मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

Google की नौकरी छोड़ शुरू किया समोसे बेचना, आज है 50 लाख से ज्यादा का मालिक


Google की नौकरी छोड़ शुरू किया समोसे बेचना, आज है 50 लाख से ज्यादा का मालिक

अगर कोई गूगल की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ समोसे बेचना शुरू करे तो लोग उसे बेवकूफ ही कहेंगे, लेकिन जब आपकी सालाना कमाई 50 लाख रुपये के पार पहुंच जाए तो शायद लोगों को अपनी राय बदलनी पड़ेगी. जानें इस शख्स की कहानी.



अगर कोई गूगल की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ समोसे बेचना शुरू करे तो लोग उसे बेवकूफ ही कहेंगे, लेकिन जब आपकी सालाना कमाई 50 लाख रुपए के पार पहुंच जाए तो शायद लोगों को अपनी राय बदलनी पड़ेगी. यह कामयाबी मुनाफ कपाड़िया ने हासिल की है. आइए जानते हैं कौन हैं ये मुनाफ और कैसे हासिल किया ये मुकाम…



एक झटके में छोड़ दी नौकरी: मुनाफ कपाड़िया की फेसबुक प्रोफाइल में लिखा है कि मैं वो व्यक्ति हूं जिसने समोसा बेचने के लिए गूगल की नौकरी छोड़ दी. लेकिन उनके समोसे की खासियत यह है कि वह मुंबई के पांच सितारा होटलों और बॉलिवुड में खासा लोकप्रिय है. मुनाफ ने एमबीए की पढ़ाई की थी और उसके बाद उन्होंने कुछ कंपनियों में नौकरी की और फिर चले गए विदेश. विदेश में ही कुछ कंपनियों में इंटरव्‍यू देने के बाद मुनाफ को गूगल में नौकरी मिल गई. कुछ सालों तक गूगल में नौकरी करने के बाद मुनाफ को लगा कि वह इससे बेहतर काम कर सकते हैं. बस फिर क्‍या था, लौट आए घर.



इस आइडिया के बाद शुरू की कंपनी: मुनाफ भारत में द बोहरी किचन नाम का रेस्‍टोरेंट चलाते हैं. मुनाफ बताते हैं कि उनकी मां नफीसा टीवी देखने की काफी शौकीन हैं और टीवी के सामने काफी वक्त बिताया करती थीं. उन्हें फूड शो देखना काफी पसंद था और इसलिए वह खाना भी बहुत अच्छा बनाती थीं. मुनाफ को लगा कि वह अपनी मां से टिप्स लेकर फूड चेन खोलेंगे. उन्होंने रेस्टोरेंट खोलने का प्लान बनाया और अपनी मां के हाथों का बना खाना कई लोगों को खिलाया. सबने उनके खाने की तारीफ की. इससे मुनाफ को बल मिला और वह इस सपने को पूरा करने में लग गए.



देशभर में हो गए मशहूर: मुनाफ का द बोहरी किचन न सिर्फ मुंबई बल्कि देशभर में मशहूर है. उनके रेस्तरां का सबसे बेहतरीन, लजीज और मशहूर फूड आइटम मटन समोसा माना जाता है. मगर द बोहरी किचन सिर्फ मटन समोसा के लिए ही मशहूर नहीं है, नरगि‍सी कबाब, डब्‍बा गोश्‍त, करी चावल समेत ऐसी कई डिशेज हैं जिनके लिए भी ‘द बोहरी किचन’ मशहूर है. कीमा समोसा के अलावा मटन रान भी रेस्तरां का एक मशहूर और लजीज खाना है.





हर महीने करते हैं लाखों रुपए की कमाई: बीते दो साल में ही रेस्तरां का टर्नओवर 50 लाख रुपये तक पहुंच गया है. ‘द बोहरी किचन’ को अपने लजीज खाने के लिए कई सेलेब्स द्वारा भी तारीफ मिल चुकी है. आशुतोष गोवारिकर और फराह खान जैसी मशहूर हस्तियां भी “द बोहरी किचन” के लजीज खाने का लुत्फ उठा चुके हैं और सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ भी कर चुके हैं.

Input : News18
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पुलवामा का बदला : इंडियन एयरफोर्स ने LoC के पार जैश के ठिकाने को किया तबाह, बरसाए 1000 किलो के ब’म




पुलवामा का बदला : इंडियन एयरफोर्स ने LoC के पार जैश के ठिकाने को किया तबाह, बरसाए 1000 किलो के ब’म


सूत्रों ने बताया कि 26 फरवरी की रात करीब 3:30 बजे मिराज 2000 लड़ाकू विमानों ने आतंकियों के बड़े ठिकाने पर हमला किया और उसे पूरी तरह निस्तनाबूद कर दिया.

पुलवामा हमले के बाद भारतीय वायुसेना सेना ने सीमा पर छुपे बैठे जैश ए मोहम्मद के आतंकियों के खिलाफ बीती रात बड़ी कार्रवाई की है. भारतीय वायुसेना से जुड़े सूत्रों ने बताया कि वायुसेना के विमानों ने बीती रात नियंत्रण रेखा के पार आतंकी कैंप्स पर करीब 1000 किलोग्राम के बम बरसाए.

सूत्रों ने बताया कि 26 फरवरी की रात करीब 3:30 बजे वायुसेना के 12 मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने आतंकियों के बेस कैंप पर हमला किया और उसे पूरी तरह तबाह कर दिया.

इससे पहले पाकिस्‍तानी सेना ने आरोप लगाया गया था कि भारतीय वायुसेना ने नियंत्रण रेखा का उल्‍लंघन किया है. पाकिस्‍तानी सेना के प्रवक्‍ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने ट्वीट किया कि ‘भारतीय वायु सेना के विमानों ने नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करते हुए मुजफ्फराबाद सेक्‍टर में घुस आए. पाकिस्तान वायु सेना ने तुरंत कार्रवाई की. भारतीय विमान वापस चले गए.’ बता दें कि यह जगह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में पड़ता है.

बता दें कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को हुए सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे. इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी. इस हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस हमले का करारा जवाब दिया जाएगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि भारत ने इस हमले का बदला लेने के लिए अपने सुरक्षाबलों को खुली छूट दे दी है.

Input - News 18 india
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शनिवार, 5 जनवरी 2019

चंद्रकला पर बड़ा दाग…एक साल में 90% बढ़ गई IAS चंद्रकला की संपत्ति-हैरान कर देगी पूरी सच्चाई


चंद्रकला पर बड़ा दाग…एक साल में 90% बढ़ गई IAS चंद्रकला की संपत्ति-हैरान कर देगी पूरी सच्चाई

गौरव सिंह गौतम ( संपादक आत्म गौरव न्यूज़.com)

नई दिल्ली -  मौरंग / बालू के अवैध खनन से जुड़े मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने शनिवार को उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 12 जगहों पर छापे मारे। अधिकारियों ने बताया कि आईएएस अधिकारी बी। चन्द्रकला सहित वरिष्ठ अधिकारियों के आवासों पर इस संबंध में छापे मारे गए। चन्द्रकला भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अभियानों के लिए सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हैं।


उन्होंने बताया कि छापे उत्तर प्रदेश के जालौन, हमीरपुर, फतेहपुर , लखनऊ समेत कई जिलों के साथ ही दिल्ली में भी मारे गए। 
दरअसल, सीबीआई इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर मामले की जांच कर रही है।
बी। चंद्रकला का घर योजना भवन के पास सफायर एंड विला में है।
फिलहाल, बी चंद्रकला डेप्यूटेशन पर हैं। यूपी में उनकी छवि एक कड़क और ईमानदार अफसर की रही है।
इससे पहले बुलंदशहर, हमीरपुर समेत कई जिलों में बतौर डीएम चंद्रकला ने अपने कामों और कड़क अंदाज की वजह से वाहवाही और सुर्खियां बटोर चुकी हैं।
सीबीआई ने चंद्रकला के हमीरपुर आवास पर छापेमारी की है।

बी। चन्द्रकला 2008 बैच की IAS अधिकारी हैं। सोशल मीडिया पर चंद्रकला काफी मशहूर हैं।
पर लोकप्रियता के मामले में चंद्रकला उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कहीं आगे हैं।
फेसबुक पर चंद्रकला के 8,636,348 से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। वहीं, अखिलेश के फॉलोअर्स की संख्या 6,816,363 है।


पहले भी लग चुके हैं चंद्रकला पर ‘दाग’ : साल 2017 में IAS बी। चंद्रकला अपनी संपत्ति का ब्योरा देने में डिफॉल्टर साबित हुई थीं।
दरअसल, सिविल सेवा अधिकारियों को 2014 के लिए 15 जनवरी 2015 तक अपनी संपत्ति का रिकॉर्ड पेश करना था।
लेकिन एक साल बीतने के बाद भी इन अधिकारियों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया था। चंदकला का नाम भी इसमें शामिल था।


केंद्र सरकार के सामान्य प्रशासन एवं प्रशिक्षण विभाग की जानकारी के मुताबिक चंद्रकला की संपत्ति 2011-12 में सिर्फ 10 लाख रुपये थी। 2013-14 में यह बढ़कर करीब 1 करोड़ रुपये हो गई।
यानी एक साल में उनकी संपत्ति 90 फीसदी बढ़ी।

2011-12 में अपने गहने बेचकर और वेतन से चंद्रकला ने आंध्र प्रदेश के उप्पल में 10 लाख का फ्लैट खरीदा था।
अब उनके पास लखनऊ के सरोजिनी नायडू मार्ग पर अपनी बेटी कीर्ति चंद्रकला के नाम से 55 लाख का फ्लैट है। हालांकि उन्होंने दावा किया था कि यह फ्लैट उनके सास-ससुर ने उन्हें गिफ्ट किया था।
इसके अलावा आन्ध्र प्रदेश के अनूपनगर में भी उन्होंने 30 लाख का एक मकान खरीदा है।
इससे वह 1.50 लाख सालाना कमाई का दावा करती हैं।
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गुरुवार, 8 नवंबर 2018

असोथर ​पुलिस जीप में लेकर पहुंची मिठाई, मोमबत्ती और पटाखे तो गरीबों के निकलने लगे खुशी के आंसू



असोथर ​पुलिस जीप में लेकर पहुंची मिठाई, मोमबत्ती और पटाखे तो गरीबों के निकलने लगे खुशी के आंसू

फतेहपुर - जिस पुलिस को देखकर लोगों के पसीने छूट जाते हैं। 

लोगों के दिलों में पुलिस का खौफ रहता है लेकिन कुछ पुलिसवाले ऐसे हैं जो अपने काम से लोगों के दिलों में जगह बना लेते हैं।

हम आप से एक ऐसे थानाध्यक्ष के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने दीपावली पर्व पर ऐसा काम किया कि लोगों की आंखों से खुशी के आंसू निकलने लगे।

इस वर्दीधारी ने दर्जनों गरीब परिवारों के घर जाकर खुशियां बांटी तो पूरे क्षेत्र ही नहीं सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बन गया और लोग इस थानेदार को नेक काम के लिए शुभकामनायें देते नहीं थक रहे हैं।
कभी नहीं था कि मिठाई बंटेगी पुलिस उन सूनी आंखों ने कभी सोचा नहीं होगा कि पुलिस दरवाजे दिवाली के पटाखे और मिठाइयां लेकर आई होगी। 
गरीब बूढ़े लोग कुछ समझ पाते इससे पहले पुलिस हैप्पी दिवाली कहने लगी। 



फतेहपुर जिले के असोथर थाना अध्यक्ष कमलेश कुमार पाल अपनी टीम के साथ जब थानाक्षेत्र के विधातीपुर गांव पहुंचे तो गांव वाले डर के मारे सहम गए। 
पुलिस देखकर बच्चे शोर मचाकर भागे तो बुजुर्ग भी दहशत में आ गए। 
लेकिन उन्हें क्या पता था कि पुलिस किसी आपराधिक केस में नहीं बल्कि खुशियां बांटने आयी है। 

ग्रामीणों ने कहा ऐसा कभी नहीं सोचा था कि पुलिस मिठाई, मोमबत्ती और पटाखे लेकर आयेगी गरीबों के चेहरे पर थीं अनार की सतरंगी खुशियां थानाध्यक्ष कमलेश कुमार पाल जब विधातीपुर गांव की अंधी असहाय महिला कल्ली देवी , अंधे व अत्यंत बुजुर्ग छत्रपाल विश्वकर्मा , विधवा शिवकली रैदास , अंधी बुजुर्ग महिला होरी देवी सहित एक दर्जन परिवारों के घर पहुंचे और मिठाई, मोमबत्ती और पटाखे इन गरीबों को दिए तो गरीबों के चेहरे पर खुशी के मारे आंसू झलक आये। 

पटाखे पाकर गरीब बस्तियों के बच्चों के चेहरे पर अनार की सतरंगी खुशियां साफ झलक रहीं थी।
असहाय , दिव्यांग ,बुजुर्गों ने असोथर पुलिस के इस नेक कार्य की खूब दुआएं दीं ।

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गुरुवार, 1 नवंबर 2018

कौन हैं ये बुजुर्ग जो रेलवे स्टेशन पर दिखते है फिल्मी अंदाज में !


कौन हैं ये बुजुर्ग जो रेलवे स्टेशन पर दिखते है फिल्मी अंदाज में !

इस अजीब नज़ारे को देखकर हर कोई हैरत में पड़ जाता है जब बड़ी बड़ी मूंछो वाला एक 80 वर्षीय बुजुर्ग एक रेलवे स्टेशन पर कुर्सी डालकर बैठता है और साथ में होते हैं कई गनर और सैकड़ो लोगों का हुजूम .आइये जानते क्या है पूरा मामला .

दरसल ये बुजुर्ग और कोई नही कुंडा से निर्दलीय विधायक राजा भैया के पूज्नीय पिता जी भदरी नरेश श्री महाराजा उदय प्रताप सिंह जी है. जो की शुरू से ही एक कट्टर हिन्दू छवि वाले व्यक्ति रहे हैं और इस उम्र में भी वो सनातन धर्म के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई देते हैं…
दरसल महाराज उदय सिंह जी कुंडा रेलवे स्टेशन पर कई सालों से वो पुण्य कार्य कर रहे हैं जो कार्य सरकारें व बड़ी बड़ी सामाजिक संस्थाएं भी नही कर सकती . 
महाराजा उदयप्रताप जी कई वर्षों से प्रतिदिन कुंडा स्टेशन पर रेलवे यात्रियों को मुफ्त में { पानी – लस्सी – छाछ – नाश्ता- खाना} आदि का भंडारा करते हैं..

जिसे देखकर सभी लोग हैरत में पड़ जाते हैं कि कैसे कोई इंसान इतना बड़ा दान कर सकता है वो भी लगातार बर्षो तक सब जानते है कि अब राजतन्त्र नही रहा जनतन्त्र आने पर राजाओ की लगभग सारी सम्पत्ति सरकार ने लेली थी .
फिर भी आज वही राजाओ वाला रुतबा और त्याग आज के समय मे रखना बहुत ही बड़ी बात है .
इस पर महाराज उदय प्रताप सिंह जी का बस इतना ही कहना होता है कि मानव सेवा ही सनातन धर्म है . 
मैं वही कर रहा हूँ

शायद इसी त्याग और भाव के लिए लोग बड़े महाराज को पूजते हैं.
और इसलिये समाज उन्हें और राजा भैया को गरीबों का मसीहा कहता हैं.. 
क्योंकि यही छवि आज राजा भैया में भी दिखती है .
और राजा भैया द्वारा किये गए 800 से ज्यादा गरीव कन्यायों के विवाह- निकाह इस बात का जीता जागता उदाहरण है….
हमे गर्व है कि भारत मे अभी भी ऐसे महान लोग हैं जो सनातनी परम्परा को जीवित बनाये हुए हैं.

आत्म गौरव न्यूज़ .com की ओर से महराज जी को बहुत बहुत साधुवाद 🙏

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सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

बुंदेलखंड का रॉबिनहुड या डकैत ...


                  बुंदेलखंड का रॉबिनहुड या डकैत

✍ गौरव सिंह मुख्य सम्पादक

बुंदेलखंड ( चित्रकूट ) - उत्तर प्रदेश के जनपद चित्रकूट में रैपुरा क्षेत्र के देवकली गांव में राम प्यारे पटेल का बड़ा बेटा शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ ने 32 साल तक बागी जीवन व्यतीत किया। ददुआ के बारे में यह एक बात और रोचक है कि वह 32 साल के डकैत करियर के दौरान कभी पुलिस के हाथ नहीं लगा। वह पहला डकैत था जो 32 साल तक आतंक करता रहा, लेकिन पुलिस उस तक नहीं पहुंच पाई थी। 

बताया जाता है कि पिता की मौत का बदला लेने के लिए ही ददुआ ने हथियार उठाया था और आठ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।

राजनीतिक गलियारों में बुन्देलखण्ड की पूरी डोर चाहे वो विधानसभा हो या लोकसभा , नगर पंचायत हो या नगर पालिका ,जिला पंचायत अध्यक्ष हो या ग्राम प्रधान हो सभी का निर्णय ददुआ की अनुमति के बगैर नहीं होता था। एक पक्ष जो आतंक के इस पर्याय को औरों से अलग करता है, वो ये की पूरे क्षेत्र में एक बात लगभग हर मुह से कही जाती है कि 'ददुआ कभी गरीबों पर जुल्म नहीं करता था, बल्कि उनकी ज्यादा से ज्यादा मदद ही करता था, जिसके कारण उसे 'भारत के रॉबिनहुड' की भी संज्ञा दी जाती थी।

1992 में इलाहाबाद, बांदा और फतेहपुर के संयुक्त पुलिस अभियान में दस्यु सरगना फतेहपुर में धाता क्षेत्र के घटईपुर और नरसिंहपुर कबरहा गांव के बीच गन्ने के खेतों में फंस गया था। उस समय ददुआ के साथ करीब 72 डकैत साथी मौजूद थे। इस घेराबंदी में पुलिस के 500 जवान नियुक्त थे। ददुआ के विधायक पुत्र वीर सिंह ने बताया कि अपने को पूरी तरह से घिरा पाकर ददुआ ने संकल्प लिया था कि यदि मैं बच जाता हूं तो पंचमुखी हनुमान मन्दिर की स्थापना करूंगा और ददुआ बाल-बाल बच गया। इसके बाद 1996 में ददुआ ने उसी स्थान पर मन्दिर की स्थापना की थी। 2004 में पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति बिठाकर प्राण प्रतिष्ठा की थी।

धाता फतेहपुर में बना दस्यु सम्राट ददुआ का मंदिर

दस्यु सरगना के बढते आतंक से परेशान उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसको जिंदा अथवा मुर्दा पकडने के एवज में सात लाख रुपये का ईनाम घोषित किया था। घोषणा के समय केवल स्केच द्वारा बनाया गया काल्पनिक चित्र ही पत्रकारों को दिया गया था। इसके बाद फरवरी 2007 में चित्रकूट स्थित घनघोर जगमल के जंगल में एसटीएफ की मुठभेड में दस्यु ददुआ दस डकैतों के साथ मारा गया। दस्यु ददुआ के मारे जाने के 24 घंटे के अंदर उसके शिष्य डकैत अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया ने उन छह एसटीएफ जवानों को घात लगाकर मार दिया जो ददुआ को मारे जाने वाले पुलिस दल में शामिल थे।

आस -पास के गांवों में जहा एक वर्ग उसे मसीहा मानता है वही एक वर्ग उसे डकैत की संज्ञा देता है इसलिए ये निष्कर्ष निकाल पाना बेहद मुश्किल है कि वास्तव में उसे रॉबिनहुड कहा जाना चाहिए या फिर एक डकैत....

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रविवार, 21 अक्तूबर 2018

यूपी: असोथर थानाध्यक्ष ने किया ऐसा काम, तहरीर देने आए गरीब माँ - बेटी ने किया सलाम



यूपी: असोथर थानाध्यक्ष ने किया ऐसा काम, तहरीर देने आए गरीब माँ - बेटी ने किया सलाम


फतेहपुर - उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के असोथर थानाध्यक्ष नेे एक ऐसी मिसाल पेश की जिसकी वजह से फरियाद करने आये फरियादियों के चहेरे पर खुशी आ गई और थानाध्यक्ष अपनी दरियादिली के कारण प्रशंसा का पात्र बन गये हैं। 

जनपद फतेहपुर के असोथर थाना क्षेत्र के गांव पुरबुज़ुर्ग निवासी गेंदालाल एक गरीब रिक्शा चालक है। 
वो रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। उसका पड़ोसी के साथ किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई।

थानाध्यक्ष ने पेश की मानवता की मिसाल

पड़ोसियों ने गेंदालाल के घर में घुसकर मारपीट की जिसकी शिकायत करने गेंदालाल की पत्नी उमा देवी अपनी दो पुत्री व एक पुत्र को लेकर असोथर थाने पहुंची थी। 
वहां पर असोथर थाना प्रभारी कमलेश कुमार पाल ने पहले तो पीड़ित की समस्या सुनी और उसका समाधान करने के बाद एक अनोखी मिसाल पेश की। 
उमा देवी की की नाबालिग बच्चियों  व बच्चे के नंगे पैर, फटे हुए कपड़े देखकर असोथर थाना प्रभारी कमलेश कुमार पाल ने अपनी ओर से बच्चे व दोनों बच्चियों के लिए कपड़े, दुपट्टा व पैरों मै पहनने के लिए चप्पल भेंट की। 
वहीं थाना प्रभारी की दरियादिली को देखकर माँ व बच्चें पुलिस की तारीफ करते हुए अपने घर लौट गए।
   

' हम पुलिस के बारे में बुरा ही सुनते थे '

पीड़ित उमा देवी ने बताया कि हमारी कुछ शिकायत थी वही करने के लिए हम थाने आये थे। दरोगा साहब ने पहले तो हमारी शिकायत सुनी उसके बाद हमारी गरीबी देखते हुए मेरे बच्चों को चप्पल, चुन्नी व बढियावाला सूट  दिलवाया । 
हम पुलिस के बारे में बुरा सुनते थे लेकिन पुलिस बहुत बढ़िया हैऔर हम बहुत खुश है।

   

थानाध्यक्ष ने इस बारे में कहा

असोथर थानाध्यक्ष कमलेश कुमार पाल ने कहा कि ये माँ पुत्री पुरबुजुर्ग गांव के है। 
पिता रिक्शा चलाता है ,बहुत गरीब लोग है। बिनाकपड़ों व  चप्पलो के बच्चे इसके साथ आई थें इनमें एक बच्ची थोड़ी बड़ी भी हैं जो करीब 10 साल की है। 
ऐसी स्थिति में मुझे लगा कि सवेदनशीलता बरतनी चाहिए।  सबसे पहले तो शिकायत का समाधान कर रहा हूँ। 
उसके लिए एक दरोगा को जांच करने भेज दिया है।
साथ ही साथ उसकी गरीबी को देखते हुए अपने निजी खर्चे से बच्चियों के लिए मैंने चप्पल सूट व दुप्पटा भी लाकर दिया है। 
यह मेरी व्यक्तिगत भावनायें हैं।

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सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

आज विशेष जन्मतिथि Dr. Abdul Kalam


आज विशेष जन्मतिथि 


अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल #कलाम अथवा 
ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम  (15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015) जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे।वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति,
जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे।
इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा।

इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई।

कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए।पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये।

प्रारंभिक जीवन


15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ।इनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे।इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पाँच भाई एवं पाँच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे।अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियो को भलीभाँति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।

अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था।कलाम ने 1950में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यानएसएलवी 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था।

पुरस्कार एवं सम्मान


कलाम के 79 वें जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया गया था। इसके आलावा उन्हें लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान की गयी थीं भारत सरकार द्वारा उन्हें 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण का सम्मान प्रदान किया गया जो उनके द्वारा इसरो और डी आर डी ओ में कार्यों के दौरान वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिये तथा भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य हेतु प्रदान किया गया था।

1997 में कलाम साहब को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया जो उनके वैज्ञानिक अनुसंधानों और भारत में तकनीकी के विकास में अभूतपूर्व योगदान हेतु दिया गया था।

वर्ष 2005 में स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने कलाम के स्विट्ज़रलैंड आगमन के उपलक्ष्य में 26 मई को विज्ञान दिवस घोषित किया।नेशनल स्पेस सोशायटी ने वर्ष 2013 में उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान सम्बंधित परियोजनाओं के कुशल संचलन और प्रबंधन के लिये वॉन ब्राउन अवार्ड से पुरस्कृत किया।

निधन


27 जुलाई 2015 की शाम अब्दुल कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंगमें 'रहने योग्य ग्रह' पर एक व्याख्यान दे रहे थे जब उन्हें जोरदार कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) हुआ और ये बेहोश हो कर गिर पड़े।लगभग 6:30 बजे गंभीर हालत में इन्हें बेथानी अस्पताल में आईसीयू में ले जाया गया और दो घंटे के बाद इनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी गई।अस्पताल के सीईओ जॉन साइलो ने बताया कि जब कलाम को अस्पताल लाया गया तब उनकी नब्ज और ब्लड प्रेशर साथ छोड़ चुके थे। अपने निधन से लगभग 9 घण्टे पहले ही उन्होंने ट्वीट करके बताया था कि वह शिलोंग आईआईएम में लेक्चर के लिए जा रहे हैं।

कलाम अक्टूबर 2015 में 84 साल के होने वाले थे।मेघालय के राज्यपाल वी॰ षडमुखनाथन; अब्दुल कलाम के हॉस्पिटल में प्रवेश की खबर सुनते ही सीधे अस्पताल में पहुँच गए। बाद में षडमुखनाथन ने बताया कि कलाम को बचाने की चिकित्सा दल की कोशिशों के बाद भी शाम 7:45 पर उनका निधन हो गया।

सादर नमन🙏🙏

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बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

नवरात्रि विशेष

 नवरात्रि विशेष
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥ 

नवरात्रि के पावन पर्व के मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। 

#मां #दुर्गा को #सर्वप्रथम #शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। 

इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है। 

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। 

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। 
बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। 

वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। 

पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

जय माता दी🙏
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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

आज विशेष जन्मतिथि आज देश गांधी जयंती के साथ भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मना रहा है।



आज विशेष जन्मतिथि 
आज देश गांधी जयंती के साथ भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मना रहा है। 

गौरव सिंह गौतम [मुख्य संपादक आत्मगौरव न्यूज़. कॉम]

लाल बहादुर शास्त्री



सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले शास्त्री जी एक शांत चित्त व्यक्तित्व भी थे। शास्त्री जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 को मुंशी लाल बहादुर शास्त्री के रूप में हुआ था। वह अपने घर में सबसे छोटे थे तो उन्हें प्यार से नन्हें बुलाया जाता था। उनकी माता का नाम राम दुलारी था और पिता का नाम मुंशी प्रसाद श्रीवास्तव था। शास्त्री जी की पत्नी का नाम ललिता देवी था।

मुश्किल परिस्थितियों हासिल की शिक्षा-बचपन में ही पिता की मौत होने के कारण नन्हें अपनी मां के साथ नाना के यहां मिर्जापुर चले गए। यहीं पर ही उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई। उन्होंने विषम परिस्थितियों में शिक्षा हासिल की। कहा जाता है कि वह नदी तैरकर रोज स्कूल जाया करते थे। क्योंकि जब बहुत कम गांवों में ही स्कूल होते थे। लाल बहादुर शास्त्री जब काशी विद्यापीठ से संस्कृत की पढ़ाई करके निकले तो उन्हें शास्त्री की उपाधि दी गई। इसके बाद उन्होंने अपने नाम के आगे शास्त्री लगाने लगे।


शास्त्री जी का विवाह 1928 में ललिता शास्त्री के साथ हुआ। जिनसे दो बेटियां और चार बेटे हुए। एक बेटे का नाम अनिल शास्त्री है जो कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं। देश के अन्य नेताओं की भांति शास्त्री जी में भी देश को आजाद कराने की ललक थी लिहाजा वह 1920 में ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। उन्होंने 1921 के गांधी से असहयोग आंदोलन से लेकर कर 1942 तक अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। इस दौरान कई बार उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और पुलिसिया कार्रवाई का शिकार बने।

दिया 'जय जवान जय किसान' का नारा
शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ जिसमें शास्त्री जी ने विषम परिस्थितियों में देश को संभाले रखा। सेना के जवानों और किसानों महत्व बताने के लिए उन्होंने 'जय जवान जय किसान' का नारा भी दिया। 11 जनवरी 1966 को शास्त्री की मौत ताशकंद समझौत के दौरान रहस्यमय तरीके से हो गई।


महात्मा गाँधी


गुजरात में 2 अक्तूबर 1869 को जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना ऐसा मारक और अचूक हथियार बनाया जिसके आगे दुनिया के सबसे ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य को भी घुटने टेकने पड़े। आज उनकी 149वीं जयंती के मौके पर आइये हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि पोरबंदर के मोहनदास को उनके जीवन के किन महत्वपूर्ण पड़ावों और घटनाओं ने महात्मा बना दिया।


मोहन दास के जीवन पर पिता करमचंद गांधी से ज्यादा उनकी माता पुतली बाई के धार्मिक संस्कारों का प्रभाव पड़ा। बचपन में सत्य हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की कथाओं ने उनके जीवन पर इतना गहरा असर डाला कि उन्होंने इन्हीं आदर्शों को अपना मार्ग बना लिया। जिस पर चलते हुए बापू देश के राष्ट्रपिता बन गए। 


वर्ष 1883 में कस्तूरबा से उनका विवाह के दो साल बाद उनके पिता का देहांत हो गया। राजकोट के अल्फ्रेड हाई स्कूल और भावनगर के शामलदास स्कूल में शुरुआती पढ़ाई पूरी कर मोहन दास 1888 में बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन पहुंच गए। स्वदेश लौटकर बंबई में वकालत शुरू की, लेकिन खास सफलता नहीं मिलने पर 1893 में वकालत करने दक्षिण अफ्रीका चले गए। यहां गांधी को अंग्रेजों के भारतीयों के साथ जारी भेदभाव का अनुभव हुआ और उन्हें इसके खिलाफ संघर्ष को प्रेरित किया। दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उनकी कामयाबी ने गांधी को भारत में भी मशहूर कर दिया और वर्ष 1917 में उन्होंने चंपारण के नील किसानों पर अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इसके बाद तो गांधी जी के जीवन का एकमात्र लक्ष्य ही ब्रितानी हुकूमत को देश के बाहर खदेड़ना बन गया। आखिर 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली और पूरे देश ने उन्हें अपना ‘राष्ट्रपिता’ माना।

सादर नमन 🙏🙏
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मंगलवार, 25 सितंबर 2018

आज विशेष जन्मतिथि पं० दीनदयाल_उपाध्याय

 #आज_विशेष_जन्मतिथि 

#दीनदयाल_उपाध्याय 
( #जन्म: 25 7, 1916, मथुरा, उत्तर प्रदेश; #मृत्यु: 11 फ़रवरी 1968) 

भारतीय जनसंघ के नेता थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक प्रखर विचारक, उत्कृष्ट संगठनकर्ता तथा एक ऐसे नेता थे जिन्होंने जीवनपर्यंन्त अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी व सत्यनिष्ठा को महत्त्व दिया। वे भारतीय जनता पार्टी के लिए वैचारिक मार्गदर्शन और नैतिक प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। 
पंडित दीनदयाल उपाध्याय मज़हब और संप्रदाय के आधार पर भारतीय संस्कृति का विभाजन करने वालों को देश के विभाजन का ज़िम्मेदार मानते थे। वह हिन्दू राष्ट्रवादी तो थे ही, इसके साथ ही साथ भारतीय राजनीति के पुरोधा भी थे। दीनदयाल की मान्यता थी कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति हैं। दीनदयाल उपाध्याय की पुस्तक एकात्म मानववाद (इंटीगरल ह्यूमेनिज्म) है जिसमें साम्यवाद और पूंजीवाद, दोनों की समालोचना की गई है। एकात्म मानववाद में मानव जाति की मूलभूत आवश्यकताओं और सृजित क़ानूनों के अनुरुप राजनीतिक कार्रवाई हेतु एक वैकल्पिक सन्दर्भ दिया गया है।

जीवन_परिचय 

दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को ब्रज के पवित्र क्षेत्र मथुरा ज़िले के छोटे से गाँव 'नगला चंद्रभान' में हुआ था। दीनदयाल के पिता का नाम 'भगवती प्रसाद उपाध्याय' था। इनकी माता का नाम 'रामप्यारी' था जो धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर बीतता था। उनके पिता कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे। थोड़े समय बाद ही दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया जिसका नाम 'शिवदयाल' रखा गया। पिता भगवती प्रसाद ने अपनी पत्नी व बच्चों को मायके भेज दिया। उस समय दीनदयाल के नाना चुन्नीलाल शुक्ल धनकिया में स्टेशन मास्टर थे। मामा का परिवार बहुत बड़ा था। दीनदयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ खाते-खेलते बड़े हुए। वे दोनों ही रामप्यारी और दोनों बच्चों का ख़ास ध्यान रखते थे। 3 वर्ष की मासूम उम्र में दीनदयाल पिता के प्यार से वंचित हो गये। पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग हो गया। 8 अगस्त सन् 1924 को रामप्यारी बच्चों को अकेला छोड़ ईश्वर को प्यारी हो गयीं। 7 वर्ष की कोमल अवस्था में दीनदयाल माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये। सन् 1934 में बीमारी के कारण दीनदयाल के भाई का देहान्त हो गया।

शिक्षा

 गंगापुर में दीनदयाल के मामा 'राधारमण' रहते थे। उनका परिवार उनके साथ ही था। गाँव में पढ़ाई का अच्छा प्रबन्ध नहीं था, इसलिए नाना चुन्नीलाल ने दीनदयाल और शिबु को पढ़ाई के लिए मामा के पास गंगापुर भेज दिया। गंगापुर में दीना की प्राथमिक शिक्षा का शुभारम्भ हुआ। मामा राधारमण की भी आय कम और खर्चा अधिक था। उनके अपने बच्चों का खर्च और साथ में दीना और शिबु का रहन-सहन और पढ़ाई का खर्च करनी पड़ती थी।


स्वर्ण_पदक 

सन 1937 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा दी। इस परीक्षा में भी दीनदयाल जी ने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर एक कीर्तिमान स्थापित किया। बिड़ला कॉलेज में इससे पूर्व किसी भी छात्र के इतने अंक नहीं आए थे। जब इस बात की सूचना घनश्याम दास बिड़ला तक पहुँची तो वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने दीनदयाल जी को एक स्वर्ण पदक प्रदान किया। उन्होंने दीनदयाल जी को अपनी संस्था में एक नौकरी देने की बात कही। दीनदयाल जी ने विनम्रता के साथ धन्यवाद देते हुए आगे पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। बिड़ला जी इस उत्तर से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, 'आगे पढ़ना चाहते हो, बड़ी अच्छी बात है। हमारे यहाँ तुम्हारे लिए एक नौकरी हमेशा ख़ाली रहेगी। जब चाहो आ सकते हो।' धन्यवाद देकर दीनदयाल जी चले गए। बिड़ला जी ने उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की।


सर्वोच्च_अध्यक्ष 

पंडित दीनदयाल जी की संगठनात्मक कुशलता बेजोड़ थी। आख़िर में जनसंघ के इतिहास में चिरस्मरणीय दिन आ गया जब पार्टी के इस अत्यधिक सरल तथा विनीत नेता को सन् 1968 में पार्टी के सर्वोच्च अध्यक्ष पद पर बिठाया गया। दीनदयाल जी इस महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी को संभालने के पश्चात् जनसंघ का संदेश लेकर दक्षिण भारत गए। देश सेवा पंडित जी घर गृहस्थी की तुलना में देश की सेवा को अधिक श्रेष्ठ मानते थे। दीनदयाल देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उन्होंने कहा था कि 'हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारतमाता है, केवल भारत ही नहीं। माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल ज़मीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जाएगा। पंडित जी ने अपने जीवन के एक-एक क्षण को पूरी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक गहराई से जिया है। पत्रकारिता जीवन के दौरान उनके लिखे शब्द आज भी उपयोगी हैं। प्रारम्भ में समसामयिक विषयों पर वह 'पॉलिटिकल डायरी‘ नामक स्तम्भ लिखा करते थे। पंडित जी ने राजनीतिक लेखन को भी दीर्घकालिक विषयों से जोडकर रचना कार्य को सदा के लिए उपयोगी बनाया है।

मृत्यु

विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी, पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या सिर्फ़ 52 वर्ष की आयु में 11 फ़रवरी 1968 को मुग़लसराय के पास रेलगाड़ी में यात्रा करते समय हुई थी। उनका पार्थिव शरीर मुग़लसराय स्टेशन के वार्ड में पड़ा पाया गया। भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारतवर्ष में सभ्यतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिया।

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बुधवार, 5 सितंबर 2018

आज विशेष शिक्षक दिवस

आज विशेष जन्मतिथि
डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन
शिक्षक दिवस

✍ गौरव सिंह गौतम 

भारत के दूसरे राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

दुनिया भर में टीचर्स डे मनाने की अलग-अलग तिथियां निर्धारित हैं। यूनेस्को की ओर से शिक्षक दिवस मनाने के लिए 5 अक्टूबर की तिथि निर्धारित है। 

इसलिए,दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में 5 अक्टूबर को टीचर्स डे मनाया जाता है। भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने के पीछे एक कहानी है। 

आइए, आज हम आपको टीचर्स से जुड़े इस किस्से के बारे में बताते हैं।

कौन थे राधाकृष्णन 



डा. सर्वपल्‍ली राधा कृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति और एक शिक्षक थे। 
वह पूरी दुनिया को ही स्कूल मानते थे। 
उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तिरुतनी नाम के गांव में हुआ था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति थे। 
राजनीति में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन को दिये थे। उनका कहना था कि जहां कहीं से भी कुछ सीखने को मिले उसे अपने जीवन में उतार लेना चाहिए। 
वह पढ़ाने से ज्यादा छात्रों के बौद्धिक विकास पर जोर देने की बात करते थे। 
वह पढ़ाई के दौरान काफी खुशनुमा माहौल बनाकर रखते थे। 
1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

राधाकृष्णन के जन्मदिन को ही क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस ?



डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के दूसरे राष्ट्रपति होने के अलावा एक विख्यात दार्शनिक, महान शिक्षाविद तथा शिक्षक थे। 
उनके छात्र उनसे बहुत स्नेह करते थे। एक बार उनके कुछ शिष्यों तथा दोस्तों ने उनका जन्मदिन मनाने का निश्चय किया। 
इस बारे में वे जब उनसे अनुमति लेने गए तो उन्होंने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से मनाए जाने की बजाय अगर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा तो मुझे गर्व महसूस होगा। 
इसी के बाद से पूरे देश में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। 
देश में पहली बार 5 सितंबर 1962 को शिक्षक दिवस मनाया गया था।

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शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

राजस्थान के किसान ने अपने गांव को बना दिया मिनी इजरायल , सालाना 1 करोड़ की कमाई


राजस्थान के किसान ने अपने गांव को बना दिया मिनी इजरायल , सालाना 1 करोड़ की कमाई


खेती किसानी के मामले में इजरायल को दुनिया का सबसे हाईटेक देश माना जाता है। वहां रेगिस्तान में ओस से सिंचाई होती है, दीवारों पर गेहूं, धान उगाए जाते हैं, भारत के लाखों लोगों के लिए ये एक सपना ही है। इजरायल की तर्ज पर राजस्थान के एक किसान ने खेती शुरू की और आज उनका सालाना टर्नओवर सुन कर आप उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे।

दिल्ली से करीब 300 किलोमीटर दूर राजस्थान के जयपुर जिले में एक गांव है गुड़ा कुमावतान। ये किसान खेमाराम चौधरी (45 वर्ष) का गांव है। खेमाराम ने तकनीकी और अपने ज्ञान का ऐसा तालमेल भिड़ाया कि वो लाखों किसानों के लिए उदाहरण बन गए हैं। आज उनका मुनाफा लाखों रुपए में है। खेमाराम चौधरी ने इजरायल के तर्ज पर चार साल पहले संरक्षित खेती (पॉली हाउस) करने की शुरुआत की थी। आज इनके देखादेखी आसपास लगभग 200 पॉली हाउस बन गये हैं, लोग अब इस क्षेत्र को मिनी इजरायल के नाम से जानते हैं। खेमाराम अपनी खेती से सलाना एक करोड़ का टर्नओवर ले रहे हैं।
सरकार की तरफ से इजरायल जाने का मिला मौका
राजस्थान के जयपुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर गुड़ा कुमावतान गांव है। इस गाँव के किसान खेमाराम चौधरी (45 वर्ष) को सरकार की तरफ से इजरायल जाने का मौका मिला। इजरायल से वापसी के बाद इनके पास कोई जमा पूंजी नहीं थी लेकिन वहां की कृषि की तकनीक को देखकर इन्होंने ठान लिया कि उन तकनीकाें को अपने खेत में भी लागू करेंगे।
सरकारी सब्सिडी से लगाया पहला पॉली हाउस
चार हजार वर्गमीटर में इन्होने पहला पॉली हाउस सरकार की सब्सिडी से लगाया। खेमाराम चौधरी गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “एक पॉली हाउस लगाने में 33 लाख का खर्चा आया, जिसमे नौ लाख मुझे देना पड़ा जो मैंने बैंक से लोन लिया था, बाकी सब्सिडी मिल गयी थी। पहली बार खीरा बोए करीब डेढ़ लाख रूपए इसमे खर्च हुए।
चार महीने में ही 12 लाख रुपए का खीरा बेचा, ये खेती को लेकर मेरा पहला अनुभव था।” वो आगे बताते हैं, “इतनी जल्दी मै बैंक का कर्ज चुका पाऊंगा ऐसा मैंने सोचा नहीं था पर जैसे ही चार महीने में ही अच्छा मुनाफा मिला, मैंने तुरंत बैंक का कर्जा अदा कर दिया। चार हजार वर्ग मीटर से शुरुआत की थी आज तीस हजार वर्ग मीटर में पॉली हाउस लगाया है।”
मिनी इजरायल के नाम से मशहूर है क्षेत्र
खेमाराम चौधरी राजस्थान के पहले किसान थे जिन्होंने इजरायल के इस माडल की शुरुआत की थी। आज इनके पास खुद के सात पॉली हाउस हैं, दो तालाब हैं, चार हजार वर्ग मीटर में फैन पैड है, 40 किलोवाट का सोलर पैनल है। इनके देखादेखी आज आसपास के पांच किलोमीटर के दायरे में लगभग 200 पॉली हाउस बन गये हैं।
इस जिले के किसान संरक्षित खेती करके अब अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। पॉली हाउस लगे इस पूरे क्षेत्र को लोग अब मिनी इजरायल के नाम से जानते हैं। खेमाराम का कहना है, “अगर किसान को कृषि के नये तौर तरीके पता हों और किसान मेहनत कर ले जाए तो उसकी आय 2019 में दोगुनी नहीं बल्कि दस गुनी बढ़ जाएगी।”
मुनाफे का सौदा है खेती
अपनी बढ़ी आय का अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “आज से पांच साल पहले हमारे पास एक रुपए भी जमा पूंजी नहीं थी, इस खेती से परिवार का साल भर खर्चा निकालना ही मुश्किल पड़ता था। हर समय खेती घाटे का सौदा लगती थी, लेकिन जबसे मैं इजरायल से वापस आया और अपनी खेती में नये तौर-तरीके अपनाए, तबसे मुझे लगता है खेती मुनाफे का सौदा है, आज तीन हेक्टयर जमीन से ही सलाना एक करोड़ का टर्नओवर निकल आता है।”
खेमाराम ने अपनी खेती में 2006-07 से ड्रिप इरीगेशन 18 बीघा खेती में लगा लिया था। इससे फसल को जरूरत के हिसाब से पानी मिलता है और लागत कम आती है। ड्रिप इरीगेशन से खेती करने की वजह से जयपुर जिले से इन्हें ही सरकारी खर्चे पर इजरायल जाने का मौका मिला था जहाँ से ये खेती की नई तकनीक सीख आयें हैं।
इजरायल मॉडल पर खेती करने से दस गुना मुनाफा
जयपुर जिले के बसेड़ी और गुढ़ा कुमावतान गाँव के किसानों ने इजरायल में इस्तेमाल होने वाली पॉली हाउस आधारित खेती को यहां साकार किया है। नौवीं पास खेमाराम की स्तिथि आज से पांच साल पहले बाकी आम किसानों की ही तरह थी। आज से 15 साल पहले उनके पिता कर्ज से डूबे थे। ज्यादा पढ़ाई न कर पाने की वजह से परिवार के गुजर-बसर के लिए इनका खेती करना ही आमदनी का मुख्य जरिया था। ये खेती में ही बदलाव चाहते थे, शुरुआत इन्होने ड्रिप इरीगेशन से की थी। इजरायल जाने के बाद ये वहां का माडल अपनाना चाहते थे।
कृषि विभाग के सहयोग और बैंक के लोंन लेने के बाद इन्होने शुरुआत की। चार महीने में 12 लाख के खीर बेचे, इससे इनका आत्मविश्वास बढ़ा। देखते ही देखते खेमाराम ने सात पॉली हाउस लगाकर सलाना का टर्नओवर एक करोड़ का लेने लगे हैं। खेमाराम ने बताया, “मैंने सात अपने पॉली हाउस लगाये और अपने भाइयों को भी पॉली हाउस लगवाए, पहले हमने सरकार की सब्सिडी से पॉली हाउस लगवाए लेकिन अब सीधे लगवा लेते हैं, वही एवरेज आता है, पहले लोग पॉली हाउस लगाने से कतराते थे अभी दो हजार फाइलें सब्सिडी के लिए पड़ी हैं।”
इनके खेत में राजस्थान का पहला फैन पैड

फैन पैड (वातानुकूलित) का मतलब पूरे साल जब चाहें जो फसल ले सकते हैं। इसकी लागत बहुत ज्यादा है इसलिए इसकी लगाने की हिम्मत एक आम किसान की नहीं हैं। 80 लाख की लागत में 10 हजार वर्गमीटर में फैन पैड लगाने वाले खेमाराम ने बताया, “पूरे साल इसकी आक्सीजन में जिस तापमान पर जो फसल लेना चाहें ले सकते हैं, मै खरबूजा और खीरा ही लेता हूँ, इसमे लागत ज्यादा आती है लेकिन मुनाफा भी चार गुना होता है।
डेढ़ महीने बाद इस खेत से खीरा निकलने लगेगा, जब खरबूजा कहीं नहीं उगता उस समय फैन पैड में इसकी अच्छी उपज और अच्छा भाव ले लेते हैं।” वो आगे बताते हैं, “खीरा और खरबूजा का बहुत अच्छा मुनाफा मिलता है, इसमें एक तरफ 23 पंखे लगें हैं दूसरी तरफ फब्बारे से पानी चलता रहता है ,गर्मी में जब तापमान ज्यादा रहता है तो सोलर से ये पंखा चलते हैं,फसल की जरूरत के हिसाब से वातावरण मिलता है, जिससे पैदावार अच्छी होती है।”
ड्रिप इरीगेशन और मल्च पद्धति है उपयोगी
ड्रिप से सिंचाई में बहुत पैसा बच जाता है और मल्च पद्धति से फसल मौसम की मार, खरपतवार से बच जाती है जिससे अच्छी पैदावार होती है। तरबूज, ककड़ी, टिंडे और फूलों की खेती में अच्छा मुनाफा है। सरकार इसमे अच्छी सब्सिडी देती है, एक बार लागत लगाने के बाद इससे अच्छी उपज ली जा सकती है।
तालाब के पानी से करते हैं छह महीने सिंचाई
खेमाराम ने अपनी आधी हेक्टेयर जमीन में दो तालाब बनाए हैं, जिसमें बरसात का पानी एकत्रित हो जाता है। इस पानी से छह महीने तक सिंचाई की जा सकती है। ड्रिप इरीगेशन और तालाब के पानी से ही पूरी सिंचाई होती है। ये सिर्फ खेमाराम ही नहीं बल्कि यहाँ के ज्यादातर किसान पानी ऐसे ही संरक्षित करते हैं। पॉली हाउस की छत पर लगे माइक्रो स्प्रिंकलर भीतर तापमान कम रखते हैं। दस फीट पर लगे फव्वारे फसल में नमी बनाए रखते हैं।
सौर्य ऊर्जा से बिजली कटौती को दे रहे मात
हर समय बिजली नहीं रहती है, इसलिए खेमाराम ने अपने खेत में सरकारी सब्सिडी की मदद से 15 वाट का सोलर पैनल लगवाया और खुद से 25 वाट का लगवाया। इनके पास 40 वाट का सोलर पैनल लगा है। ये अपना अनुभव बताते हैं, “अगर एक किसान को अपनी आमदनी बढ़ानी है तो थोड़ा जागरूक होना पड़ेगा।
खेती से जुड़ी सरकारी योजनाओं की जानकारी रखनी पड़ेगी, थोड़ा रिस्क लेना पड़ेगा, तभी किसान अपनी कई गुना आमदनी बढ़ा सकता है।” वो आगे बताते हैं, “सोलर पैनल लगाने से फसल को समय से पानी मिल पाता है, फैन पैड भी इसी की मदद से चलता है, इसे लगाने में पैसा तो एक बार खर्च हुआ ही है लेकिन पैदावार भी कई गुना बढ़ी है जिससे अच्छा मुनाफा मिल रहा है, सोलर पैनल से हम बिजली कटौती को मात दे रहे हैं।”
रोजाना इनके मिनी इजरायल को देखने आते हैं किसान
राजस्थान के इस मिनी इजरायल की चर्चा पूरे राज्य के साथ कई अन्य प्रदेशों और विदेश के भी कई हिस्सों में है। खेती के इस बेहतरीन माडल को देखने यहाँ किसान हर दिन आते रहते हैं। खेमाराम ने कहा, “आज इस बात की मुझे बेहद खुशी है कि हमारे देखादेखी ही सही पर किसानों ने खेती के ढंग में बदलाव लाना शुरू किया है। इजरायल माडल की शुरुआत राजस्थान में हमने की थी आज ये संख्या सैकड़ों में पहुंच गयी है, किसान लगातार इसी ढंग से खेती करने की कोशिश में लगें हैं।
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