शनिवार, 2 मार्च 2019

निखरी त्वचा के लिए कुछ आसान सरल उपचार


निखरी त्वचा के लिए कुछ आसान सरल उपचार

साफ-दमकते चेहरे की चाह तो हम सब को होती है, पर हमें पता नहीं होता कि इसके लिए हमें क्या करना है। आइए जानते हैं निखरी त्वचा के लिए कुछ आसान से टिप्स –



  • 1. चेहरे को सही ढंग से धोएं- सबसे पहले हाथों को अच्छे से धोएं। फिर अपनी स्किन के हिसाब से फेस वाश लगाएं। अंत में साफ तौलिए से चेहरा थपथपाकर पोछें।

  • 2. टोनर से निकाले बची गंदगी- फेस वॉश कितना भी अच्छा हो, हमारी त्वचा के रोमछिद्रों में से सारी गंदगी और तेल नहीं निकाल पाता है। इसलिए चेहरा धोने के बाद रुई में टोनर लेकर इससे चेहरे को हल्के हाथों से पोछें। ध्यान रहे टोनर लगाने के बाद चेहरा धोए बिल्कुल नहीं।

  • 3. हाइड्रेशन है जरूरी- इसके लिए सबसे अच्छा है एलोवेरा जेल। इसे बिल्कुल थोड़ा सा लेकर चेहरे पर लगाएं और थपथपाकर छोड़ दें। इससे त्वचा को जरूरी नमी मिल जाएगी, साथ ही यह बहुत से स्किन प्रॉब्लम को ठीक करने में मदद करेगा।

  • 4. मॉइस्चराइजर को नजरअंदाज ना करें- अब मार्केट में हर तरह की स्किन के लिए मॉइश्चराइजर उपलब्ध है। इसका एक फायदा यह भी है कि इससे सनस्क्रीन के केमिकल्स हमारी त्वचा के सीधे संपर्क में नहीं आते।

  • 5. सनस्क्रीन के बिना घर के बाहर? सवाल ही नहीं- सनस्क्रीन हमेशा धूप में निकलने से 20 मिनट पहले ही लगाएं। कम से कम SPF 15 का सनस्क्रीन जरूर लगाएं। अगर आपकी उम्र ज्यादा है या आप को धूप के संपर्क में ज्यादा देर रहना है तो SPF बढ़ा लें।

  • 6. चेहरे को धूप के सीधे संपर्क से बचाना- सिर्फ सनस्क्रीन लगाना ही काफी नहीं है। धूप में निकलने के पहले चेहरे को दुपट्टे से ढक लें, छाता ले लें या फिर टोपी पहन लें।

  • 7. मेहनत लाएगी रंग- दिन के 24 घंटे में से आप अपने लिए 20 मिनट तो व्यायाम के लिए जरूर ही निकाल सकते हैं। इससे ना सिर्फ आप स्वस्थ रहेंगे, बल्कि आपके चेहरे पर भी एक अद्भुत चमक और लाली आ जाएगी।

  • 8. थोड़े से पोषण में बहुत सा जादू- हम बाहर से कितना भी ख्याल रख लें, बिना अंदरूनी चमक के हमारी सारी मेहनत अधूरी रह जाएगी। अपने खाने में रंग-बिरंगे फलों और सब्जियों का सेवन करें। अगर आप फास्ट फूड के बहुत शौकीन हैं तो कोशिश करें कि हर बार फास्ट फूड खाने के पहले एक फल जरूर खाएं। इससे ना सिर्फ आप फास्ट फूड कम खाएंगे, बल्कि आपके शरीर को पोषण भी मिलेगा।

  • 9. दिन भर की गंदगी बिस्तर तक,ना बाबा ना!- आप कितनी भी थकी हो रात को चेहरा धोए बिना बिल्कुल नहीं सोयें। मात्र 5 मिनट लगेंगे फेस वाश और टोनर लगाने में और 1 मिनट मॉश्चराइजर लगाने में, लेकिन हर दिन के इस 6 मिनट से कुछ ही हफ्तों में आपकी स्किन का टेक्सचर बहुत सुधारने लगेगा।  

स्किन से जुड़े किसी भी सवाल के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें और पोस्ट पसंद आया तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
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बुधवार, 30 मई 2018

आत्म गौरव न्यूज़ .कॉम की ओर से हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

आत्म गौरव न्यूज़ .कॉम की ओर से हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ..

हिंदी पत्रकारिता दिवस 30 मई को मनाया जाता है। 


आज ही के दिन 1826 में पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने प्रथम हिन्दी समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन व संपादन आरम्भ किया था। 
इस प्रकार भारत में हिंदी पत्रकारिता की आधारशिला पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने डाली थी। 
वे यूपी के कानपुर संयुक्त प्रदेश (कानपुर उस समय एक संयुक्त प्रदेश था) के निवासी थे।

उदंत मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था जिसका प्रकाशन 30 मई, 1826 को कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में आरंभ हुआ था। उस समय अंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र प्रकाशित नहीं होता था। 
प्रारंभिक रूप में इसकी केवल 500 प्रतियां ही मुद्रित हुई थीं पर इसके पाठक कलकत्ता से बहुत दूर होने के कारण इसका प्रकाशन लम्बे समय तक न चल सका क्योंकि उस समय कलकत्ता में हिंदी भाषियों की संख्या बहुत कम थी व डाक द्वारा भेजे जाने वाले इस पत्र के खर्चे इतने बढ़ गए कि इसे अंग्रेज़ों के शासन में चला पाना असंभव हो गया। 
अंतत: 4 दिसम्बर 1826 को इसके प्रकाशन को विराम देना पड़ा।
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शुक्रवार, 25 मई 2018

एचआईवी एड्स से भी खतरनाक हैं निपाह वायरस .. आखिर क्या हैं ? ये नई जानलेवा बीमारी


एचआईवी एड्स से भी खतरनाक हैं 
निपाह वायरस ..
आखिर क्या हैं ? ये नई जानलेवा बीमारी


पूरे देश सहित केरल राज्य में सनसनी मचाने वाली आखिर नई बीमारी क्या हैं ?


हाल ही में केरल राज्य स्वास्थ्य विभाग ने राज्य में निपाह वायरस (NiV) के फैलने की पुष्टि की है. 
डॉक्टरों की टीम द्वारा पीड़ित व्यक्तियों के रक्त तथा शारीरिक तरल द्वारा किये गये परीक्षण से इस वायरस की पुष्टि हुई है. 
निपाह वायरस को केरल के कोझिकोड़ जिले में दर्ज किया गया जहां दोनों पीड़ितों की मृत्यु हो गई.

मीडिया द्वारा प्रकाशित जानकारी के अनुसार अब तक राज्य में कुल एक दर्जन से अधिक लोगों की निपाह वायरस से मृत्यु हो चुकी है जबकि कुछ अन्य लोग अस्पतालों में भर्ती हैं लेकिन उनके इस वायरस से पीड़ित होने की पुष्टि नहीं की गई है.

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम नई दिल्ली से केरल भेजी है. जे पी नड्डा ने नेशनल सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल के निदेशक को निर्देश दिया कि वे प्रभावित जिलों का दौरा कर आवश्यक कदम उठायें.


(H.I.V) एड्स से भी ज्यादा खतरनाक 


जी हां सही पढ़ा आपने यह खतरनाक वायरस एड्स जैसी गंभीर बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक हैं 
इस वायरस से संक्रमित रोगी की एक सप्ताह के बीच जान जा सकती हैं 
जबकि एड्स से संक्रमित रोगी वर्षों तक जीवित रहते हैं


निपाह वायरस (NiV) क्या है? 


यह एक ऐसा इंफेक्शन है जो फल खाने वाले चमगादड़ों द्वारा मनष्यों को अपना शिकार बनाता है. यह इंफेक्शन सबसे पहले सुअरों में देखा गया लेकिन बाद में यह वायरस इंसानों तक भी पहुंच गया. वर्ष 2004 में बांग्लादेश में इंसानों पर निपाह वायरस ने हमला करना शुरू किया था. निपाह वायरस चमगादड़ों द्वारा किसी फल को खाने तथा उसी फल को मनुष्य द्वारा खाए जाने पर फैलता है. इसमें अधिकतर खजूर एवं ताड़ी शामिल है.


निपाह वायरस कैसे फैलता है?


•    विशेषज्ञों के अनुसार यह वायरस चमगादड़ से फैलता है. इन्हें फ्रूट बैट भी कहते हैं. 

•    जब यह चमगादड़ किसी फल को खा लेते हैं और उसी फल या सब्जी को कोई इंसान या जानवर खाता है तो संक्रमित हो जाता है.

•    निपाह वायरस इंसानों के अलावा जानवरों को भी प्रभावित करता है. 

•    अब तक इसकी कोई वैक्सीन तैयार नहीं हो पाई है. 

•    इससे संक्रमित व्यक्ति का डेथ रेट 74.5 प्रतिशत होता है.

•    पहली बार इस वायरस पता डॉ. कॉ बिंग चुआ ने 1998 में लगाया था. उस दौरान डॉ. बिंग मलेशिया की यूनिवर्सिटी ऑफ़ मलाया से स्नातक कर रहे थे.


निपाह वायरस नाम कैसे पड़ा?


विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वर्ष 1998 में मलेशिया में पहली बार निपाह वायरस का पता लगाया गया था. 
मलेशिया के सुंगई निपाह गांव के लोग सबसे पहले इस वायरस से संक्रमित हुए थे. 
इस गांव के नाम पर ही इसका नाम निपाह पड़ा. 
उस दौरान ऐसे किसान इससे संक्रमित हुए थे जो सुअर पालन करते थे.





डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट


निपाह वायरस जानवरों और इंसानों में पाया जाने वाला एक नया तथा गंभीर इंफेक्शन है. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार निपाह वायरस का जन्म टेरोपस जीनस नामक एक खास नस्ल के चमगादड़ से हुआ है. पहले इसके लक्षण सूअरों में देखने को मिले थे, वर्ष 2004 में इंसानो में भी इसके लक्षण पाए गए.


निपाह वायरस के लक्षण


मनुष्यों में निपाह संक्रमण एन्सेफलाइटिस से जुड़ा हुआ है. इसमें मस्तिष्क की सूजन, बुखार, सिरदर्द, उनींदापन, विचलन, मानसिक भ्रम, कोमा जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. 
इनसे रोगी की मौत भी होने का खतरा बना रहता है. निपाह वायरस के रोगी 24-48 घंटों के भीतर कोमा में जा सकता है अथवा उसकी मृत्यु हो सकती है.


उपचार 



हालांकि अभी तक इस खतरनाक वायरस का कोई समुचित इलाज विश्व के प्रमुख स्वास्थ्य संगठन नही खोज पाएं ..
न ही अभी तक वायरस से उपचार के लिए कोई वैक्सीन तैयार हो पाई हैं ..
इस वायरस से संक्रमित रोगी को आईसीयू .एनआईसीयू. वेल्टीनेटर यूनिट पर ही रखा जाता हैं 
इस के उपचार के लिए पूरे विश्व के साइंटिस्ट वैक्सीन की खोज पर तत्परता से लगें हुएं हैं ।

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सोमवार, 1 जनवरी 2018

हैप्पी न्यू ईयर या नववर्ष, तय कीजिए....

[Editor in chief ✍aatmgauravnews.com] गौरव सिंह गौतम 

दृश्य एक। सुबह के पांच बजे का समय है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि यानी वर्ष प्रतिपदा का मौका है। ग्वालियर शहर के लोग शुभ्रवेश में जल विहार की ओर बढ़े जा रहे हैं। जल विहार के द्वार पर धवल वस्त्र पहने युवक-युवती खड़े हैं। उनके हाथ में एक कटोरी है। कटोरी में चंदन का लेप है। वे आगंतुकों के माथे पर चंदन लगा रहे हैं। भारतीय संगीत की स्वर लहरियां गूंज रही हैं। सुर-ताल के बेजोड़ मेल से हजारों मन आल्हादित हो रहे हैं। बहुत से लोगों ने तांबे के लोटे उठाए और जल कुण्ड के किनारे पूर्व की ओर मुंह करके खड़े हो गए। सब अघ्र्य देकर नए वर्ष के नए सूर्य का स्वागत करने को तत्पर हैं। तभी सूर्यदेव ने अंगडाई ली। बादलों की चादर को होले से हटाया। अपने स्वागत से शायद सूर्यदेव बहुत खुश हैं। तभी उनके चेहरे पर विशेष लालिमा चमक रही है। सूर्यदेव के आते ही जोरदार संघोष हुआ। सबने आत्मीय भाव से, सकारात्मक ऊर्जा से भरे माहौल में एक-दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं दीं।


       दृश्य दो। दिसम्बर की आखिरी रात। पुलिस परेशान है कि 'हैप्पी न्यू ईयर वालों' को कैसे संभाला जाएगा? शराब पीकर बाइक-कार को हवाईजहाज बनाने वालों को कैसे आसानी से लैंड कराया जा सकेगा? खैर पुलिस के तनाव के बीच जैसे ही रात १२ बजे घड़ी की दोनों सुईयां एक जगह सिमटीं, जोरदार धमाकों की आवाज आती है। आसमान आतिशबाजी से जगमग हो उठा। आस-पास के घरों से म्यूजिक सिस्टम पर कान-फोडू संगीत बज उठा है। देर शाम से नए साल के स्वागत में शराब पी रहे लौंडे अपने बाइक पर निकल पड़े हैं। कुछ बाइकर्स कॉलोनी में भी आए हैं। सीटी बजाते हुए, चीखते-चिल्लाते हुए, धूम मचा रहे हैं। नारीवादी आंदोलन के कारण खुद को 'ठीक से' पहचान सकीं लड़कियों ने भी लड़कों से पीछे नहीं रहने की कसम खा रखी है। शोर-शराबे के बीच जैसे-तैसे सो सके। सुबह उठे तो अखबार में फोटो-खबर देख-पढ़कर जाना कि नए साल का स्वागत बड़ा जोरदार हुआ। कई लीटर शराब पी ली गई। बहुत-से मुर्गे-बकरे भी निपट गए। कुछ लोग पीकर सड़क किनारे गटर के ढक्कन पर पाए गए तो कुछ लोग सड़क दुर्घटना में घायल हो गए, जिनकी एक जनवरी अस्पताल में बीती। और भी बहुत कुछ है बताने को।

       दो तस्वीर आपने देखीं। इनमें नया कुछ नहीं है। कुछ दिन से यह सब बताने वाले चित्र आपके फेसबुक पेज और व्हाट्सअप पर आ रहे होंगे। हो सकता है आपने इन्हें लाइक-शेयर-कमेन्ट भी किया हो। हो सकता है आप थोड़ी देर के लिए भारतीय हो गए हों और आपने इन्हें आगे बढ़ा दिया हो। आपको अचानक से अपनी संस्कृति खतरे में नजर आई हो। बहरहाल, समस्या यहां सिर्फ संस्कृति संरक्षण की नहीं है। यहां यह प्रश्न भी नहीं है कि मेरी संस्कृति अच्छी, उनकी संस्कृति घटिया। यहां प्रश्न लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी नहीं है। असल में प्रश्न तो यह है कि हमें किस तरफ आगे बढ़ाना चाहिए? हमें भारतीय मूल्यों, भारतीय चिंतन और भारतीय संस्कृति की ओर बढ़ाना चाहिए या फिर पश्चिम से आए कचरे को भी सिर पर रखकर दौड़ लगा देना है? क्या भारतीय संस्कृति पुरातनपंथी है? क्या वर्ष प्रतिपदा 'बैकवर्ड' समाज का त्योहार है और न्यू ईयर 'फॉरवर्ड' का? प्रश्न तो यह भी है कि वास्तव में हमारा आत्म गौरव कब जागेगा? कब हमारी तरुणाई अंगडाई लेगी? कब हम अपने मूल्यों में अधिक भरोसा दिखाएंगे? कब हम अपनी चीजों को दुनिया से सामने प्रतिष्ठित करेंगे?

       समय तो तय करना पड़ेगा, खुद को बदलने का। सोचते-सोचते, भाषण देते-देते, कागज कारे करते-करते बहुत वक्त बीत गया है। अब समय आ गया है कि हम भारतीय हो जाएं। आखिर कब तक प्रगतिशील दिखने के लिए दूसरे का कोट-जैकेट पहने रहेंगे? अब हम जान रहे हैं कि एक जनवरी को हमारा नववर्ष नहीं है। कारण भी क्या हैं कि एक जनवरी को नववर्ष मनाया जाए? सिर्फ यही कि अंग्रेजी कैलेण्डर बदलता है। अब तय कीजिए क्या यह हमारे लिए उत्सव मनाने का कारण हो सकता है? यदि हो सकता है तो निश्चित ही हमारे पुरखे तय कर गए होते। हम तो वैसे भी उत्सवधर्मी हैं, त्योहार मनाने के मौके खोजते हैं। लेकिन, हमने इस नववर्ष को उत्सव घोषित नहीं किया, क्योंकि हमारे लिए एक जनवरी को नया साल मनाने का कोई कारण नहीं था। हिन्दू जीवनशैली पूर्णत: वैज्ञानिक है। यह तथ्य सिद्ध हो चुका है। इसीलिए भारतीय मनीषियों ने प्रकृति के चक्र को समझकर बताया कि चैत्र से नववर्ष शुरू होता है। उस वक्त मौसम बदलता है। वसंत ऋतु का आगमन होता है। प्रकृति फूलों से मुस्काती है। फसल घर आती है तो किसानों के चेहरे पर खुशी चमकती है। दुनिया के दूसरे कैलेण्डर से भारतीय कैलेण्डर की तुलना करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि भारतीय मनीषियों की कालगणना कितनी सटीक और बेहतर थी। वर्ष प्रतिपदा को ही नववर्ष मनाने का एक प्रमुख कारण यह है कि भारतीय कालगणना कितनी सटीक और बेहतर थी। वर्ष प्रतिपदा को ही नववर्ष मनाने का एक प्रमुख कारण यह है कि भारतीय कालगणना के मुताबिक इसी दिन पृथ्वी का जन्म हुआ था।

       बहुत से विद्वान कहते हैं कि जब ईस्वी सन् ही प्रचलन में है तो क्यों भारतीय नववर्ष को मनाने पर जोर दिया जाए। जब एक जनवरी से ही कामकाज का कैलेण्डर बदल रहा है तो इसे ही नववर्ष मनाया जाना चाहिए। जवाब वही है, सनातन। जब सब काम ग्रेगेरियन कैलेण्डर से ही किए जा रहे हैं तो फिर निजी जीवन में जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक की सभी प्रक्रियाओं के लिए पंचाग क्यों देखा जाता है। क्योंकि अंतर्मन में विश्वास बैठा है कि कालगणना में भारतीय श्रेष्ठ थे। भारतीय कैलेण्डर का पूर्णत: पालन करने पर कोई क्या कहेगा, इसकी चिंता हमें खाए जाती है। सारी चिंताएं छोड़कर अपने कैलेण्डर को प्रचलन में लाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। एक मौका हाथ आया था लेकिन पाश्चात्य प्रेम में फंसे हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वह मौका खो दिया था। वर्ष 1952 में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद ने पंचाग सुधार समिति की स्थापना की थी। समिति ने 1955 में अपनी रिपोर्ट में विक्रम संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से की थी। लेकिन, पंडितजी ने इस सिफारिश को नजरअंदाज कर दिया। खुद को सेक्यूलर कहने वाले प्रधानमंत्री ने ऐसे कैलेण्डर को मान्यता दी, जिसका संबंध एक सम्प्रदाय से है। जनवरी से शुरू होने वाले नववर्ष का संबंध ईसाई सम्प्रदाय और ईसा मसीह से है। रोम के सम्राट जूलियस सीजर इसे प्रचलन में लाए। जबकि भारतीय नववर्ष का संबंध हिन्दू धर्म से न होकर प्रकृति से है। यानी खुद को सेक्यूलर कहने वाले विद्वानों को भी अंग्रेजी नववर्ष का विरोध कर पंथ निरपेक्ष भारतीय कैलेण्डर के प्रचलन के लिए आंदोलन करना चाहिए।

       बहरहाल, खुद से सवाल कीजिए कि अपने नववर्ष को भूल जाना कहां तक उचित है? अगर भारतीयपन बचा होगा तो निश्चित ही आप जरा सोचेंगे। यह भी सोचेंगे कि वास्तव में उत्सव के रंग एक जनवरी के नववर्ष में दिखते हैं या फिर चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा में। उत्सव मनाने का तरीका पाश्चात्य का अच्छा है या भारत का? कब तक गुलामी के प्रतीकों को गले में डालकर घूमेंगे? अब अपने मूल्यों, अपनी संस्कृति, अपनी पहचान और अपने ज्ञान-विज्ञान को दुनिया में स्थापित करने का वक्त आ गया है।
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शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

Breastfeeding की इन अद्भुत तस्वीरों का बस एक सवाल है, पब्लिक में स्तनपान कराने में शर्म क्यों?


सार्वजनिक Breastfeeding को लेकर आजकल काफ़ी बहस हो रही है. कुछ लोग इसे अश्लील करार देते हैं, वहीं कुछ लोग इसे प्रकृति की बेहद ख़ूबसूरत चीज़ों में से एक कहते हैं. बहुत से लोग इससे जुड़ी शर्म को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं.

इसी साल जून में ऑस्ट्रेलिया की एक मंत्री ने लोगों की रूढ़िवादी सोच को चुनौति देते हुए संसद में भाषण देते हुए अपने बच्चे को दूध पिलाया. Breastfeeding को लेकर जागरूकता फ़ैलाने के लिए अगस्त के पहले सप्ताह में Breastfeeding Week भी मनाया जाता है.

Breastfeeding की ख़ूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करती हैं, Ivette Ivens. Ivette ने Breast Feeding Mothers की बहुत सारी तस्वीरें खिंची हैं.
Ivette ने अपनी तस्वीरों की एक किताब,
Breastfeeding Goddesses भी पब्लिश की है.
Ivette Ivens हर तरह के मां की ज़िन्दगी को अपने कैमरे में कैद करती हैं. उनकी तस्वीरें इतनी Powerful हैं कि वे किसी शब्द की मोहताज नहीं हैं. Ivette अपनी तस्वीरों से Breastfeeding से जुड़ी भ्रान्तियों को दूर करना चाहती हैं.

1. हम साथ-साथ हैं.




2. जो दोस्त रहे साथ, वो Breastfeed भी करें एकसाथ.



3. तुम ख़ूबसूरत हो!



4. मां सारे दर्द सहकर भी अपने बच्चे की सुरक्षा करती है.



5. प्रकृति भेदभाव नहीं करती और ना ही मां.




6. मां, तुम ना होती तो हमारा क्या होता?



7. भगवान ने बड़े एहतियात से बनाया है तुम्हें.



8. इससे ख़ूबसूरत हो सकता है क्या?



9. सिर्फ़ हमारे लिए दुनिया से लड़ती हैं मां.



10. सब बच्चों को एक साथ कैसे संभाल लेती हो तुम?



11. दुनिया की बुरी नज़र से बचाती है मां.




12. मां तो मां होती है, चाहे इंसान हो या बिल्ली.




13. तुम्हारी इक मुस्कान पर सौ ख़ुशी कुर्बान!




14. कितना अच्छा संयोग है ये!



15. तुम्हें अकेले ही सबकुछ क्यों संभालना पड़ता है?




16. Twins, यानि कि दोगुनी मेहनत, पर तुम फिर भी सब करती हो.



17. क्या इससे ज़्यादा Pure कुछ है ?





18. तुम यूं ही मुस्कुराते रहना.



19. मुझे तो भगवान भी तुम्हीं में नज़र आते हैं मां.



20. किसी भी बच्चे के लिए प्यार कम नहीं पड़ता तुम्हारा!



21. कैसे कर लेती हो इतना सब कुछ?




22. बनानेवाले को भी मां की कमी तो ख़लती ही होगी.




23. ये फूल तुम्हारी नहीं, तुम इन फूलों की ख़ूबसूरती बढ़ा रही हो.



24. Breastfeed करवाते समय शर्माने की ज़रूरत नहीं है.



25. मां सबकी शैतानियों को बर्दाशत कर लेती है.




26. परियां भी आज तुम्हारे सामने कुछ नहीं.



27. प्यार तुम्हारा कभी ख़त्म नहीं होता.




28. किसी भी अवस्था में अपने बच्चे का पालन करती है मां.


29. मां बनने के बाद ख़ूबसूरती कहीं से भी कम नहीं होती.



30. ये हमारी ज़िन्दगी की हक़ीक़त है, तो इससे परहेज़ क्यों?




31. मैं ख़ुशनसीब हूं कि मुझे मां मिली है.




32. बच्चे भी तुम पर जान छिड़कते हैं.



33. कितना सुकून है इस तस्वीर में.




34. Beauty at its Best.



35. कुछ बच्चे कितने भी बड़े हो जाएं, मां को नहीं छोड़ते.




36. You Rock!



37. प्रकृति का स्पर्श.




38. किसी देश की रानी सी लगती हैं ये तो.



39. मां की एहमियत कभी मत भूलना.


आज भी किसी भी मां को खुले में Breastfeed करने के लिए कमेंट सुनने पड़ते हैं. पब्लिक में Breastfeed कराने वाली मां को कई तरह के उलाहने दिए जाते हैं. भारत में तो कई क्षेत्रों में Breastfeeding को ही ग़लत करार दिया जाता है. लेकिन इन तस्वीरों को देखिये और सच में बताईये, ये ये सबसे ख़ूबसूरत नहीं? 
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