलिस के कुछ अफ़सर जिनके परिवार शहर में रहते थे, उन्होंने अपने परिवारों को बाहर भेज दिया और अपने रिश्तेदारों को यह पत्र लिखा है कि चूँकि अनकरीब दंगा होने वाला है, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से हम अपने परिवारों को आपके यहां भेज रहे हैं। ऐसे पत्र कमेटी ने अपने कब्जे में लिए थे।
स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी ने अनेक मुसीबतजदा मुस्लिम परिवारों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया उनकी। अपील और रक्षा के प्रयत्नों से दंगे में उफान नहीं आ रहा था। इसलिए सरकारी अधिकारियों ने प्रयत्न किया कि उन्हें किसी तरह से समाप्त किया जाये। इसलिए उनसे प्रायोजित रूप से कहा गया कि कुछ हिंदू परिवार फंसे हुए हैं उन्हें आप बचाइए। यह कहकर उन्हें चौबेगोला की गलियों में ले गए और वहां ले जाकर एकांत में उन पर छुरे से आक्रमण किया गया। अपने बलिदान से पूर्व उन्होंने सर झुकाकर कहा था कि "मेरी हत्या करने से ही यदि आपको सन्तोष होता है तो सर हाजिर है।" निर्दयी गुर्गो ने बेरहमी के साथ उन्हें कत्ल कर दिया।

उपरोक्त अंश चंपारण सत्याग्रह का गणेश से 
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गणेश शंकर विद्यार्थी : छद्म धर्म निरपेक्षता के प्रथम शिकार


गणेश शंकर विद्यार्थी : छद्म धर्म निरपेक्षता के प्रथम शिकार

हिन्दी के प्रशिद्ध पत्रकार, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सिपाही एवं सुधारवादी नेता "गणेश शंकर विद्यार्थी" के शहीदी दिवस (25 मार्च) पर कोटि कोटि नमन. 
वे अत्यनत सेकुलर गांधीवादी नेता और पत्रकार थे. 
लेकिन कानपुर के हिन्दू मुस्लिम दंगे में उनका महान सेकुलर होना भी काम नहीं आया था. 
दंगाइयों ने उनको हिन्दू ही माना था.

गणेश शंकर विद्यार्थी जी का जन्म अपने नाना के घर, 26 अक्टूबर 1890 को प्रयागराज में हुआ था. इनके पिता मुंशी जयनारायण हथगाँव, जिला फतेहपुर (उ प्र) के निवासी थे. प्रयागराज के कायस्थ पाठशाला कालेज में पढ़ते समय उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर हो गया और वे प्रयागराज के हिंदी साप्ताहिक "कर्मयोगी" के संपादन में सहयोग देने लगे.

1911 में विद्यार्थी जी सरस्वती में पं. महावीरप्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में नियुक्त हुए.
कुछ समय 9 - नवंबर, 1913 को कानपुर से स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक "प्रताप" के नाम से निकाला. पहले इन्होंने लोकमान्य तिलक को अपना राजनीतिक गुरु माना, किंतु राजनीति में गांधी जी के अवतरण के बाद वे गांधी जी के अनन्य भक्त हो गए.
2018 में दैनिक जागरण समाचार पत्र में प्रकाशित एक लेख 
कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में भाग लेने तथा अधिकारियों, जागीरदारों और पुलिस के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर "प्रताप" में लेख लिखने के करण वे 5 बार जेल भी गए. हिंसा और अहिंसा दोनों ही रास्तों पर चलने वाले स्वतंत्रता सेनानी, उनका सम्मान करते थे. वे महान समाज सुधारक होने के साथ बहुत ही धर्मपरायण और ईश्वरभक्त भी थे.

23 मार्च -1931 को "भगत सिंह"-"राजगुरु"-"सुखदेव" की फांसी देने से सारा देश उद्देलित था. उनकी फांसी के बिरोध में 25 मार्च को भारत बंद का आवाहन किया गया , लेकिन अंग्रेजों के चापलूसों ने उस बंद से दूर ही रहे. बल्कि अंग्रेजों को खुश करने के लिए उन्होंने बंद समर्थकों से झगडा भी किया.  कानपुर में भीषण दंगा ही हो गया था.

कानपुर में बाजार बंद करवा रहे लोगों पर, कुछ बंद बिरोधी मुसलमानों ने हमला कर, कानपुर में साम्प्रदायिक दंगा कर दिया. उस बुरे हालात में विद्यार्थी जी दंगे की आग बुझने के लिये घर से निकल पडे और हिन्दुओ / मुसलमानों को समझाने में लग गए. उनके साहसिक प्रयास से अनेकों हिन्दुओं और मुस्लिमो की जान बची.

अपने साथ कुछ मुसलमानों को लेकर, वे मुस्लिम बहुल इलाको में घूम रहे थे तभी कुछ अराजक मुस्लिम गुंडों ने उनपर हमला कर दिया. उनके साथ चल रहे मुसलमानों ने कहा - "ये गणेश शंकर विद्यार्थी हैं, इनकी बजह से हजारों मुस्लिम बच सके हैं". इस पर उन गुंडों ने कोई परवाह नहीं की और उनकी बल्लमो से पीटकर उनकी ह्त्या कर दी .

उनके साथ चल रहे लोग डरकर भाग गए. उनका शव अस्पताल में लाशों के मध्य ऐसी हालत में मिला कि - उसे पहचानना तक मुश्किल था. सम्प्रदियकता को मिटाने और हिन्दू मुस्लिम एकता के लिये, उन्होंने अपने जीवन वलिदान कर दिया.
लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि - आज कोई नेता " गणेश शंकर विद्यार्थी जी" का नाम लेने को भी तैयार भी नहीं है .

यह भी कहा जाता है कि - पहले उन्होंने हिन्दू बहुल इलाके में हिन्दुओं को समझाकर झगडा शांत किया और फिर वहां से कुछ मुस्लिम्स को साथ लेकर मुस्लिम बहुल इलाके में गए. जब मुस्लिम बहुल इलाके में लोगों को समझा रहे थे तो दंगाई यह कहकर उन पर टूट पड़े कि - है तो साला हिन्दू ही"

25 मार्च के ही दिन गणेश शंकर विद्यार्थी जी जैसे महान शख्सियत ने देश की अखण्डता को बनाये रखने के लिए अपना बलिदान दिया था ।
आज वो हमारे बीच नही हैं पर उनके बताये गए आदर्श व् सिद्धांत जरूर आज भी हमें मजबूती प्रदान करते हैं ।
वो अक्सर कहा करते थे की समाज का हर नागरिक एक पत्रकार है इसलिए उसे अपने नैतिक दायित्वों का निर्वाहन सदैव करना चाहिए ।
गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता को एक मिशन मानते थे पर आज के समय में पत्रकारिता मिशन नही बल्कि इसमें बाजार हावी हो गया है जिसके कारण इसकी मौजूदा प्रासंगिकता खतरे में है । 
हम आज डिजिटल इंडिया की सूचना क्रांति के दौर में जी रहे हैं जिसने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अमूल चूक परिवर्तन किया है ..
एक पत्रकार के ऊपर समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है इसलिए इसे हमेशा सजग व् सचेत रहना चाहिए 
ऐसे महान व् कर्मठ व्यक्तित्व को
कोटि कोटि नमन 🙏🌹🙏

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रविवार, 17 मार्च 2019

एक पुल ऐसा जिसके नीचे नदी तो ऊपर बहती है नहर



एक पुल ऐसा जिसके नीचे नदी तो ऊपर बहती है नहर 

फतेहपुर - भारत देश हमेशा ही ऐतिहासिक स्मारकों का देश रहा है। 

चाहे ताजमहल हो या फिर लाल किला या फिर कुतुबमीनार। सभी स्मारक अपने आप में एक उत्कृष्ट निर्माण कला के नायाब नमूने हैं। 
ऐसा ही एक स्मारक उत्तर प्रदेश के जनपद फतेहपुर के ग्राम असोथर क्षेत्र में बरैड़ा गांव स्थित में झाल का पुल है, जो ब्रिटिश शासनकाल की उत्कृष्ट निर्माण कला का ऐतिहासिक उदाहरण है।

ऊपर रामगंगा कैनाल नहर, तो नीचे ससुरखदेरी नदी पुल के ऊपर बहती रामगंगा नहर और नीचे  नदी की अविरल छटा देखते ही बनती है। 
इतना ही नहीं दोनों नदियों के बीच बने पुल के बीचों-बीच बनी कोठरियां स्वयं में अनूठी हैं।

मैने तीन तस्वीरे दी हुयी है आप देख सकते है 
ससुरखदेरी नदी से सौ फुट की ऊंचाई पर पुल का निर्माण इस तरह से किया गया कि ऊपर से रामगंगा कैनाल नहर की निकासी हुई। 
नदी एवं नहर के बीचों-बीच लगभग 15 सुरंग मार्ग कोठरियों का निर्माण किया गया। 
जिन्हें चोर कोठरियों के नाम से जाना जाता है। जगह-जगह सीढ़ियां बनाकर इन कोठरियों में उतरने के भी इन्तजामात किए गए हैं। 
इस पुल को सिंचाई विभाग की ऐतिहासिक और उत्कर्ष संरचना माना जाता है। 
चूंकि इतना पुराना पुल होने के बावजूद इसकी मजबूती आज भी बरकरार है।

130 वर्ष पुराना है पुलबताया जाता है कि बिट्रिश काल का यह पुल लगभग 130 वर्ष पुराना है। इस पुल का निर्माण सन् 1885 में शुरू हुआ था। चार वर्ष में इसका निर्माण तत्कालीन मुख्य अभियंता सिंचाई विभाग एनडब्लू पी एवं कर्नल डब्लू एएच ग्रेट हैंड के निर्देशन में पूरा हुआ..

मेरी जानकारी व इतिहास के जानकारों के मुताबिक असोथर कस्बा अंग्रेजी हुकूमत के दौरान स्थानीय मुख्यालय हुआ करता था। 

जहां जिला मजिस्ट्रेट की हैसियत एवं उसके नुमाइन्दे मय फौज के निवास करते थे। 
इस इलाके में जलापूर्ति का एक मात्र साधन ससुरखदेरी नदी थी, 
जिससे क्षेत्र के किसानों एवं अन्य लोगों को जलापूर्ति का अभाव रहता था। 
जलाभाव से पीड़ित लोगों की मांग पर ही अंग्रेजी हुकूमत ने यहां रामगंगा कैनाल नहर बनवाई थी ।
असोथर कस्बे से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह ऐतहासिक पुल ...
कई फिल्मो जैसे नशा एक बर्बादी का मंजर आदि के कुछ दृश्यो को भी फिल्माया गया है

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शनिवार, 16 मार्च 2019

क्या आपका नाम मतदाता सूची में हैं अगर ना हो, तो क्या करें?


क्या आपका नाम मतदाता सूची में हैं अगर ना हो, तो क्या करें?

मतदाताओं की सुविधा के लिए चुनाव आयोग ने यह व्यवस्था की है कि वह अपना नाम मतदाता सूची में चेक कर लें। इसके लिए चुनाव आयोग ने ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह की व्यवस्था की है।



लखनऊ : - लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग ने रविवार देर शाम चुनावों की घोषणा की और बताया कि सात चरणों में चुनाव होंगे। ये चुनाव 11 अप्रैल से लेकर 19 मई तक सात चरणों में होंगे। वहीं, 23 मई को इन चुनावों का परिणाम आएगा। चुनाव आयोग ने शुचिता पूर्ण चुनाव कराने के लिए कमर कस ली है।


मतदाताओं की सुविधा के लिए चुनाव आयोग ने यह व्यवस्था की है कि वह अपना नाम मतदाता सूची में चेक कर लें। इसके लिए चुनाव आयोग ने ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह की व्यवस्था की है। 
मतदाता सूची में आपका नाम है या नहीं, इसे सुनिश्चित करने के लिए आपको चुनाव आयोग की 

वेबसाइट www.nvsp.in या eci-citizenservices.eci.nic.in पर जाना होगा। 
यहां पर आप सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपका नाम मतदाता सूची में है या नहीं।


 
इसके अलावा आप स्थानीय स्तर पर बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) के पास जाकर मतदाता सूची में अपने नाम की स्थिति जान सकते हैं। 
अगर आपका नाम मतदाता सूची में नहीं है तो इसके लिए आपको फॉर्म (6 ए) भरना होगा। 

वहीं अगर आपके नाम और अन्य विवरणों जैसे- नाम, पता, जन्म तिथि आदि में कुछ गड़बड़ी या गलती है तो आपको फार्म (8) भरना होगा।

आपको बता दें कि नए मतदाताओं के लिए फॉर्म (6ए) और पुराने मतदाताओं के लिए फॉर्म (8) चुनाव आयोग की वेबसाइट www.nvsp.in या eci-citizenservices.eci.nic.in पर उपलब्ध है। इसके अलावा ये फॉर्म ऑफलाइन रूप से भी जिले के निर्वाचन अधिकारी और बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) के पास उपलब्ध होते हैं। आप ये फॉर्म भरकर अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करवा सकते हैं या सुधार करवा सकते हैं।


 
इसके अतिरिक्त अगर आपका नाम मतदाता सूची में है लेकिन आपके पास मतदाता कार्ड नहीं है तो आप अपने अन्य पहचान पत्रों की मदद से भी वोट डाल सकते हैं। 
इसमें पासपोर्ट, पैन कार्ड, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, मनरेगा जॉब कार्ड, फोटोयुक्त पेंशन दस्तावेज, बैंक पासबुक और स्वास्थ्य बीमा कार्ड शामिल है।

चुनाव आयोग ने मतदाताओं को भी चुनाव प्रक्रिया के प्रति जागरूक करने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। 
इसके लिए आयोग ने हेल्पलाइन नंबर और ऐप जारी किया है। 
📞 1950, चुनाव आयोग का हेल्पलाइन नंबर है। 

इस नंबर से पहले आपको अपने क्षेत्र का पिन कोड लगाना होगा। इस पर फोन कर के आप चुनाव संबंधी अपनी किसी भी शंका का समाधान कर सकते हैं। 
इसके अलावा गूगल प्ले स्टोर पर Voter Helpline, cVIGIL और Pwd जैसे कुछ ऐप हैं जिससे चुनाव संबंधी जानकारियां प्राप्त की जा सकती है। 

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सोमवार, 11 मार्च 2019

आचार संहिता लग गई, क्या होती है चुनाव आचार संहिता ..


आचार संहिता लग गई, क्या होती है चुनाव आचार संहिता चुनाव आचार संहिता (आदर्श आचार संहिता/आचार संहिता) यानि चुनाव आयोग के वे निर्देश जिनका पालन चुनाव खत्म होने तक हर पार्टी और उसके उम्मीदवार को करना... 

चुनाव आचार संहिता (आदर्श आचार संहिता/आचार संहिता) यानि चुनाव आयोग के वे निर्देश जिनका पालन चुनाव खत्म होने तक हर पार्टी और उसके उम्मीदवार को करना होता है। 
अगर कोई उम्मीदवार इन नियमों का पालन नहीं करता तो चुनाव आयोग उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकता है, उसे चुनाव लडऩे से रोका जा सकता है, उम्मीदवार के खिलाफ एफआइआर दर्ज हो सकती है और दोषी पाए जाने पर उसे जेल भी जाना पड़ सकता है।राज्यों में चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही वहां चुनाव आचार संहिता भी लागू हो जाती हैं। 

चुनाव आचार संहिता के लागू होते ही सरकार और प्रशासन पर कई अंकुश लग जाते हैं। 
सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते हैं। वे आयोग के मातहत रहकर उसके दिशा-निर्देश पर काम करते हैं। 

मंत्री नहीं करेंगे कोई घोषणा


 केंद्र या प्रदेश सरकार के मंत्री अब न तो कोई घोषणा कर सकेंगे, न शिलान्यास, लोकार्पण या भूमिपूजन। सरकारी खर्च से ऐसा आयोजन नहीं होगा, जिससे किसी भी दल विशेष को लाभ पहुंचता हो। राजनीतिक दलों के आचरण और क्रियाकलापों पर नजर रखने के लिए चुनाव आयोग पर्यवेक्षक नियुक्त करता है। 


सामान्‍य नियम 



  1. - कोई भी दल ऐसा काम न करे, जिससे जातियों और धार्मिक या भाषाई समुदायों के बीच मतभेद बढ़े या घृणा फैले। 
  2. - राजनीतिक दलों की आलोचना कार्यक्रम व नीतियों तक सीमित हो, न ही व्यक्तिगत। 
  3. - धार्मिक स्थानों का उपयोग चुनाव प्रचार के मंच के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। 
  4. - मत पाने के लिए भ्रष्ट आचरण का उपयोग न करें। जैसे-रिश्वत देना, मतदाताओं को परेशान करना आदि। 
  5. - किसी की अनुमति के बिना उसकी दीवार, अहाते या भूमि का उपयोग न करें। 
  6. - किसी दल की सभा या जुलूस में बाधा न डालें। 
  7. - राजनीतिक दल ऐसी कोई भी अपील जारी नहीं करेंगे, जिससे किसी की धार्मिक या जातीय भावनाएं आहत होती हों। राजनीतिक सभाओं के लिए नियम 
  8. - सभा के स्थान व समय की पूर्व सूचना पुलिस अधिकारियों को दी जाए। 
  9. - दल या अभ्यर्थी पहले ही सुनिश्चित कर लें कि जो स्थान उन्होंने चुना है, वहॉं निषेधाज्ञा तो लागू नहीं है। 
  10. - सभा स्थल में लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति पहले प्राप्त करें। 
  11. - सभा के आयोजक विघ्न डालने वालों से निपटने के लिए पुलिस की सहायता करें। जुलूस के लिए संबंधी नियम 
  12. - जुलूस का समय, शुरू होने का स्थान, मार्ग और समाप्ति का समय तय कर सूचना पुलिस को देनी होगी। 
  13. - जुलूस का इंतजाम ऐसा हो, जिससे यातायात प्रभावित न हो। 
  14. - राजनीतिक दलों का एक ही दिन, एक ही रास्ते से जुलूस निकालने का प्रस्ताव हो तो समय को लेकर पहले बात करनी होगी। 
  15. - जुलूस सड़क के दायीं ओर से निकाला जाए। 
  16. - जुलूस में ऐसी चीजों का प्रयोग न करें, जिनका दुरुपयोग उत्तेजना के क्षणों में हो सके। 



मतदान के दिन के लिए नियम 




  1. किसी भी अभ्यर्थी के निर्वाचन, मतदाता या गणना एजेंट नहीं बनेंगे। 
  2. - मंत्री यदि दौरे के समय निजी आवास पर ठहरते हैं तो अधिकारी बुलाने पर भी वहॉं नहीं जाएंगे। 
  3. - चुनाव कार्य से जाने वाले मंत्रियों के साथ नहीं जाएंगे। 
  4. - जिनकी ड्यूटी लगाई गई है, उन्हें छोड़कर सभा या अन्य राजनीतिक आयोजन में शामिल नहीं होंगे। 
  5. - राजनीतिक दलों को सभा के लिए स्थान देते समय भेदभाव नहीं करेंगे। 
  6. लाउडस्पीकर के प्रयोग पर प्रतिबंध चुनाव की घोषणा हो जाने से परिणामों की घोषणा तक सभाओं और वाहनों में लगने वाले लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। इसके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में सुबह 6 से रात 11 बजे तक और शहरी क्षेत्र में सुबह 6 से रात 10 बजे तक इनके उपयोग की अनुमति होगी।


ये काम नहीं करेंगे कोई भी मंत्री 




  1. - शासकीय दौरा (अपवाद को छोड़कर) 
  2. - विवेकाधीन निधि से अनुदान या स्वीकृति 
  3. - परियोजना या योजना की आधारशिला 
  4. - सड़क निर्माण या पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध कराने का आश्वासन अधिकारियों के लिए नियम 
  5. - शासकीय सेवक किसी भी अभ्यर्थी के निर्वाचन, मतदाता या गणना एजेंट नहीं बनेंगे। 
  6. - मंत्री यदि दौरे के समय निजी आवास पर ठहरते हैं तो अधिकारी बुलाने पर भी वहॉं नहीं जाएंगे। 
  7. - चुनाव कार्य से जाने वाले मंत्रियों के साथ नहीं जाएंगे। 
  8. - जिनकी ड्यूटी लगाई गई है, उन्हें छोड़कर सभा या अन्य राजनीतिक आयोजन में शामिल नहीं होंगे। 
  9. - राजनीतिक दलों को सभा के लिए स्थान देते समय भेदभाव नहीं करेंगे। 


लाउडस्पीकर के प्रयोग पर प्रतिबंध 



चुनाव की घोषणा हो जाने से परिणामों की घोषणा तक सभाओं और वाहनों में लगने वाले लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। 
इसके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में सुबह 6 से रात 11 बजे तक और शहरी क्षेत्र में सुबह 6 से रात 10 बजे तक इनके उपयोग की अनुमति होगी।
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सोमवार, 4 मार्च 2019

एक ऐसा शिव मंदिर, जिसके सजदे में झुकता है पाकिस्तान!


एक ऐसा शिव मंदिर, जिसके सजदे में झुकता है पाकिस्तान!



आज शिवरात्रि के मौके पर शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. भारत के कोने-कोने में लोग भगवान शंकर के मशहूर मंदिरों में मत्था टेक रहे हैं. शिवरात्रि के पावन मौके पर आज हम आपको भोले के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जिसके आगे पाकिस्तान भी सिर झुकाता है. खुद पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ भी इस शिव मंदिर में जा चुके हैं. हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थिति कटासराज मंदिर के बारे में, जो काफी मशहूर है.


कटासराज मंदिर

कटासराज मंदिर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में है. कटासराज मंदिर के पास एक मशहूर झील भी है. मान्यता है कि यहां पहले मंदिरों की श्रृंखला हुआ करती थी, लेकिन अब सिर्फ चार ही मंदिरों के अवशेष बचे हैं, जिनमें भगवान शिव, राम और हनुमान के मंदिर हैं.


पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ भी इस शिव मंदिर में जा चुके हैं

कटासराज मंदिर की पौराणिक मान्यता


पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव माता सती की अग्नि समाधि से बहुत दुखी हो गए और विलाप करने लगे. इस दौरान उनके आंसू दो स्थानों पर गिरे. पहले स्थान पर कटासराज सरोवर का निर्माण हुआ तो दूसरे स्थान पर पुष्कर का, जो कि राजस्थान में स्थित है.

Input : News18
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शनिवार, 2 मार्च 2019

अवैध खनन पर स्पेशल रिपोर्ट योगी सरकार के मंशूबों में पानी फेरते फतेहपुर के संगोलीपुर मड्डइयन मौरंग खदान में सक्रिय खनन माफिया-





संगोलीपुर मड्डइयन में हो रहा मानक से विपरीत अवैध खनन-


फतेहपुर में अवैध खनन जोरों पर, किशनपुर थानाक्षेत्र के संगोलीपुर में ठेकेदार एक खण्ड का टेण्डर लेकर कर रहे कई खण्डों में खनन, प्रशासन मौन-


एक तरफ जहां अंडरलोड गाड़ियाँ चलाने का फरमान योगी सरकार का था, तो वहीं मौजूदा दौर में ओवरलोड से भी ज्यादा लोड वाहनों ने सड़कों का हाल किया खराब-


फतेहपुर में यमुना की धारा मोड़कर किया जा रहा अवैध खनन, जिम्मेदार बेपरवाह-


घाट में लेबर लोडिंग की जगह पोकलैंड मशीनों से की जा रही लोडिंग-


सूत्रों के मुताबिक घाट में माननीय के नाम के चलते जिला प्रशासन कार्यवाही से कतरा रहा-

बताते चलें कि बालू खनन के कारोबार के लिए चर्चित जनपदों में प्रयागराज से सटा हुआ फतेहपुर जनपद भी मशहूर है। यहाँ पर इस समय बालू माफिया पूरी तरह से सक्रिय हैं। 
जो न सिर्फ अपने ही खण्ड में खनन करते हैं बल्कि एक खण्ड का टेण्डर लेकर समूचे खाली पड़े खण्डों में अवैध खनन करवाते हैं, जिससे प्रदेश के राजस्व के एक लंबी धनराशि की क्षति भी होती है। 
सूत्रों की मानें तो इन खनन माफियाओं का जाल इतना बड़ा है कि जिले के अधिकारी भी इनके सामने घुटने टेके हुए हैं। एक तरफ जहां प्रशासन ने लेबर लोडिंग के लिए आदेशित किया था तो वहीं ये खनन माफिया सरकार के आदेशों की अवहेलना करते हुए दर्जनों पोकलैंड मशीनें लगाकर यमुना की धारा मोड़कर खनन कर रहे हैं साथ ही पूरीरात यमुना की धारा में पनचक्की लगाकर यमुना नदी को गर्त में मिलाने का काम कर रहे हैं। जिससे आने वाले समय में प्राकृतिक आपदाएं आने का भी खतरा मँडराता दिखाई दे रहा है। 

माननीय के नाम का भी कर रहे पूरा दुरुपयोग, माननीय का नाम भी अवैध खनन में बदनाम-

विश्वस्त सूत्रों/घाट में मौजूद पट्टेधारक के लोगों की मानें तो बताया जा रहा कि इस अवैध खनन के पीछे एक माननीय का भी हाँथ है। संगोलीपुर मड्डइयन क्षेत्र में सक्रिय खनन माफिया के मौरंग खदान में माननीय का भी अपना अलग परसेंटेज है। 
खबर की कवरेज के दौरान घाट में मौजूद माफिया के लोगों का कहना था कि आपके वीडियो और फोटो बनाने से कुछ भी होने वाला नहीं है, यहाँ माननीय जी का भी शेयर है। 
वीडियो बनाने मात्र से कुछ होने वाला नहीं है।

योगी सरकार के फरमान के बावजूद ओवरलोड देना भी नहीं बन्द कर रहे पट्टाधारक-

अगर अंत में बात करें यहां के ओवरलोड की तो उसका भी जनपद फतेहपुर में कोई जवाब नहीं। 
क्योंकि यहाँ पर तो दरोगा जी और आला अफसरों की मेहरबानी पर ही गाड़ियाँ चल सकती हैं या फिर आपकी गाड़ी की इंट्री हो, वो भी पूरी नई नोटों के साथ। 
और साथ मे बात करें यहाँ के लोकल पुलिस की तो उनका तो ये आलम है कि उन्हें किसी का भी डर नहीं है।
खुल्लमखुल्ला चौबीसों घंटे वसूली होती है।।

एनजीटी के नियमों की भी पट्टेधारक कर रहे खुलेआम अवहेलना-

आपको बता दें कि किसी भी घाट का टेण्डर होने के बाद उसे एनजीटी से एनओसी लेनी पड़ती है। 

एनजीटी उस घाटमालिक को कुछ शर्तों के बाद ही घाट चलाने के लिए "नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट"  देता है। 
लेकिन उसमें मौरंग खदान संचालक को बाध्य भी रखता है कि अगर इन शर्तों के विपरीत खनन हुआ तो आपका टेण्डर जुर्माने सहित निरस्त किया जा सकता है। 

लेकिन फतेहपुर में एनजीटी के नियम और शर्त कोई मायने नहीं रखते हैं।। 

क्योंकि यहाँ मौरंग खदान संचालक टीम के लोगों का ही कहना है कि सारे नियम बने ही तोड़ने के लिए हैं।।
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कौन है पाकिस्तान से वाघा बॉर्डर तक अभिनंदन के साथ आई यह महिला, जिनकी हो रही है चर्चा



कौन है पाकिस्तान से वाघा बॉर्डर तक अभिनंदन के साथ आई यह महिला, जिनकी हो रही है चर्चा


विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की वतन वापसी पर पूरा देश खुश है। गिरफ्तारी के 60 घंटे बाद रात 9:10 बजे पाकिस्तानी अधिकारियों ने अमृतसर के अटारी बार्डर पर अभिनंदन को भारत को सौंप दिया। इस दौरान उनके साथ एक महिला भी थीं। लोग जानना चाह रहे हैं आखिर यह महिला कौन हैं। लोग मान रहे हैं कि यह उनकी पत्नी या परिवार की कोई सदस्य हैं। लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि वह पाकिस्तान के विदेश कार्यालय में निदेशक डॉ फरिहा बुगती हैं। डॉक्टर बुगती एक एफएसपी (भारत के आईएफएस के बराबर) अधिकारी हैं और अपने विदेश कार्यालय (भारत के विदेश मंत्रालय के समकक्ष) पर भारत के मामलों को संभालने की प्रभारी हैं। बता दें कि वह पाकिस्तान जेल में बंद कुलभूषण जाधव के मामले को संभालने वाले मुख्य पाक अधिकारियों में से एक हैं। जाधव पर भारतीय जासूस होने का आरोप लगाया गया है। वह पिछले साल इस्लामाबाद में जाधव, उनकी मां और पत्नी के बीच मुलाकात के दौरान भी मौजूद थीं।




पाकिस्तान ने भारतीय विंग कमांडर का जारी किया वीडियो


बता दें कि पायलट अभिनंदन वर्तमान शुक्रवार को वाघा बॉर्डर पर भारत को सौंपे जाने में घंटों की देरी हुई। पाकिस्तानी अधिकारियों की ओर से इस देरी का कारण बार-बार मेडिकल जांच बताया जा रहा था। हालांकि, इसकी असल वजह अभिनंदन की भारत वापसी से कुछ समय पहले ही सामने आ गई जब पाकिस्तान ने भारतीय विंग कमांडर का एक वीडियो जारी किया।

सूत्रों के मुताबिक वर्तमान को भारत के हवाले करने में पाकिस्तान की ओर से देरी इसीलिए हुई क्योंकि पाकिस्तानी अधिकारी उनसे कैमरे पर बयान दर्ज करवा रहे थे। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें दबाव में कैमरे के सामने बयान देने को कहा गया या नहीं। लेकिन इस वीडियो में दो दर्जन ऐसे कट हैं जो यह संकेत दे रहे हैं कि इसे परोक्ष रूप से पाकिस्तानी रुख के अनुरूप करने के लिए इसमें बहुत काट-छांट की गई।



पाकिस्तान सरकार ने स्थानीय समयानुसार रात साढ़े आठ बजे अभिनंदन का वीडियो संदेश स्थानीय मीडिया में जारी किया। इस वीडियो में अभिनंदन बता रहे हैं कि उन्हें किस तरह पकड़ा गया और पाकिस्तानी सेना ने उनके साथ किस तरह व्यवहार किया। वीडियो में अभिनंदन कहते नजर आ रहे हैं कि वह ‘निशाना खोजने के लिए’ पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में घुसे लेकिन उनके विमान को मार गिराया गया।



उन्होंने कहा, ‘जब मैं निशाने की खोज में था तो आपकी (पाकिस्तानी) वायुसेना ने मेरा विमान मार गिराया। मुझे विमान से कूदना पड़ा क्योंकि विमान को बहुत नुकसान हुआ था। जैसे ही मैं बाहर कूदा और जब मेरा पैराशूट खुला, मैं नीचे आकर गिरा, मेरा पास एक पिस्तौल थी।’ अभिनंदन ने कहा, ‘वहां कई लोग थे। मेरे पास बचने का एक ही रास्ता था, मैंने अपनी पिस्तौल नीचे गिराकर भागने का प्रयास किया।’



उन्होंने कहा, ‘लोगों ने मेरा पीछा किया, वे बहुत उत्तेजित थे। तभी वहां, पाकिस्तानी सेना के दो अधिकारी आ गए और मुझे बचा लिया। पाकिस्तानी सेना के कैप्टन ने मुझे लोगों से बचाया और मुझे कोई चोट नहीं आने दी। वे मुझे अपनी यूनिट में ले गए जहां मुझे प्राथमिक उपचार दिया गया और फिर मुझे आगे की मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया तथा मेरा और उपचार हुआ।’

भारतीय मीडिया की आलोचना भी


वीडियो में विंग कमांडर भारतीय मीडिया की आलोचना भी करते नजर आए। वहीं पाक सेना की तारीफ करते हुए वह कह रहे हैं, ‘पाक सेना के जवानों ने मुझे भीड़ से बचाया। पाकिस्तानी सेना बहुत पेशेवर है और मैं इससे बहुत प्रभावित हूं।’



भारत का पक्ष है कि अभिनंदन का विमान उस समय गिराया गया जब भारतीय वायुसेना के विमानों ने 27 फरवरी को जम्मू कश्मीर में भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने के पाकिस्तान वायुसेना के प्रयासों को नाकाम किया था। इससे एक दिन पहले भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविरों पर आतंक रोधी अभियान चलाया था।

अभिनंदन विमान से तो बाहर निकल गए थे लेकिन वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जाकर गिरे जहां पाकिस्तानी सेना ने उन्हें पकड़ लिया। हालांकि देरी के सवाल पर पाकिस्तानी मीडिया की खबर है कि वाघा आव्रजन पर अभिनंदन के कागजात की जांच हो रही थी इसलिए उन्हें तुरंत भारतीय अधिकारियों को नहीं सौंपा गया।

Input : Amar Ujala
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अब आसमान से पाकिस्तान पर नजर रख रहा है भारत…पाकिस्तान में कहां क्या हो रहा सब HD में दिखता है


अब आसमान से पाकिस्तान पर नजर रख रहा है भारत…पाकिस्तान में कहां क्या हो रहा सब HD में दिखता है


 पाकिस्तान में अगर पत्ता भी हिलता है तो भारत की सेना को इसको खबर लग जाती है। और ऐसा इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) के सैटेलाइट्स के जरिए होता है। इसरो सैटेलाइट्स पाकिस्तान के चप्पे-चप्पे की खबर रखते हैं और सेना से साझा करते हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान के कुल 8.8 लाख वर्ग किमी में से 7.7 लाख वर्ग किमी की निगरानी इसरो करता है और इनकी एचडी मैपिंग कर सेना कमांडरों तक पहुंचाता है। इतना ही नहीं, ये सैटेलाइट्स एचडी क्वालिटी की फोटोज सेना तक पहुंचाते हैं, जिसका इस्तेमाल सेना की जमावट और रक्षा रणनीति के तहत किया जाता है। बता दें, इसरो इस वक्त 14 देशों के कुल 55 लाख किमी के हिस्से पर रख रहा है, लेकिन चीन के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है।
पाकिस्तान में घुसकर दो सफल सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के बाद ये कहने का मतलब है कि आ’तंक के आकाओं को छिपाए रखने के लिए पाकिस्तान चाहे जितना भी झूठ बोले, उनसे जुड़ी पल-पल की जानकारी भारत के पास मौजूद है। भारतीय सेना को ये ताकत इसरो (ISRO) के कारण मिली है, जिसने हाल के वर्षों में स्पेस टेक्नोलॉजी में दुनिया में भारत का लोहा मनवाया है। आज हमारे सैटेलाइट्स पाकिस्तान की 87% जमीन की चप्पे-चप्पे की जानकारी जुटाने में सक्षम हैं और वो भी हाई डेफिनेशन क्वालिटी वाली तस्वीरों और वीडियो के साथ।
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शुक्रवार, 1 मार्च 2019

पाकिस्तान से शेर की तरह निकले अभिनंदन… BSF अधिकारियों ने गले लगाकर किया स्वागत


पाकिस्तान से शेर की तरह निकले अभिनंदन… BSF अधिकारियों ने गले लगाकर किया स्वागत


 विंग कमांडर अभिनंदन भारत लौट आए हैं। उन्होंने शुक्रवार की रात के 9:20 पर भारत में कदम रखा। BSF अधिकारियों ने उन्हें रिसीव किया। इसके बाद पूरे देश में जश्न शुरू हो गया है। पाकिस्तान से निकलते ही BSF अधिकारियों ने उन्हें गले लगाया।

भारत आने के बाद वायु सेना अपनी मेडिकल टीम से सबसे पहले उनकी 100 प्रतिशत जांच कराएगी। 
अब तक इसके लिए उनके विशेषज्ञ नियुक्त भी कर दिए गए होंगे।

उसके बाद विंग कमांडर से पूछताछ होगी। 
इंटेलिजेंस डीब्रीफिंग होगी कि आपके साथ क्या हुआ, कैसा हुआ, वो पूरी तहकीकात की जाएगी। 
पाकिस्तान में कैसा व्यवहार हुआ, उन्होंने क्या पूछा और क्या बातचीत हुई, ये सब कार्रवाई होगी। 
फिर सरकार को रिपोर्ट पेश किया जाएगी। 
अगर भारत ये सोचता है कि कुछ आपत्तिजनक चीजें हुई हैं तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर पेश किया जाएगा।

सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई शाम को बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम के दौरान करना चाह रहा था, लेकिन भारत ने दोपहर बाद ही रिहाई पर जोर दिया। 
अटारी-वाघा बॉर्डर पर शाम 5 बजे बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन होता है।
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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

भारतीय वायुसेना ने जैश के शीर्ष कमांडर को भी मार गिराया : विदेश सचिव


भारतीय वायुसेना ने जैश के शीर्ष कमांडर को भी मार गिराया : विदेश सचिव

पुलवामा आ’तंकी हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग कर रहे भारत के लोगों को देश की वायुसेना ने बड़ा तोहफा दिया। दरअसल, भारत ने मंगलवार तड़के पाकिस्तान के भीतर हवाई हमले कर कई आ’तंकवादी शिविरों को निशाना बनाया है। इस कार्रवाई में 300 से ज्यादा आ’तंकियों के ढेर होने की संभावना है। इसे भारत का दूसरा सर्जिकल स्ट्राइक कहा जा रहा है। इससे पहले 2016 में उड़ी हमले के बाद भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान को करारी चोट दी थी। आइए जानते हैं भारतीय वायुसेना के इस ऑपरेशन के बारे में।



विदेश सचिव की प्रेस कॉन्फ्रेंस में विजय गोखले ने कहा कि 14 फरवरी को पाकिस्तान स्थित आ’तंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा में आ’तंकी हमला किया था, जिसमें हमारे 40 जवान शहीद हुए थे। इससे पहले पठानकोट में भी जैश की तरफ से आ’तंकी हमला किया गया था। पाकिस्तान हमेशा इन संगठनों की अपने देश में मौजूदगी से इनकार करता आया है। पाकिस्तान को कई बार सबूत भी दिए गए लेकिन उसने आ’तंकी संगठन के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई की। पाकिस्तान के रुख को देखते हुए हमने कदम उठाने की रणनीति तैयार की। आज सुबह बालाकोट में एयर स्ट्राइक की है जिसमें जैश के शीर्ष कमांडर समेत कई आ’तंकियों को ढेर किया गया है। यह एक असैन्य कार्रवाई थी जिसमें आ’तंकी संगठनों को निशाना बनाया गया है। गोखले ने बताया कि 20 साल से पाकिस्तान आ’तंकी साजिश रच रहा था और आ’तंकी संगठनों पर आजतक कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।



21 मिनट का ऑपरेशन : भारतीय वायुसेना का यह ऑपरेशन सिर्फ 21 मिनट का था। इस 21 मिनट में भारतीय 12 मिराज फाइटर ने पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में हमला किया। इस हमले में 300 से ज्यादा आ’तंकियों के ढेर होने की संभावना है। सूत्रों के मुताबिक भारतीय वायुसेना ने बालाकोट और मुजफराबाद सेक्टर में यह हमला किया। जानकारी के मुताबिक भारतीय वायुसेना की ओर से 1000 किलो बम का इस्तेमाल किया गया है। आजतक की रिपोर्ट के अनुसार इस पूरे ऑपरेशन को अजीत डोभाल लीड कर रहे थे।



इससे पहले पाकिस्तान के सेना की मीडिया शाखा अंतर-सेवा जन संपर्क (आईएसपीआर) के महानिदेशक मेजर जनरल आसिफ गफूर ने ट्वीट कर भारतीय कार्रवाई को कंफर्म कर दिया। हालांकि भारत से नुकसान के दावे को खारिज कर दिया। गफूर ने ट्वीट किया, भारतीय वायुसेना के विमान मुजफराबाद सेक्टर से घुसे। पाकिस्तानी वायुसेना की ओर से समय पर और प्रभावी जवाब मिलने के बाद वह जल्दीबाजी में अपने बम गिरा कर बालाकोट के करीब से बाहर निकल गए। जानमाल को कोई नुकसान नहीं हुआ है।’’





बता दें कि बीते 14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार पाकिस्तान को जवाब देने के संकेत दिए थे।



वहीं भारत की ओर से पाकिस्तान से व्यापार के मोर्चे पर भी सख्ती दिखाई जा रही है।भारत ने हाल ही में मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छिन लिया है जबकि आयात शुल्क 200 फीसदी बढ़ा दिया गया है। इसके बाद से पाकिस्तान परेशान नजर आ रहा है।

Input : Live Bavaal
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