बुधवार, 15 अप्रैल 2020

फतेहपुर - सूखे ताल-तलैया, पानी के लिए भटक रहे बेजुबान


फतेहपुर - सूखे ताल-तलैया, पानी के लिए भटक रहे बेजुबान


फतेहपुर : इस समय गर्मी चरम पर है। लोग कोरोना महामारी से तो परेशान हैं ही लॉकडाउन में 
गरम तेज हवाओं के थपेड़े आदमी तो क्या जानवरों तक को झुलसा रहा है, लेकिन इन बेजुबानों को प्यास बुझाने के लिए न तो तालाबों में पानी है और न ही नहरों, पोखरों में पानी बचा है। 
तापमान 42 डिग्री के पार पहुंच जाने से पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है जिससे चहुंओर पानी का संकट खड़ा हो गया है। 
सबसे अधिक परेशानी जानवरों को हो रही है जिन्हें पीने तक को पानी नहीं मिल रहा है। 
आजकल बिन पानी सब सून वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। 

खासकर गांवों के हालात तो बहुत खराब हैं।

गांव के तालाब, पोखरे, गड्ढे सब सूखे पड़े हैं। 
पानी की एक बूंद भी तालाबों या पोखरों में दिखाई नहीं दे रही है। पानी के लिए व्याकुल जानवर पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। 

आलम यह है कि सिचाई विभाग की नहरें भी सूख चुकी हैं। 
ऐसे में ग्रामीणों को कुएं-पोखरे की याद सताने लगी है जिन्हें खुद उन्होंने बर्बाद कर डाला है। रही-सही कसर प्रशासन की तालाबों एवं पोखरों के प्रति उदासीनता ने खत्म कर दी। 

पानी की कमी से बिलबिलाते पशु-पक्षी अपनी परेशानी बताएं तो किससे। 
उनकी मजबूरी भी कोई समझने वाला नहीं है। 
असोथर क्षेत्र के ग्रामसभा सरकंडी , बेर्राव , कंधिया , बिलारीमउ , गोपलापुर मनावां आदि दर्जनों गांवों के तालाबों में पानी की एक बूंद भी नहीं बची है। 
तालाबों व नहरों से उड़ती धूल, सूखी वनस्पतियां स्वयं ही हालात को बयां कर रही हैं। 

चिलचिलाती धूप में जानवर पानी में नहाकर तरोताजा भी नहीं हो पा रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि पानी की कमी से जानवरों को भारी परेशानी हो रही है। 

हैंडपंपों का जलस्तर गिर रहा है। अधिकतर खराब हैं। 
जो सही भी हैं उनमें पानी कम रह गया है। 
कुछ समय चलाने के बाद पानी की एक बाल्टी भर पाती है। 
ऐसे में जानवरों के शरीर का तापमान कम नहीं किया जा सकता है। 
अत्यधिक गर्मी का असर दुधारू मवेशियों पर पड़ रहा है। 
ग्रामीणों ने प्रशासन से इस ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कारगर कदम उठाने की मांग की है। 

जरौली पम्प कैनाल बंद होने से जायद फसलें सूखने की कगार पर

सूखी असोथर की नहर

असोथर विकास खंड क्षेत्र के जरौली गांव के पास यमुना नदी में पंप कैनाल लगा है। 
इसमें सात पंपों से 400 क्यूसेक पानी निकालने वाली क्षमता की मशीनें लगी हुई हैं।
जिससे असोथर क्षेत्र के अलावा, विजयीपुर, धाता विकास खंड क्षेत्र के किसान फसलों की सिंचाई करते हैं।
इसके बावजूद नहर से धूल का गुबार उठ रहा है। 
बता दें कि क्षेत्र की सिचाई व्यवस्था जरौली पंप कैनाल पर निर्भर है। परन्तु पूर्व में जरौली पंप कैनाल नहर के रास्तों पर पड़ने वाले पुल , नहर पटरी आदि के निर्माण के लिए पंप कैनाल को बंद किया गया था , पर इस समय कोरोना महामारी के चलते 3 मई तक लॉकडाउन के चलते सभी निर्माण कार्य बंद हैं , किसानों का कहना हैं , कि सिंचाई विभाग चाहें तो कैनाल के एक दो पंप ही फिलहाल शुरू कर दे जिससे किसानों सहित जानवरों पानी मिलने से  काफी राहत मिल जाएंगी ।
नहरों के भरोसे जायद की फसल मूंग , उड़द , व सब्जियों की खेती भिंडी , तरोई , खीरा , करेला आदि की खेती करने वाले किसान पानी के लिए व्याकुल हो रहे हैं। 
साथ ही प्रतिदिन नहर में पानी आने की बाट जोह रहे हैं।

विधातीपुर गांव निवासी किसान बिंदराज पासवान ने बताया कि नहर में पानी न आने से इस क्षेत्र के किसान मूंग , उड़द  की फसल में समय से पानी न लगा पाने के लिए विवश हैं। 
यह हम किसानों पर आघात जैसा है।
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शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

राजस्थान के किसान ने अपने गांव को बना दिया मिनी इजरायल , सालाना 1 करोड़ की कमाई


राजस्थान के किसान ने अपने गांव को बना दिया मिनी इजरायल , सालाना 1 करोड़ की कमाई


खेती किसानी के मामले में इजरायल को दुनिया का सबसे हाईटेक देश माना जाता है। वहां रेगिस्तान में ओस से सिंचाई होती है, दीवारों पर गेहूं, धान उगाए जाते हैं, भारत के लाखों लोगों के लिए ये एक सपना ही है। इजरायल की तर्ज पर राजस्थान के एक किसान ने खेती शुरू की और आज उनका सालाना टर्नओवर सुन कर आप उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे।

दिल्ली से करीब 300 किलोमीटर दूर राजस्थान के जयपुर जिले में एक गांव है गुड़ा कुमावतान। ये किसान खेमाराम चौधरी (45 वर्ष) का गांव है। खेमाराम ने तकनीकी और अपने ज्ञान का ऐसा तालमेल भिड़ाया कि वो लाखों किसानों के लिए उदाहरण बन गए हैं। आज उनका मुनाफा लाखों रुपए में है। खेमाराम चौधरी ने इजरायल के तर्ज पर चार साल पहले संरक्षित खेती (पॉली हाउस) करने की शुरुआत की थी। आज इनके देखादेखी आसपास लगभग 200 पॉली हाउस बन गये हैं, लोग अब इस क्षेत्र को मिनी इजरायल के नाम से जानते हैं। खेमाराम अपनी खेती से सलाना एक करोड़ का टर्नओवर ले रहे हैं।
सरकार की तरफ से इजरायल जाने का मिला मौका
राजस्थान के जयपुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर गुड़ा कुमावतान गांव है। इस गाँव के किसान खेमाराम चौधरी (45 वर्ष) को सरकार की तरफ से इजरायल जाने का मौका मिला। इजरायल से वापसी के बाद इनके पास कोई जमा पूंजी नहीं थी लेकिन वहां की कृषि की तकनीक को देखकर इन्होंने ठान लिया कि उन तकनीकाें को अपने खेत में भी लागू करेंगे।
सरकारी सब्सिडी से लगाया पहला पॉली हाउस
चार हजार वर्गमीटर में इन्होने पहला पॉली हाउस सरकार की सब्सिडी से लगाया। खेमाराम चौधरी गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “एक पॉली हाउस लगाने में 33 लाख का खर्चा आया, जिसमे नौ लाख मुझे देना पड़ा जो मैंने बैंक से लोन लिया था, बाकी सब्सिडी मिल गयी थी। पहली बार खीरा बोए करीब डेढ़ लाख रूपए इसमे खर्च हुए।
चार महीने में ही 12 लाख रुपए का खीरा बेचा, ये खेती को लेकर मेरा पहला अनुभव था।” वो आगे बताते हैं, “इतनी जल्दी मै बैंक का कर्ज चुका पाऊंगा ऐसा मैंने सोचा नहीं था पर जैसे ही चार महीने में ही अच्छा मुनाफा मिला, मैंने तुरंत बैंक का कर्जा अदा कर दिया। चार हजार वर्ग मीटर से शुरुआत की थी आज तीस हजार वर्ग मीटर में पॉली हाउस लगाया है।”
मिनी इजरायल के नाम से मशहूर है क्षेत्र
खेमाराम चौधरी राजस्थान के पहले किसान थे जिन्होंने इजरायल के इस माडल की शुरुआत की थी। आज इनके पास खुद के सात पॉली हाउस हैं, दो तालाब हैं, चार हजार वर्ग मीटर में फैन पैड है, 40 किलोवाट का सोलर पैनल है। इनके देखादेखी आज आसपास के पांच किलोमीटर के दायरे में लगभग 200 पॉली हाउस बन गये हैं।
इस जिले के किसान संरक्षित खेती करके अब अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। पॉली हाउस लगे इस पूरे क्षेत्र को लोग अब मिनी इजरायल के नाम से जानते हैं। खेमाराम का कहना है, “अगर किसान को कृषि के नये तौर तरीके पता हों और किसान मेहनत कर ले जाए तो उसकी आय 2019 में दोगुनी नहीं बल्कि दस गुनी बढ़ जाएगी।”
मुनाफे का सौदा है खेती
अपनी बढ़ी आय का अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “आज से पांच साल पहले हमारे पास एक रुपए भी जमा पूंजी नहीं थी, इस खेती से परिवार का साल भर खर्चा निकालना ही मुश्किल पड़ता था। हर समय खेती घाटे का सौदा लगती थी, लेकिन जबसे मैं इजरायल से वापस आया और अपनी खेती में नये तौर-तरीके अपनाए, तबसे मुझे लगता है खेती मुनाफे का सौदा है, आज तीन हेक्टयर जमीन से ही सलाना एक करोड़ का टर्नओवर निकल आता है।”
खेमाराम ने अपनी खेती में 2006-07 से ड्रिप इरीगेशन 18 बीघा खेती में लगा लिया था। इससे फसल को जरूरत के हिसाब से पानी मिलता है और लागत कम आती है। ड्रिप इरीगेशन से खेती करने की वजह से जयपुर जिले से इन्हें ही सरकारी खर्चे पर इजरायल जाने का मौका मिला था जहाँ से ये खेती की नई तकनीक सीख आयें हैं।
इजरायल मॉडल पर खेती करने से दस गुना मुनाफा
जयपुर जिले के बसेड़ी और गुढ़ा कुमावतान गाँव के किसानों ने इजरायल में इस्तेमाल होने वाली पॉली हाउस आधारित खेती को यहां साकार किया है। नौवीं पास खेमाराम की स्तिथि आज से पांच साल पहले बाकी आम किसानों की ही तरह थी। आज से 15 साल पहले उनके पिता कर्ज से डूबे थे। ज्यादा पढ़ाई न कर पाने की वजह से परिवार के गुजर-बसर के लिए इनका खेती करना ही आमदनी का मुख्य जरिया था। ये खेती में ही बदलाव चाहते थे, शुरुआत इन्होने ड्रिप इरीगेशन से की थी। इजरायल जाने के बाद ये वहां का माडल अपनाना चाहते थे।
कृषि विभाग के सहयोग और बैंक के लोंन लेने के बाद इन्होने शुरुआत की। चार महीने में 12 लाख के खीर बेचे, इससे इनका आत्मविश्वास बढ़ा। देखते ही देखते खेमाराम ने सात पॉली हाउस लगाकर सलाना का टर्नओवर एक करोड़ का लेने लगे हैं। खेमाराम ने बताया, “मैंने सात अपने पॉली हाउस लगाये और अपने भाइयों को भी पॉली हाउस लगवाए, पहले हमने सरकार की सब्सिडी से पॉली हाउस लगवाए लेकिन अब सीधे लगवा लेते हैं, वही एवरेज आता है, पहले लोग पॉली हाउस लगाने से कतराते थे अभी दो हजार फाइलें सब्सिडी के लिए पड़ी हैं।”
इनके खेत में राजस्थान का पहला फैन पैड

फैन पैड (वातानुकूलित) का मतलब पूरे साल जब चाहें जो फसल ले सकते हैं। इसकी लागत बहुत ज्यादा है इसलिए इसकी लगाने की हिम्मत एक आम किसान की नहीं हैं। 80 लाख की लागत में 10 हजार वर्गमीटर में फैन पैड लगाने वाले खेमाराम ने बताया, “पूरे साल इसकी आक्सीजन में जिस तापमान पर जो फसल लेना चाहें ले सकते हैं, मै खरबूजा और खीरा ही लेता हूँ, इसमे लागत ज्यादा आती है लेकिन मुनाफा भी चार गुना होता है।
डेढ़ महीने बाद इस खेत से खीरा निकलने लगेगा, जब खरबूजा कहीं नहीं उगता उस समय फैन पैड में इसकी अच्छी उपज और अच्छा भाव ले लेते हैं।” वो आगे बताते हैं, “खीरा और खरबूजा का बहुत अच्छा मुनाफा मिलता है, इसमें एक तरफ 23 पंखे लगें हैं दूसरी तरफ फब्बारे से पानी चलता रहता है ,गर्मी में जब तापमान ज्यादा रहता है तो सोलर से ये पंखा चलते हैं,फसल की जरूरत के हिसाब से वातावरण मिलता है, जिससे पैदावार अच्छी होती है।”
ड्रिप इरीगेशन और मल्च पद्धति है उपयोगी
ड्रिप से सिंचाई में बहुत पैसा बच जाता है और मल्च पद्धति से फसल मौसम की मार, खरपतवार से बच जाती है जिससे अच्छी पैदावार होती है। तरबूज, ककड़ी, टिंडे और फूलों की खेती में अच्छा मुनाफा है। सरकार इसमे अच्छी सब्सिडी देती है, एक बार लागत लगाने के बाद इससे अच्छी उपज ली जा सकती है।
तालाब के पानी से करते हैं छह महीने सिंचाई
खेमाराम ने अपनी आधी हेक्टेयर जमीन में दो तालाब बनाए हैं, जिसमें बरसात का पानी एकत्रित हो जाता है। इस पानी से छह महीने तक सिंचाई की जा सकती है। ड्रिप इरीगेशन और तालाब के पानी से ही पूरी सिंचाई होती है। ये सिर्फ खेमाराम ही नहीं बल्कि यहाँ के ज्यादातर किसान पानी ऐसे ही संरक्षित करते हैं। पॉली हाउस की छत पर लगे माइक्रो स्प्रिंकलर भीतर तापमान कम रखते हैं। दस फीट पर लगे फव्वारे फसल में नमी बनाए रखते हैं।
सौर्य ऊर्जा से बिजली कटौती को दे रहे मात
हर समय बिजली नहीं रहती है, इसलिए खेमाराम ने अपने खेत में सरकारी सब्सिडी की मदद से 15 वाट का सोलर पैनल लगवाया और खुद से 25 वाट का लगवाया। इनके पास 40 वाट का सोलर पैनल लगा है। ये अपना अनुभव बताते हैं, “अगर एक किसान को अपनी आमदनी बढ़ानी है तो थोड़ा जागरूक होना पड़ेगा।
खेती से जुड़ी सरकारी योजनाओं की जानकारी रखनी पड़ेगी, थोड़ा रिस्क लेना पड़ेगा, तभी किसान अपनी कई गुना आमदनी बढ़ा सकता है।” वो आगे बताते हैं, “सोलर पैनल लगाने से फसल को समय से पानी मिल पाता है, फैन पैड भी इसी की मदद से चलता है, इसे लगाने में पैसा तो एक बार खर्च हुआ ही है लेकिन पैदावार भी कई गुना बढ़ी है जिससे अच्छा मुनाफा मिल रहा है, सोलर पैनल से हम बिजली कटौती को मात दे रहे हैं।”
रोजाना इनके मिनी इजरायल को देखने आते हैं किसान
राजस्थान के इस मिनी इजरायल की चर्चा पूरे राज्य के साथ कई अन्य प्रदेशों और विदेश के भी कई हिस्सों में है। खेती के इस बेहतरीन माडल को देखने यहाँ किसान हर दिन आते रहते हैं। खेमाराम ने कहा, “आज इस बात की मुझे बेहद खुशी है कि हमारे देखादेखी ही सही पर किसानों ने खेती के ढंग में बदलाव लाना शुरू किया है। इजरायल माडल की शुरुआत राजस्थान में हमने की थी आज ये संख्या सैकड़ों में पहुंच गयी है, किसान लगातार इसी ढंग से खेती करने की कोशिश में लगें हैं।
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बुधवार, 29 अगस्त 2018

Sonalika Tractors contributes Rs. 1 crore along with 5 tractors towards rebuilding Kerala

Sonalika Tractors contributes Rs. 1 crore along with 5 tractors towards rebuilding Kerala
tractor news
New Delhi, 29th August 2018: India’s youngest & fastest growing tractor brand, Sonalika International Tractors Limited today donated Rs.1 crore towards Kerala’s Flood Relief Fund. Along with this the company also contributed 5 multi-purpose heavy duty tractors, which will be used in the restoration activities.
Sonalika, being customer-centric & society focused brand, is committed to provide relief and rehabilitation to the people who were affected by the devastation caused by torrential rains and floods.
Mr. Raman Mittal, Executive Director, Sonalika Group said, “We at Sonalika, feel emotionally bonded towardsthe community and are committed to support in rebuilding of Kerala. Beyond this contribution of Rs.1 crore& 5 tractors we are committed to contribute in every possible way for restoration of the devastated infrastructure and helping rebuild lives of the affected people.”
Mr. Mudit Gupta, President, Sonalika Group presenting the contribution to Shri PinarayiVijayan, Chief Minister of Kerala.
About Sonalika International Tractors Limited
Being farmer centric at its core, India’s youngest and fastest growing tractor brand, Sonalika International Tractors Limited has built the World’s No.1 largest integrated tractor manufacturing plant in Hoshiarpur. This world class plant is fully equipped to manufacture each component required in making of a tractor- from sheet metal to the whole tractor. Being India’s youngest and fastest growing tractor brand, Sonalika ITL export tractors to over 100 countries and holds leadership position across 4 countries. The company in India stand strong as the 3rd largest tractor manufacturing company growing rapidly by providing best customized solutions. 
With the understanding that each farmer growing different crops have different needs Sonalika offers customized solutions in the widest heavy duty product range from 20-120HP. This farmer centric approach acts as an enabler to earn trust of over 8 lakh farmers globally and being chosen by Govt. of India as a contributing partner with NITI Aayog for doubling farmer’s income by year 2022.
With the new futuristic plant, a well-equipped state-of-the-art research and development center, consistency in the quality of products and services and with a robust growth year on year, Sonalika is on a path of becoming the No.1 Global Tractor brand
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शनिवार, 23 जून 2018

लेट होता मानसून बनेगा सब के लिए मुसीबत, झेलनी पड़ेगी महंगाई की मार


लेट होता मानसून बनेगा सब के लिए मुसीबत, झेलनी पड़ेगी महंगाई की मार 

फतेहपुर - समय से पहले देश में आने वाला मानसून अब ठहर गया है। 

 कृषि प्रधान इलाकों में मानसून समय से आ जाता था। इस बार मानसून सप्ताह भर लेट हो चुका है। 
 छत्तीसगढ़ में फंसा मानसून अब कितने दिन में सक्रिय होगा इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। 
मानसून की देरी से किसान चिंता में आ गए हैं। 
प्री मानसूनी बादलों की सक्रियता भी थमने की वजह से अब धान की पौध पर सूखे की मार पड़ सकती हैं। 
जितने दिन मानसून देर से आएगा।
उतना ही किसान के साथ एक आम आदमी को भी महंगाई के जरिए परेशानी झेलनी पड़ सकती हैं। 

फसल हो रही हैं प्रभावित


जानकारी के अनुसार अगर 26 जून के बाद भी मानसून लेट होता है तो कुल औसत का 20-25 प्रतिशत तक किसानों की उपज प्रभावित होगी। लंबी अवधि की लगने वाली वाली प्रजाति की नर्सरी भी इस समय तक लग जाती थी, लेकिन मानसून की देरी से अब तक नहीं लग पाई हैं। छोटी और मध्यम अवधि वाली प्रजाति की नर्सरी 20 जून के बाद ही लगती है। 
 फतेहपुर ज़िले के असोथर व अन्य क्षेत्रों में धान बहुत ज़्यादा होता हैं।
मगर यह इलाका भी मानसून न आने की वजह से प्रभावित हुआ हैं।
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शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

फतेहपुर जिले का यह कृषक सिर्फ 2 घंटे खेत में काम कर, हर महीने कमाता है 15 से 20 हजार रुपए



गौरव सिंह (editor)

फतेहपुर / मलवां - जिले के किसान अमित पटेल पिछले 13 वर्षों से हरी धनिया की खेती कर रहे हैं। वह दिन में सिर्फ दो घंटे की मेहनत करके हरी धनिया बेचकर हर महीने 15 से 20 हजार रुपये आसानी से कमा रहे हैं।


अमित की माने तो सालाना डेढ़ बीघे खेत से धनिया की खेती  कर दो लाख रुपये कमा रहे हैं। 

12 महीने धनिया की फसल उगाने वाले अमित पटेल (28 वर्ष) उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जिले से 26 किलोमीटर दूर मलवां ब्लॉक के रहने वाले हैं।

अमित पटेल बताते हैं, “हमारे यहाँ बंदर बहुत ज्यादा हैं। 
कोई भी फसल करो तो ये बहुत नुकसान करते हैं, इसलिए मैंने सोंचा क्यों न धनिया की फसल की जाये। 
तब धनिया की खेती शुरू की और पिछले 13 वर्षों से धनिया की खेती कर रहा हूं और अच्छा मुनाफा मिल रहा है।

“ वो आगे बताते हैं, “सुबह शाम मिलाकर दो घंटे ही खेत पर निराई करने जाता हूँ। 

बाजार से हर दिन भाव के हिसाब से 800 से लेकर 2000 रुपये तक कमा लेता हूं।“

अमित पटेल बताते हैं, 
“एक बीघा में 40 क्यारी बनाते हैं, इसके बाद बुवाई कर देते हैं। 
ऐसे में 40 दिन में धनिया बेचने के लिए तैयार हो जाती है।
“ वहीं, किसान रामकुमार (45 वर्ष)बताते हैं, 
“हरी धनिया की फसल के लिए दोमट मिट्टी उत्तम है। 
धनिया की फसल में इस बात का ध्यान रखना है कि खेत में पानी न रुकता हो। 
जबसे हरी धनिया की खेती की है तबसे हर दिन 800-1200 रुपये तक की बिक्री हो जाती है।“



हरी के साथ सूखी धनिया की भी मिलती है अच्छी कीमत।
धनिया की बुवाई और देखरेख का तरीका
एक बीघे में 10 किलो धनिया का बीज लगता है। 
धनिया बारह महीने चलती है इसलिए किसी भी महीने इसकी बुवाई कर सकते हैं। 
बुवाई के दसवें दिन पहला पानी और जैविक खाद डालते है, दूसरा पानी 20 दिन के आस-पास लगाते हैं।

दूसरे पानी के दौरान ही 35 से 40 किलो डीएपी डालते हैं। 
अगर तापमान डाउन है तो 25 दिन के अन्दर 250-300 ग्राम यूरिया का स्प्रे कर देते हैं। 
एक टंकी में 16 लीटर पानी में 100 ग्राम यूरिया डालते हैं बीघे भर में तीन टंकी का छिड़काव करते हैं। 
जब गर्मी ज्यादा पड़ती है तो हफ्ते में दो बार पानी लगाना पड़ता हैं। इस बारे में किसान अमित पटेल बताते हैं कि जिस दिन भी धनिया बोयें उसके 40वें दिन वो तैयार मिलेगी। इसके बाद फिर उसी क्यारी में धनिया बो दें। 
धनिया बोते समयांतराल का विशेष ध्यान रखें।
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गुरुवार, 9 नवंबर 2017

सैनिक कीट का प्रकोप, पकी खड़ी धान की फसल को कर रहा रातों रात सफाचट , हाड़तोड़ मेहनत के बाद तैयार, पकी धान की फसल को बचाने के लिए जूझ रहे अन्नदाता

✍आत्म गौरव न्यूज़ संपादक - (गौरव सिंह) #9936846600
उत्तरप्रदेश / फतेहपुर - इन दिनों जनपद फतेहपुर के धान उत्पादन में जिले व इलाहाबाद मंडल में अग्रणी विकासखंड असोथर के किसान इन दिनों धान की पकी खड़ी फसल में सैनिक कीट के प्रकोप से जूझ रहे हैं।

बस कुछ ही दिनों में कटने के लिए तैयार खड़ी फसल में सैनिक कीट के प्रकोप से किसान खासा परेशान हैं
इन दिनों असोथर क्षेत्र के किसानों की फसल पर इस कीट का प्रकोप दिखाई पड़ रहा हैं।
जाड़ा देर से पड़ने पर यह और भी भीषण रूप में कीट यकायक प्रकट हो रहा है, रातो रात में पकी बालियाँ काटकर नीचे गिरा देता है।
इस कीट की हरेपीले रंग की 1.5 इंच लम्बी सूंडी जिनके शरीर पर लम्बाई में 4 कालीभूरी धारियां होती हैं, प्रायः दिन के समय जमीन के साथ ही पौधे के कल्लों के बीच छिपी रहती है,
खेत मे पानी रहने पर पानी की सतह से ऊपर; सांझ का धुंधलका होते ही ऊपर आकर बालियाँ काटनी प्रारम्भ कर देती हैं।
धान की कटाई के पश्चात खेत में पडा रहने या फिर खलिहान में पिटाई से पहले तक भी बालियाँ काटती रहती हैं।
प्रौढ़ शलभ आधे इंच से बड़े जिनकी पंख खोलने पर चौड़ाई 1.5 इंच तक होती है।
अगले पंख पीले भूरे या सिलेटी रंग के जिन पर 2 गाढ़े धब्बे भी होते हैं, पर पिछले पंख गहरे बार्डर वाले सफेद पीले रंग के होते हैं।
अंडे चपटे हरा रंग लिए हुए सफेद होते हैं जो फूटने से पहले काले हो जाते हैं।
प्यूपा खेत मे पड़ी दरारों, पौधों के कल्लों के बीच या फिर नीचे गिरी हुई पत्तियों के बीच मिलते हैं।
यह कीट अंडे की अवस्था मे 5 से 7 दिन, लार्वा में 25 से 28 दिन तथा प्यूपा में 8 से 11 दिन रहकर अपना जीवन पूर्ण करता है।

*वही इस कीट के प्रकोप से बचने के लिए प्रबंधन की बात करे तो ,*
*कम समय में पकने धान इस कीट के प्रकोप से बच जाते हैं।*
*खेत में तथा मेड़ों पर के खरपतवार साफ करते रहने से कीट का प्रकोप कम होता है।*

*इस सैनिक कीट के प्रकोप के चलते बर्बाद हो रही किसानो की फसल बचाने के संबंध में जब मैंने गौरव सिंह ने उपचार/प्रबंधन के लिए कृषि वैज्ञानिकों से वार्तालाप की तो उन्होंने बताया कि इस कीट की रोकथाम के लिए*

*रासायनिक उपचार के रूप में क्लोरपायरीफास 20 ई सी, क्विनलफास 25 ई सी की 1.5ली मात्रा या डाईक्लोरवास 76 ई सी की 0.5 ली मात्रा 600-700 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हैक्टर छिड़काव करें। या फेंथोऐट / फालीडाल 25 किलो धूल का भुरकाव सांझ का धुंधलका होने पर जब सूडियाँ ऊपर आ जाती हैं, 4 -5 सूडियाँ प्रति मीटर दिखाई देने पर करना चाहिए।*

हालांकि असोथर में इन दिनों कीटनाशक दवाओं के विक्रताओं की पौ - बारह हैं, वह कम पढ़े लिखे और अशिक्षित किसान भाइयों को अपने लाभ के लिए तमाम तरह की कीटनाशक दवाएं सबसे बेहतरीन बनाकर बेच रहे हैं।
कुछ कीटनाशक विक्रेता तो अपनी दुकानों में रखी वर्षों पुरानी एक्सपायर दवाएं किसानों को बेच कर अपना स्टॉक खाली कर दे रहे हैं।

कुछ ही दिनों में कटने वाली हाड़ - तोड़ मेहनत के बाद तैयार धान की फसल को बचाने के लिए किसान भाई इन दिनों कीटनाशक दवाओं के विक्रेताओं की दुकानों के चक्कर लगाते दिख रहे हैं।
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