रविवार, 22 अगस्त 2021

रक्षाबंधन विशेष - ऐसे भी बीजेपी जिलाध्यक्ष दिवंगत बूथ अध्यक्ष की पत्नी को माना अपनी बहन बंधवाई राखी

 भाजपा के दिवंगत झाऊपुर वार्ड बूथ अध्यक्ष के घर पहुंच जिलाध्यक्ष आशीष मिश्रा ने बंधवाई राखी



👉 रक्षा सूत्र बंधा हर संभव मदद का दिया भरोसा


👉 अचानक पहुंचे जिलाध्यक्ष को देख भावुक हुई दिवंगत की पत्नी सुमित्रा देवी

✍🏻 विकास त्रिवेदी (वरिष्ठ पत्रकार जनपद फतेहपुर)

फतेहपुर - कुछ माह पहले सदर विधानसभा के झाऊपुर वार्ड के बूथ अध्यक्ष स्वतंत्र लोधी का आकस्मिक निधन हो गया था रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर जिलाध्यक्ष आशीष मिश्रा दिवंगत बूथ अध्यक्ष के आवास बिना किसी सूचना के पहुँच गए  जिलाध्यक्ष के गाँव पहुचते ही लोगो का तांता लग गया 

जिलाध्यक्ष आशीष मिश्रा ने बूथ अध्यक्ष की विधवा पत्नी सुमित्रा लोधी से कहा कि आप से राखी बंधवाने आया हूं, ये सुनकर बूथ अध्यक्ष की पत्नी आश्चर्य चकित होकर भावुक हो गयी और श्री मिश्रा को रक्षा सूत्र बांधते हुए मिष्ठान खिलाकर व आरती उतारकर ख़ुशी का इज़हार किया l मौके पर जो भी मौजूद रहा सभी की आँखे नम हो गयी और इस भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की शुरुआत पर जिलाध्यक्ष व सुमित्रा देवी को बधाई दी l

मौके पर उपस्थित लोगो का कहना रहा की भारतीय जनता पार्टी ही एकमात्र संस्कारो से संजोई गयी पार्टी है l भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जिसमे एक-एक कार्यकर्ता का मान-सम्मान बरकरार है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज का वाक्या है l

सुमित्रा देवी ने कहा कि पहला नेता देखी हूँ जो हम जैसे छोटे कार्यकर्तओं को भी इतना महत्व और स्नेह देते है l परिवार की तरह प्यार देते है l

ये माहौल देख कर वहाँ खड़े कई लोग भी 



भावुक हो गए और जिलाध्यक्ष की तारीफ करते रहे l जिलाध्यक्ष आशीष मिश्रा ने पूरे परिवार का हर संभव सहयोग देने का भी वादा किया l

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सोमवार, 4 मार्च 2019

एक ऐसा शिव मंदिर, जिसके सजदे में झुकता है पाकिस्तान!


एक ऐसा शिव मंदिर, जिसके सजदे में झुकता है पाकिस्तान!



आज शिवरात्रि के मौके पर शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. भारत के कोने-कोने में लोग भगवान शंकर के मशहूर मंदिरों में मत्था टेक रहे हैं. शिवरात्रि के पावन मौके पर आज हम आपको भोले के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जिसके आगे पाकिस्तान भी सिर झुकाता है. खुद पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ भी इस शिव मंदिर में जा चुके हैं. हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थिति कटासराज मंदिर के बारे में, जो काफी मशहूर है.


कटासराज मंदिर

कटासराज मंदिर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में है. कटासराज मंदिर के पास एक मशहूर झील भी है. मान्यता है कि यहां पहले मंदिरों की श्रृंखला हुआ करती थी, लेकिन अब सिर्फ चार ही मंदिरों के अवशेष बचे हैं, जिनमें भगवान शिव, राम और हनुमान के मंदिर हैं.


पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ भी इस शिव मंदिर में जा चुके हैं

कटासराज मंदिर की पौराणिक मान्यता


पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव माता सती की अग्नि समाधि से बहुत दुखी हो गए और विलाप करने लगे. इस दौरान उनके आंसू दो स्थानों पर गिरे. पहले स्थान पर कटासराज सरोवर का निर्माण हुआ तो दूसरे स्थान पर पुष्कर का, जो कि राजस्थान में स्थित है.

Input : News18
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बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

नवरात्रि विशेष

 नवरात्रि विशेष
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥ 

नवरात्रि के पावन पर्व के मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। 

#मां #दुर्गा को #सर्वप्रथम #शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। 

इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है। 

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। 

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। 
बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। 

वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। 

पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

जय माता दी🙏
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रविवार, 2 सितंबर 2018

श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2018 - पूर्ण जानकारी क्या करें , क्या न करें ..


भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर बुधवार और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में हुआ था। इस दिन विधि-विधान से श्रीकृष्ण की पूजा करने से सभी संकटों का  निवारण होता है और हर इच्छा पूरी होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार,भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और व्रत करने के कुछ तरीके और नियम बताए गए हैं। इसके साथ कुछ अन्य जरूरी बातें भी बताई गई हैं। जिनमें बताया गया है कि जन्माष्टमी व्रत कैसे किया जाए।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व - 

-  भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि पर पूर्णावतार योगिराज श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था । 
- इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी किया जाता है । 
-  इस दिन व्रत करने से पुण्य वृद्धि होती है ।

- जन्माष्टमी पर व्रत के साथ भगवान की पूजा और दान करने से हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ऐसे मनाएं - 

- इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की प्रीति और भक्ति के लिए उपवास करें । 
- अपने निवास की विशेष सजावट करें । 
- सुन्दर पालने में बालरूप श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें । 
- रात्रि बारह बजे श्रीकृष्ण की पूजन के पश्चात प्रसाद वितरण करें । 
- विद्वानों, माता-पिता और गुरुजनों के चरण स्पर्श करें । 
- परिवार में कोई भी किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन कदापि न करें । 

- भगवान के मंदिर जाएं।
- सूर्याेदय से पहले उठें। पूरे दिन झूठ न बोलें। किसी को परेशान न करें और मांस-मदिरा और तामसिक चीजों से दूर रहें।
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन 'श्रीकृष्ण जन्म-कथा' पठन/श्रवण/मनन का भी विशेष पुण्यलाभ मिलाता है ।
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रविवार, 26 अगस्त 2018

क्या आप जानते है कि रक्षाबंधन क्यों बनाया जाता है? चलिए जानते हैं रक्षाबंधन मनाने के पीछे क्या हैं कारण


क्या आप जानते है कि रक्षाबंधन क्यों बनाया जाता है? 
चलिए जानते हैं रक्षाबंधन मनाने के पीछे क्या हैं कारण


गौरव सिंह गौतम (संपादक


रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन धूम-धाम से मनाया जाता है.
हर साल बहन अपने भाई की कलाई में विधि अनुसार राखी बांधती है और अपनी रक्षा का वचन मांगती है.
  • लेकिन क्या आप जानते है कि रक्षाबंधन क्यों बनाया जाता है? 
  • चलिए जानते हैं रक्षाबंधन मनाने के पीछे क्या हैं कारण.


सदियों से चली आ रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है. हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है. राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है.


पौराणिक संदर्भ के मुताबिक-


पौराणिक कथाओं में भविष्य पुराण के मुताबिक, देव गुरु बृहस्पति ने देवस के राजा इंद्र को व्रित्रा असुर के खिलाफ लड़ाई पर जाने से पहले अपनी पत्नी से राखी बंधवाने का सुझाव दिया था. इसलिए इंद्र की पत्नी शचि ने उन्हें राखी बांधी थी.


एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक -


रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने के लिए भी मनाया जाता है. आमतौर पर मछुआरें वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करके ये त्योहार मनाते है. इस त्योहार को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है.


ऐतिहासिक संदर्भ के मुताबिक -


ये भी एक मिथ है कि है कि महाभारत की लड़ाई से पहले श्री कृष्ण ने राजा शिशुपाल के खिलाफ सुदर्शन चक्र उठाया था, उसी दौरान उनके हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा तभी द्रोपदी ने अपनी साड़ी में से टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया. बदले में श्री कृष्ण ने द्रोपदी को भविष्य में आने वाली हर मुसीबत में रक्षा करने की कसम दी थी.

ये भी कहा जाता है कि एलेक्जेंडर जब पंजाब के राजा पुरुषोत्तम से हार गया था तब अपने पति की रक्षा के लिए एलेक्जेंडर की पत्नी रूख्साना ने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुनते हुए राजा पुरुषोत्तम को राखी बांधी और उन्होंने भी रूख्साना को बहन के रुप में स्वीकार किया.

एक और कथा के मुताबिक ये माना जाता है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने सम्राट हुमायूं को राखी भिजवाते हुए बहादुर शाह से रक्षा मांगी थी जो उनका राज्य हड़प रहा था. अलग धर्म होने के बावजूद हुमायूं ने कर्णावती की रक्षा का वचन दिया.


रक्षाबंधन का संदेश -


रक्षाबंधन दो लोगों के बीच प्रेम और इज्जत का बेजोड़ बंधन का प्रतीक है. आज भी देशभर में लोग इस त्योहार को खुशी और प्रेम से मनाते है और एक-दूसरे की रक्षा करने का वचन देते है.

जय सियाराम 🚩🚩 🙏
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गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

धूमधाम से मनाई गई भगवान परशुराम जयंती


धूमधाम से मनाई गई भगवान परशुराम जयंती

 ✍ मयंक मिश्रा

फतेहपुर - किशनपुर कस्बे में रविवार को भगवान परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई गई।

कस्बे के राम मंदिर में परशुराम
जयंती पर आयोजित हवन में भगवान परशुराम के अनुयायियों ने वेद मंत्रों के साथ हवन में आहुति डाली।

कि हर शुभ कार्य में हवन करने से जहां देवता प्रसन्न होते हैं वहीं वातावरण भी शुद्ध होता है। भगवान परशुराम जयंती महोत्सव को सम्बोधित करते हुए सभा के कार्यकारी अरबिंद मिश्रा 
आदि ने भगवान परशुराम के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम के जीवन का एकमात्र ध्येय था मातृभूमि का उपचार करना। उन्होंने अपने फरसे के प्रहार से पापियों का नाश किया और 21 बार आतताइयों से धरती को मुक्त करवाया।
परशुराम  जयंती इस मौके केक काटा गया व मिठाईया भी बाटी गयी पर किशनपुर के युवा अरबिंद मिश्रा,अंकुर शुक्ला,शिवम शुक्ला, आयुष मिश्रा मर्दुल अगिनिहोत्री, हर्षित अगिनिहोत्री सन्दीप शुक्ला, विभूति तिवारी, धनंजय सिंह आदि सहित भारी संख्या में विप्रजन मौजूद थे।
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रविवार, 18 मार्च 2018

आखिर क्या हैं विक्रम संवत ? पढ़े पूरी खबर

आखिर क्या हैं विक्रम संवत ?  पढ़े पूरी खबर

गणतांत्रिक युग का आगाज है विक्रम संवत

जनक राजवंश के आखिरी राजा कनाल की बलि उनके गढ में ही चढाने के बाद मिथिला की राजधानी पर दूसाध जाति के राजा सलहेस का राज स्थापित हुआ। लेकिन बाकी जनपदों में क्षत्रप खुद को राजा घोषित कर दिये। 
जनक राजवंश के नाश होने के बाद पडोसी राज्यों की मजबूत सेना और जनता में स्वीकार्यता के अभाव में मिथिला के विभिन्न क्षत्रपों के बीच इस बात को लेकर सहमति बनी कि एक संघ बनाया जाये। 

जिसमें जनपदों का अधिकार एक सदस्य के रूप में हो और एक निश्चितकाल खंड पर लगान का हिसाब दिया जाये। इस संघ का नाम लिच्छवी रखा गया और सबसे बडा और प्रभावी जनपद के रूप में मिथिला इस संघ शामिल हुआ। जनपदों में से संघ के राजा का चुनाव का अधिकार जनता को दिया गया। यह पहला मौका था जब जनता को यह अधिकार मिला था कि वो जनपदों में से किसी एक क्षत्रप को अपना राजा चुन सके। 

ईसा पूर्व 57 साल पहले बने इस संघ के पहले राजा बने धर्मपाल भूमिवर्मा विक्रमादित्य। लिच्छवी गणराज्य की शासन प्रणाली को समयावधि के अनुकूल चलाने के लिए एक पंचांग का निर्माण किया गया। जिसमें सप्ताह के सात दिन और साल के 12 माह निर्धारित किये गये। यह गणतंत्र की सबसे पहली देन है। राजतंत्र में समय की कोई गणना नहीं थी, जबकि गणतंत्र में समय की गणना ही सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता हैं।

 इस तथ्य को गुजरात के खोजकर्ता पं. भगवान लाल इन्द्रजी ने भी सही ठहराया है।
लिच्छवी गणराज्य का गठन और पतन कई बार हुआ। जनपद जुडते रहे और अलग होते रहे। 


करीब 800 वर्षों तक यह व्यवस्था कायम रही। इसके बावजूद कहा जा सकता है कि लिच्छवी गणराज्य एक सफल प्रयोग नहीं रहा, बावजूद इसके इसने न केवल विश्व को गणतंत्र दिया, बल्कि एक कलेंडर भी दिया, जिसे हम बिक्रम संवत के नाम से जानते हैं...
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शनिवार, 17 मार्च 2018

चैत्र नवरात्रि में कब करें कलश स्थापना, शुभ मुहूर्त और बीज मंत्र


नवरात्रि में कब करें कलश स्थापना, शुभ मुहूर्त और बीज मंत्र

मां दुर्गा की उपासना का पर्व नवरात्रि जल्द ही शुरू होने जा रहा है। 
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि से ही नए साल की शुरुआत भी हो जाती है।
 इस बार 18 मार्च से नवरात्रि की शुरुआत होगी जो 25 मार्च को अष्टमी और नवमी तिथि तक रहेगी। 
इस बार नवरात्रि 8 दिनों तक ही रहेगा। 
18 मार्च से कलश की स्थापना होगी।
इस बार चैत्र नवरात्रि को घट स्थापना का शुभ मुहुर्त 18 मार्च की सुबह 6.31 मिनट से लेकर 7.46 मिनट तक का है।
 यदि आप इस दौरान घट स्थापना नहीं कर सकें, तो अभिजित मुहूर्त में भी स्थापना कर सकते हैं। 
यदि आप कोई शुभकाम करना चाहते हैं और शुभ मुहूर्त नहीं हो, तो अभिजीत मुहूर्त में वह काम किया जा सकता है।

ऐसे करें घट स्‍थापना

नवरात्रि पूजा के प्रथम दिवस कलश की स्‍थापना के लिए पहले जहां घट रखना है उस स्‍थान अच्‍छी तरह साफ करके शुद्ध कर लें। 
इसके बाद गणेश जी का स्मरण करते हुए लाल रंग का कपड़ा बिछा कर उस पर थोड़ा चावल रखें। 
अब एक मिट्टी के पात्र में जौ बोकर, पात्र के उपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें और इसके मुंह पर रक्षा सूत्र बांध दें।
कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं।
कलश के अंदर साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल और सिक्का डालें, फिर उस ऊपर आम या अशोक के पत्ते रख कर ऊपर से नारियल रख दें। 
इसके बाद इस पर लाल कपड़ा लपेट कर उसे मौलि से लपेट दें। 
अब सभी देवी देवताओं का आवाहन करें और उनसे नौ दिनों के लिए घट में विराजमान रहने की प्रार्थना करें। दीपक जलाकर कलश का पूजन करें, और इसके सम्‍मुख धूपबत्ती जला कर इस पर फूल माला अर्पित करें।

जवारे की विशेष मान्यता है

नवरात्रि में जौ या जवारे बोने की भी परंपरा होती है। मान्यता है कि यदि जवारे अच्छी तरह से फलते हैं, तो उस घर में देवी ने वास किया है और आने वाले छह महीने उस घर में काफी खुशी और संपन्नता के साथ बीतने वाले हैं।
वहीं, यदि जवारे में कोई एक भी सफेद रंग का निकल आए, तो इसे बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा तभी होता है, जब देवी स्वयं वहां रही हों। 
सफेद जवारा निकलने पर शतचंडी यज्ञ का फल मिलता है।

यह हैं बीज मंत्र

नवदुर्गा के इन बीज मंत्रों की प्रतिदिन की देवी के दिनों के अनुसार मंत्र जप करने से मनोरथ सिद्धि होती है। 

आइए जानें नौ देवियों के दैनिक पूजा के बीज मंत्र -
1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:।
2. ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
3. चंद्रघंटा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
4. कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:।
5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
9. सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
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बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

शिवरात्रि विशेष - आज भी पूजे मिलते हैं शिवलिंग  


गौरव सिंह गौतम (मुख्य संपादक आत्मगौरव न्यूज़.कॉम)

फतेहपुर जनपद में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां बंद कपाट में शिव के गण या कोई अदृश्य शक्ति उनकी पूजा करके चली जाती हैं। 
वहां पर फूल बेलपत्र तथा चावल मिलता है। 
अपने आप में यह अद्भुत अविश्वसनीय और अकल्पनीय है। यह शिव मंदिर जनपद मुख्यालय से 35 किलो मीटर दूर असोथर कस्बे के बीचों बीच स्थित है । इसकी की महिमा अनोखी है सावन माह में सोमवार को यहां मेले जैसा दृश्य हो जाता है यह मंदिर शक्ति पीठ मोटे महादेवन  के नाम से प्रसिद्ध है ।

हजारों साल पुराना है शिव मंदिर

असोथर कस्बें के बीचों बीच पर स्थिति यह शिव मंदिर हजारो साल पुराना है। 
इसकी वास्तविक तिथि किसी को नहीं मालूम की कब मंदिर का निर्माण किया गया है। 
लेकिन इतना जरुर लोग बताते है कि यह मंदिर द्वापर युग का है। 
इस शिवलिंग की कहानी भी महाभारत के पात्र अश्वस्थामा के जीवन के क्षणों से जुड़ी हुई है।

अदृश्य शक्ति करती है शिवलिंग की पहले पूजा, 
कपाट खोलने पर मिलता है फूल बेलपत्र

मंदिर में एक शिवलिंग है इसके संबंध में स्थानीय लोगो का कहना है कि रात को जब मंदिर बंद किया जाता है उस समय मंदिर की सफाई की जाती है और शिवलिंग पर कोई भी वस्तु नहीं छोड़ी जाती। 
लेकिन, जब मंदिर के कपाट खोले जाते है तो शिवलिग पर फूल , बेलपत्र , चावल या अन्य पूजन सामग्री चढ़ाई हुई मिलती है। 
कस्बे में एक लोकोक्ति हैं कि आज भी मोटे महादेवन मंदिर में महाभारत काल के पांडवों व कौरवों गुरु द्रोण के पुत्र अश्वस्थामा आज भी सफेद घोड़े पर सवार हो शिव की पूजा अर्चना करने आते हैं , बुजर्गों के अनुसार पूर्व में असोथर कस्बा अश्वस्थामा मंदिर के पास बसा हुआ था , पूर्व में मोटे महादेवन मंदिर वीरान जंगल इलाके में था , जो कि आज कस्बें के बीचो बीच हैं।
इसके अलावा एक मान्यता  हैं कि मोटे महादेवन मंदिर में शिवलिंग (ईशान कोण) की ओर झुकी हैं।
पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान कोण की संज्ञा दी गई है। 
यह दो दिशाओं का सर्वोतम मिलन स्थान है। 
यह स्थान भगवान शिव और जल का स्थान भी माना गया है। 
ईशान को सदैव स्वच्छ और शुद्ध रखना चाहिए। 
पूजा स्थान के लिए ईशान कोण को विशेष महत्व दिया जाता है।
यह शिवलिंग काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर झुकी हुई हैं , 
कहते हैं जो कोई भी यहा सच्चे मन से अराधना करता है तो उसकी मनोकामना 21 दिन में पूरी होती है, यहां पर वैसे रोज कई शिव भक्त आते है पर कुछ लोग इसमे खास होते है क्योंकि वो यहां ही नहीं गैर जनपदों के होते हैं नहीं और पूजन करके अपनी मनोकामना पूरी होने की मुराद मांगते हैं ।

अति प्राचीन है इस मंदिर का इतिहास

जानकार बताते है महाभारत युद्ध के बाद अजर अमर अश्वस्थामा पांडवो पुत्रों की हत्या का पश्चाताप करने लिए यहां पर पूर्व से अब तक अनवरत पूजा अर्चना करते आ रहे हैं ।

हालांकि बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार राजस्थान राज्य जयपुर के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मान सिंह ने मंदिर महात्म सुनने  व उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार लगभग 250 वर्ष पहले करवाया था ।
वर्तमान में इस मंदिर का जीर्णोद्धार जिले के नामी ट्रांसपोर्टर शिवप्रकाश शुक्ला जी द्वारा करवाया गया हैं ।

औरंगजेब भी नहीं तोड़ सका शिवलिंग को 

मुगल शासक औरंगजेब के शासन के समय 1873 ईशवी० में देश मे अधिकतर शिवलिंग को क्षत विक्षत कर दिया गया था , परंतु कहते हैं जैसे ही औरंगजेब के सैनिकों ने इस मंदिर के प्रांगण में घुसने की कोशिश की उन पर आश्चर्यजनक रूप से एक साथ बहुत अधिक मधुमखियों ने हमला कर दिया , जिससे वह मंदिर तोड़ना तो दूर की बात रही , वह अपनी ही जान बचाकर वहां से भाग निकले ।



[शक्ति पीठ मोटे महादेवन मंदिर में पूजा अर्चना करते श्रद्धालु]


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मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

श्रीमद् भागवत सप्ताह का हुआ समापन


फतेहपुर - असोथर कस्बे के मजरे विधातीपुर,  में चल रही श्रीमद् भागवत सप्ताह का सोमवार को समापन हो गया। 
पीलीकोठी चित्रकूट से आयी कथावाचक  साध्वी मधुबाला ने कथा के महत्व और श्रवण पर प्रकाश डाला। 
उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति से ही जीवन का कल्याण होता है। 
इसलिए आडंबर के बगैर भगवान की भक्ति करनी चाहिए।  श्रीमदभागवत कथा का पारायण मनुष्य की वह अद्वितीय शक्ति है,जो उसके अंत:करण को शुद्ध कर जीवन बदल देती है। 
इसके मूल सारांश का अध्ययन व श्रवन कर अपने जीवन में उतारें। साध्वी मधुबाला ने कहा कथा श्रवण जन्म-जन्मांतर के पुण्य का फल है और बताया कि बड़े भाग्य से मनुष्य का तन मिलता है तथा बड़े सौभाग्य से मनुष्य को कथा सुनने का मौका मिलता है। 
श्रीमद् भागवत मनुष्य को मोक्ष की तरफ ले जाती है। 
भागवत कथा सुनने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। भागवत कल्पवृक्ष है। 
श्रीमद् भागवत अत्यंत गोपनीय रहस्यात्मक पुराण है। 
यह भगवत्स्वरूप का अनुभव कराने वाला और समस्त वेदों का सार है। 
आज अंतिम दिन श्रीमद् भागवत कथा की रसधार पुरे गांव में बहने लगी। 
श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में कृष्ण और सुदामा की लीला अमर-प्रेम मित्रता पर बिशेष चर्चा हुई। 
प्रसंगानुसार जीवंत झांकी निकाली गयी। 
श्रद्धालुओं ने गीत-नृत्य का घंटों आनंद उठाया। 
इस बीच कथावाचक साध्वी मधुबाला ने भगवान की रोचक प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डाला। 
कहा कि भगवान की लीला जीवनोपयोगी है, 
इसे आत्मसात कर हम अपना यही लोक और परलोक दोनों सुधार सकते हैं। 
भगवान कृष्ण की लीला के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान को जो भाव से थोड़ा देता है उसे भगवान संपूर्ण सुख प्रदान कर देते हैं। 
मन-मोहक झाँकियों के माध्यम से प्रभु की सरस ललित ब्रज लीलाओं का प्रस्तुतीकरण किया गया। 
जिसे देखककर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। 
जहां भगवान के नाम नियमित रूप से लिया जाता है। 
वहां सुख, समृद्धि व शांति बनी रहती है। 
जीवन को कर्मशील बनाना है तो श्रीमदभागवत कथा का श्रवण करें। 
यह जीवन जीने की कला सीखाती है।
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सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

शिवरात्रि विशेष - ऐसा शिव मंदिर जहां पर होती हैं हर इच्छा पूरी



✍गौरव सिंह गौतम (संपादक)

फतेहपुर - जनपद फतेहपुर मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर गाजीपुर व असोथर के मध्य में स्थित अति प्राचीन जागेश्वर धाम मंदिर हैं , जो क्षेत्र सहित जनपद फतेहपुर में अलौकिक छटा बिखेर रहा हैं , लोगों की ऐसी मान्यता हैं कि यहाँ पर सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना पूर्ण होती हैं ।
लोगों का मानना हैं व बुजुर्ग जानकर लोगो का कहना हैं कि स्वयंभू शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा महाभारत काल में अज्ञातवास के समय पांडवों ने की थी। 
बाद में असोथर स्टेट के महराज भगवंत राय खींची जी ने जागृत शिवलिंग की पूजा-अर्चना के साथ मेला की शुरुआत कराई।
असोथर-गाजीपुर के मध्य स्थित जागेश्वर धाम से भक्तों की अटूट आस्था है।
महाभारत काल में यह क्षेत्र राज विराट के अधीन था।
यही कुंती पुत्र पांडवों ने अज्ञातवास के समय रहकर जंगल में प्रकट शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कर तप किया था।
बाद में अश्वस्थामा जी इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते रहे। 
एक लोकोक्ति हैं कि एक बार खींची वंश के राजा भगवंत राय ने शिवलिंग की गहराई जानने के लिए खुदाई करवाई तथा उसे सीधा करने के लिए हाथी के पैर में रस्सी बांधकर खिंचवाया गया तो हाथी की मृत्यु हो गई। 
कालांतर में भागलपुर बिहार निवासी प्रवक्ता द्वारा भव्य मंदिर का निर्माण संवत 1950 में करवाया गया। 
इस धाम में महाशिवरात्रि से होली तक 15 दिन का मेला लगता है।
सावन मास में तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। पुजारी त्रिभुवन नाथ गोस्वामी का कहना है कि इस दिव्य धाम में बिहार, मध्य प्रदेश सहित कई जनपद से भक्त दर्शन करने आते हैं।

विश्व के शीर्ष विश्विद्यालयों में एक एमिटी यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ० अजय राणा जी इस शिव मंदिर के अनन्य भक्त हैं अभी पिछले वर्ष 28 जुलाई 2017 को उन्होंने ने सपरिवार इस मंदिर में दर्शन व रूद्राभिषेक किया , और मंदिर परिसर के पास ही एक विश्वविद्यालय खोलने के लिए जमीन भी देखी हैं ।

(जागेश्वर धाम में सपरिवार रुद्राभिषेक करते एमिटी यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ० अजय राणा )

श्रावण मास  के पहले सोमवार व शिवरात्रि को  मंदिर में भक्तों का तांता लगता हैं ,
गाजीपुर व असोथर के मध्य में स्थित जागेश्वर धाम भक्तों की अपार श्रद्धा का केंद्र है ।
मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले हर भक्त की मनोकामना भगवान् भोले नाथ पूरी करते हैं ।

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रविवार, 29 अक्तूबर 2017

रामायण की कहानी हर कोई जानता है, पर उसमें छिपी ये 13 छोटी-छोटी कहानियां आपको नहीं पता होंगी

रामायण हिन्दू धर्म के दो सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है. भगवान राम के जीवन पर आधारित इस ग्रन्थ में लोगों की अपार श्रद्धा है. वाल्मिकी जी द्वारा लिखी गयी रामायण में कई सीखने लायक बातें हैं. लेकिन कई ऐसी बातें भी हैं, जो आपको रामायण के बारे में नहीं पता होंगी. आज हम आपको ऐसी ही कुछ बातें बता रहे हैं.

1. वाल्मिकी ने सबसे पहले रामायण लिखी थी, तुलसीदास ने बाद में रामचरितमानस नाम से इसी का रूपांतर लिखा था.

2. सीता जनक की नहीं, भूदेवी की पुत्री थीं. वो धरती पर मां लक्ष्मी का अवतार थीं.

3. जब रावण भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश गया था, तब उन्हें नंदी ने द्वार पर रोक लिया था. रावण ने नंदी का मज़ाक उड़ाया था. इस पर क्रोधित होकर नंदी ने उसे श्राप दिया था कि उसके साम्राज्य का सर्वनाश बन्दर करेंगे. ये श्राप सच हुआ और वानर सेना द्वारा रावण के साम्राज्य का विनाश हुआ.


4. लक्ष्मण अपने भाई और भाभी की सुरक्षा के लिए इतने तत्पर थे कि वो 14 साल के वनवास के दौरान एक क्षण को भी नहीं सोये. नींद की देवी निंद्रा ने कहा था कि उनकी जगह किसी और को सोना होगा, तो लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला 14 साल तक सोती रहीं. मेघनाद को वरदान मिला था कि उसे केवल वो ही हरा सकता है, जो नींद को हरा चुका हो, इसलिए लक्ष्मण उसका वध कर पाए.

5. राम और उनके भाइयों के जन्म से पहले राजा दशरथ को कौशल्या से शांता नाम की एक बेटी हुई थी. कौशल्या की बड़ी बहन वर्षिणी और उनके पति राजा रोमपद की कोई संतान नहीं थी. दशरथ ने उन्हें अपनी पुत्री दान की थी.

6. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने खुद अपना सिर काट लिया था, लेकिन उसका सिर बार-बार उग जाता था. इस तरह उसने 10 बार अपना सिर काटा. भगवान शिव ने यही दस सिर रावण को लौटाए थे.



7.भगवान राम विष्णु का अवतार थे, भरत उनका सुदर्शन चक्र थे और शत्रुघन उनका शंख, लक्ष्मण को उनके शेष नाग का अवतार माना जाता है.

8. एक बार जब भगवान राम यम से भेंट कर रहे थे, तब उन्होंने लक्ष्मण को पहरा देने के लिए कहा था. यम ने उनके सामने शर्त रखी थी कि जो भी इस बीच उनके कक्ष में प्रवेश करेगा, उसे मरना होगा. इस बीच ऋषि दुर्वासा वहां पहुंच गए और रोके जाने पर अयोध्या को श्राप देने की बात करने लगे. इस पर लक्ष्मण को भीतर जाना पड़ा. इसके बाद उन्होंने सरयू जाकर अपने प्राण त्याग दिए.


9. राम के राजा बनने के बाद, एक बार उनके दरबार में नारद ने हनुमान को विश्वामित्र के अलावा सभी ऋषियों को प्रणाम करने को कहा, क्योंकि विश्वामित्र एक समय पर राजा थे. इसके बाद नारद ने जाकर विश्वामित्र को भड़काया और उन्होंने भगवान राम से हनुमानजी को सज़ा देने को कहा. राम जी अपने गुरु का आदेश नहीं टाल सकते थे, इसलिए उन्होंने हनुमानजी पर तीर चलाये, लेकिन हनुमानजी राम-राम जपते रहे और उन्हें कुछ नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र भी चलाया, पर उसका भी उन पर कोई असर नहीं हुआ. ये देख कर नारदजी ने युद्ध रुकवा दिया.

10. धन के देवता कुबेर, रावण के सौतेले भाई थे. रावण ने उन्हें हरा कर लंका को जीता था.

11. राम सेतु जब बन रहा था, तब एक गिलहरी भी अपना योगदान देना चाहती थी. जब वो छोटे पत्थर उठाकर लायी, तो बंदरों ने उस पर हंसना शुरू कर दिया. इससे दुखी होकर वो श्री राम के पास बैठ गयी. तब श्री राम ने उसे प्यार से सहलाया था, तभी से गिलहरियों के ऊपर धारियां बन गयीं.


12. जब भगवान राम और उनकी सेना से लड़ने के लिए केवल रावण बचा था, तब उसने अपनी विजय के लिए एक यज्ञ करवाया. अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए उसे ये यज्ञ बीच में छोड़ कर नहीं जाना था. ये जानने पर भगवान राम ने बाली के बेटे अंगद को वानर सेना के साथ रावण के महल में भेजा.

वानर वहां जाकर हुडदंग मचाने लगे, लेकिन रावण पर कोई असर नहीं हुआ. अंगद ने मंदोदरी के बाल खींचना शुरू कर दिया. मंदोदरी ने इस पर रावण को ताना मारा कि राम अपनी पत्नी के लिए कितना कुछ कर रहे हैं और उसे भी मंदोदरी की रक्षा करनी चाहिए. इस पर रावण को यज्ञ छोड़ना पड़ा और उसकी हार हुई.



13. युद्ध के बाद हनुमानजी हिमालय चले गए थे. वहां उन्होंने पहाड़ों पर अपने नाखूनों से खोद कर भगवान राम की कहानी लिख दी थी. जब वाल्मिकी अपनी रामायण दिखाने वहां पहुंचे, तो ये देख कर निराश हो गए कि हनुमानजी की राम कथा उनसे बेहतर है. ये देख कर हनुमानजी ने अपनी राम कथा को मिटा डाला.
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गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

माता पार्वती के पसीने की बूंद से हुई इस पेड़ की उत्पत्ति

इंटरनेट डेस्क। हिंदू धर्म में बेलपत्र का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करता है और उन्हें बेलपत्र अर्पित करता है तो भगवान उसकी हर इच्छा पूरी करते हैं। क्या आपको पता है भगवान शिव पर बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है और इसके पीछे क्या कहानी छिपी हुई है, अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं .......

बेलपत्र की कहानी :-
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदृंचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ। माना जाता है कि इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं।

फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
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सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनों ने निर्जला व्रत रखा, खूब चला सेल्फी का दौर

सुहागिनों ने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखकर करवाचौथ का त्योहार उत्साह और श्रद्धा से मनाया।
इसे लेकर बाजारों में रौनक छाई रही।

महिलाओं ने इस त्योहार को लेकर जमकर खरीदारी की। सुहागिनों ने सोलह शृंगार कर दिनभर व्रत रखकर पति की दीर्घायु की कामना की।
महिलाओं ने सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना की और करवाचौथ की कहानी सुनी।
करवाचौथ के पर्व को लेकर महिलाओं में भारी उत्साह दिखाई दिया।
बाजारों में मिट्टी के करवा और कथा के कलेंडरों की जमकर बिक्री होती देखी गई।
नकली गहनों व कांच की चूड़ियों की दुकानों पर भी महिलाओं की भारी भीड़ देखी गई, पति भी अपनी पत्नियों को खुश करने के लिए अच्छे से अच्छा उपहार खरीदने में जुटे रहे।
इसे लेकर ज्वेलर्स के यहां भी अच्छी खासी भीड़ रही।
सुबह से ही महिलाओं ने मंदिरों में पूजा अर्चना की।
फिर दोपहर बाद सुहागिनों ने सामूहिक रूप से पूजा अर्चना की और बुजुर्ग महिलाओं से कथा सुनी।
महिलाओं ने इकट्ठा होकर पूजा के दौरान एक दूसरे से करवा बदले और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की।
इनमें कुछ नवविवाहिताओं के अलावा ऐसी कुंवारी युवतियां भी थीं, जिनका निकट भविष्य में विवाह होने वाला है।
उन्होंने भी अपने होने वाले वर की सलामती के लिए व्रत रखकर ईश्वर से मंगल की प्रार्थना की। कुछ पतियों ने भी दांपत्य जीवन सुखमय बनाए रखने के लिए व्रत रखकर ईश्वर से प्रार्थना की। कृष्णबिहारी नगर निवासी पूजा,  अमरजई की मीनाक्षी व ऋतु आदि ने बताया कि उनका यह पहला करवाचौथ था।
इसके लिए दो दिन पहले से ही ब्यूटी पार्लर से शृंगार का सामान लाकर व मेहंदी लगवाकर विशेष तैयारी कर रखी थी।
यह पर्व पति के प्रति समर्पण और प्रेम दर्शता है।

बाजारों में रही भीड़ :

करवा चौथ को लेकर बाजारों में जमकर खरीदारी हुई।
इसके चलते शहर के विभिन्न बाजारों में भीड़ रही। चौक बाजार , शॉपिंग मॉल के अलावा देवीगंज , हरिहरगंज के बाजारों में दुकानों पर अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली।
दुकानदार भी इस मौके को भुनाने में पीछे नहीं रहे।
उन्होंने अपना सामान दुकानों से बाहर निकालकर सजाया हुआ था।
रविवार को छुट्टी के चलते लोगों ने बाजारों में समय व्यतीत किया।
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बीमार महिलाओं ने भी रखा व्रत :

सौभाग्यवती (सुहागिन) महिलाओं में करवा चौथ को लेकर आस्था देखने लायक थी। पति की दीर्घायु के लिए गंभीर बीमारियों की चपेट में रहने के बावजूद कई महिलाओं ने यह व्रत रखा।
उन्होंने तड़के चार बजे से पहले दवाई-गोली की खुराक ली।
इसके बाद उन्होंने अपना विधिवत रूप से व्रत रखा। राधानगर निवासी किडनी रोग से पीड़ित माया सिंह ने बड़ी श्रद्धा से यह व्रत रखा।
उन्होंने दवाई रात में ही ले ली।
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क्यों रखा जाता है करवा चौथ का व्रत :

किवदंती कथाओं के अनुसार करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति से अटूट प्रेम करती थी।
उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। वह अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी।
एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया।
तभी एक मगरमच्छ ने उसके पति के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। पतिव्रता करवा नामक स्त्री ने यम देवता का आह्वान कर कहा-यदि मेरे सुहाग को कुछ हुआ तो अपनी पतिव्रता शक्ति से यमदेव व यमलोक का नाश कर देगी। यमराज ने उसकी दिव्य शक्ति व पतिव्रत धर्म से घबरा कर उसके पति को सुरक्षित वापस कर दिया और मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन से गणेश चतुर्थी को स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु के लिए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चुतर्थी को रखे जाने वाला व्रत करवा चौथ के नाम से जाना जाने लगा।

सफाई के साथ पौधरोपण करके मनाया करवाचौथ :

कस्बा असोथर में महिलाओं ने करवाचौथ का त्योहार घरों में फूलों के पौधे लगाकर मनाया। साथ ही कुछ महिलाओं ने घरों में सफाई अभियान भी चलाया।

खूब चला सेल्फी का दौर

शृंगार नारी की शोभा है तो सबसे बड़ी कमजोरी भी।
करवा चौथ के पूजन के लिए जुटी महिलाओं के बीच अपने शृंगार को कैमरे में कैद कर लेने की होड सी मची रही।
महिलाएं अपनी सखियों के साथ सेल्फी लेते हुए प्रसन्नचित्त नजर आ रही थीं।
पूजन से पहले और बाद तो सेल्फी समझ में आई लेकिन पूजन के दौरान भी कुछ महिलाएं सेल्फी में मगन दिखीं।
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शनिवार, 30 सितंबर 2017

दशहरा या विजयदशमी : किस विजय का प्रतीक हैं?


दशहरा और विजयादशमी नवरात्री के नौ दिनों के बाद आता है। इस दशमी को विजय दशमी क्यों कहते हैं? किस विजय का प्रतीक है ये?

नवरात्रि और दशहरा ऐसे सांस्कृतिक उत्सव हैं जो सभी के लिए महत्वपूर्ण और अहम हैं। ये उत्सव चैतन्‍य के देवी स्वरुप को पूरी तरह से समर्पित है। कर्नाटक में दशहरा चामुंडी से जुड़ा है, और बंगाल में दुर्गा से। इस तरह से अलग-अलग जगहों पर यह अलग-अलग देवियों से जुड़ा है, पर मुख्य रूप से स्त्रीत्व या देवी के बारे में ही है।

दशहरा – उत्सव का दसवां दिन

नवरात्रि, बुराई और ऊधमी प्रकृति पर विजय पाने के प्रतीकों से भरपूर है। इस त्यौहार के दिन, जीवन के सभी पहलुओं के प्रति, जीवन में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तूओं के प्रति अहोभाव प्रकट किया जाता है। नवरात्रि के नौ दिन, तमस रजस और सत्व के गुणों से जुड़े हैं। पहले तीन दिन तमस के होते हैं, जहां देवी रौद्र रूप में होती हैं – जैसे दुर्गा या काली। उसके बाद के तीन दिन लक्ष्मी को समर्पित हैं – ये देवी सौम्य हैं, पर भौतिक जगत से सम्बंधित हैं। आखिरी तीन दिन सरस्वती देवी यानि सत्व से जुड़े हैं, ये ज्ञान और बोध से सम्बंधित हैं।

दशहरा –  जीत का दिन

इन तीनों में अपना जीवन समर्पित करने से आपके जीवन को एक नया रूप मिलता है। अगर आप तमस में अपना जीवन लगाते हैं तो आपके जीवन को एक तरह की शक्ति आएगी। अगर आप रजस में अपना जीवन लगाएंगे, तो आप किसी अन्य तरीके से शक्तिशाली होंगे। और अगर आप सत्व में अपना जीवन लगाएंगे, तो एक बिलकुल अलग तरीके से शक्तिशाली बन जाएंगे। लेकिन अगर आप इन सबसे परे चले जाएं तो फिर ये शक्तिशाली बनने की बात नहीं होगी, फिर आप मुक्ति की ओर चले जाएंगे। नवरात्रि के बाद दसवां और अंतिम दिन विजयादशमी या दशहरा का होता है –  इसका मतलब है कि आपने इन तीनों पर विजय पा ली है। आपने इन में से किसी के भी आगे घुटने नहीं टेके, आपने हर गुण के आर-पार देखा। आपने हर गुण में भागीदारी निभाई, पर आपने अपना जीवन किसी गुण को समर्पित नहीं किया। आपने सभी गुणों को जीत लिया। ये ही विजयदशमी है – विजय का दिन। इसका संदेश यह है – कि जीवन की हर महत्वपूर्ण वस्तु के प्रति अहोभाव और कृतज्ञता का भाव रखने से कामयाबी और विजय प्राप्त होती है।

दशहरा – भक्ति और अहोभाव

हम अपने जीवन को सफल बनाने के लिए बहुत से उपकरणों को काम में लाते हैं। जिन उपकरणों से हम अपना जीवन रचते हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण हमारा अपना शरीर और मन है। जिस धरती पर हम चल्रते हैं, जिस हवा में सांस लेते हैं, जो पानी हम पीते हैं और जो खाना खाते हैं – इन सभी वस्तूओं के प्रति अहोभाव रखने से हमारे जीवन में एक नई संभावना पैदा हो सकती है। इन सभी पहलुओं के प्रति अहोभाव और भक्ति रखने से हमें अपने सभी प्रयत्नों में सफलता मिलेगी।

दशहरा प्रेम और उल्लास के साथ मनाएं

इस तरह से नवरात्रि के नौ दिनों के प्रति या जीवन के हर पहलू के प्रति एक उत्सव और उमंग का नजरिया रखना और उसे उत्सव की तरह मनाना सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आप जीवन में हर चीज को एक उत्सव के रूप में लेंगे तो आप बिना गंभीर हुए जीवन में पूरी तरह शामिल होना सीख जाएंगे। दरअसल ज्यादातर लोगों के साथ दिक्क्त यह है कि जिस चीज को वो बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं उसे लेकर हद से ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। अगर उन्हें लगे कि वह चीज महत्वपूर्ण नहीं है तो फिर उसके प्रति बिल्कुल लापरवाह हो जाएंगे- उसमें जरूरी भागीदारी भी नहीं दिखाएंगे। जीवन का रहस्य यही है कि हर चीज को बिना गंभीरता के देखा जाए, लेकिन उसमें पूरी तरह से भाग लिया जाए- बिल्कुल एक खेल की तरह।

भारतीय परंपरा में दशहरा हमेशा उल्लास से भरपूर त्यौहार रहा है, जहां समाज के सभी लोग एक साथ मिलकर नाचते और घुल मिल जाते हैं। लेकिन पिछले दो सौ सालों के बाहरी आक्रमणों और बाहरी प्रभावों की वजह से, ये परंपरा अब खो गयी है। वरना दशहरा हमेशा से ही उल्लास से भरा रहा है। बहुत सी जगहों में ये अब भी उल्लास से भरपूर है, पर अन्य जगहों पर यह परंपरा खो रही है। हमें इसे फिर से स्थापित करना होगा। विजयदशमी या दशहरा इस देश में सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है – चाहे वो किसी भी जाति, वर्ग या धर्म का हो – और इसे उल्लास  और प्रेम के साथ मनाया जाना चाहिए। ये मेरी इच्छा और आशीर्वाद है कि आप दशहरा पूरी भागीदारी, आनंद और प्रेम के साथ मनाएं।
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