सोमवार, 25 मार्च 2019

गणेश शंकर विद्यार्थी : छद्म धर्म निरपेक्षता के प्रथम शिकार


गणेश शंकर विद्यार्थी : छद्म धर्म निरपेक्षता के प्रथम शिकार

हिन्दी के प्रशिद्ध पत्रकार, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सिपाही एवं सुधारवादी नेता "गणेश शंकर विद्यार्थी" के शहीदी दिवस (25 मार्च) पर कोटि कोटि नमन. 
वे अत्यनत सेकुलर गांधीवादी नेता और पत्रकार थे. 
लेकिन कानपुर के हिन्दू मुस्लिम दंगे में उनका महान सेकुलर होना भी काम नहीं आया था. 
दंगाइयों ने उनको हिन्दू ही माना था.

गणेश शंकर विद्यार्थी जी का जन्म अपने नाना के घर, 26 अक्टूबर 1890 को प्रयागराज में हुआ था. इनके पिता मुंशी जयनारायण हथगाँव, जिला फतेहपुर (उ प्र) के निवासी थे. प्रयागराज के कायस्थ पाठशाला कालेज में पढ़ते समय उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर हो गया और वे प्रयागराज के हिंदी साप्ताहिक "कर्मयोगी" के संपादन में सहयोग देने लगे.

1911 में विद्यार्थी जी सरस्वती में पं. महावीरप्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में नियुक्त हुए.
कुछ समय 9 - नवंबर, 1913 को कानपुर से स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक "प्रताप" के नाम से निकाला. पहले इन्होंने लोकमान्य तिलक को अपना राजनीतिक गुरु माना, किंतु राजनीति में गांधी जी के अवतरण के बाद वे गांधी जी के अनन्य भक्त हो गए.
2018 में दैनिक जागरण समाचार पत्र में प्रकाशित एक लेख 
कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में भाग लेने तथा अधिकारियों, जागीरदारों और पुलिस के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर "प्रताप" में लेख लिखने के करण वे 5 बार जेल भी गए. हिंसा और अहिंसा दोनों ही रास्तों पर चलने वाले स्वतंत्रता सेनानी, उनका सम्मान करते थे. वे महान समाज सुधारक होने के साथ बहुत ही धर्मपरायण और ईश्वरभक्त भी थे.

23 मार्च -1931 को "भगत सिंह"-"राजगुरु"-"सुखदेव" की फांसी देने से सारा देश उद्देलित था. उनकी फांसी के बिरोध में 25 मार्च को भारत बंद का आवाहन किया गया , लेकिन अंग्रेजों के चापलूसों ने उस बंद से दूर ही रहे. बल्कि अंग्रेजों को खुश करने के लिए उन्होंने बंद समर्थकों से झगडा भी किया.  कानपुर में भीषण दंगा ही हो गया था.

कानपुर में बाजार बंद करवा रहे लोगों पर, कुछ बंद बिरोधी मुसलमानों ने हमला कर, कानपुर में साम्प्रदायिक दंगा कर दिया. उस बुरे हालात में विद्यार्थी जी दंगे की आग बुझने के लिये घर से निकल पडे और हिन्दुओ / मुसलमानों को समझाने में लग गए. उनके साहसिक प्रयास से अनेकों हिन्दुओं और मुस्लिमो की जान बची.

अपने साथ कुछ मुसलमानों को लेकर, वे मुस्लिम बहुल इलाको में घूम रहे थे तभी कुछ अराजक मुस्लिम गुंडों ने उनपर हमला कर दिया. उनके साथ चल रहे मुसलमानों ने कहा - "ये गणेश शंकर विद्यार्थी हैं, इनकी बजह से हजारों मुस्लिम बच सके हैं". इस पर उन गुंडों ने कोई परवाह नहीं की और उनकी बल्लमो से पीटकर उनकी ह्त्या कर दी .

उनके साथ चल रहे लोग डरकर भाग गए. उनका शव अस्पताल में लाशों के मध्य ऐसी हालत में मिला कि - उसे पहचानना तक मुश्किल था. सम्प्रदियकता को मिटाने और हिन्दू मुस्लिम एकता के लिये, उन्होंने अपने जीवन वलिदान कर दिया.
लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि - आज कोई नेता " गणेश शंकर विद्यार्थी जी" का नाम लेने को भी तैयार भी नहीं है .

यह भी कहा जाता है कि - पहले उन्होंने हिन्दू बहुल इलाके में हिन्दुओं को समझाकर झगडा शांत किया और फिर वहां से कुछ मुस्लिम्स को साथ लेकर मुस्लिम बहुल इलाके में गए. जब मुस्लिम बहुल इलाके में लोगों को समझा रहे थे तो दंगाई यह कहकर उन पर टूट पड़े कि - है तो साला हिन्दू ही"

25 मार्च के ही दिन गणेश शंकर विद्यार्थी जी जैसे महान शख्सियत ने देश की अखण्डता को बनाये रखने के लिए अपना बलिदान दिया था ।
आज वो हमारे बीच नही हैं पर उनके बताये गए आदर्श व् सिद्धांत जरूर आज भी हमें मजबूती प्रदान करते हैं ।
वो अक्सर कहा करते थे की समाज का हर नागरिक एक पत्रकार है इसलिए उसे अपने नैतिक दायित्वों का निर्वाहन सदैव करना चाहिए ।
गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता को एक मिशन मानते थे पर आज के समय में पत्रकारिता मिशन नही बल्कि इसमें बाजार हावी हो गया है जिसके कारण इसकी मौजूदा प्रासंगिकता खतरे में है । 
हम आज डिजिटल इंडिया की सूचना क्रांति के दौर में जी रहे हैं जिसने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अमूल चूक परिवर्तन किया है ..
एक पत्रकार के ऊपर समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है इसलिए इसे हमेशा सजग व् सचेत रहना चाहिए 
ऐसे महान व् कर्मठ व्यक्तित्व को
कोटि कोटि नमन 🙏🌹🙏

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