रविवार, 22 जुलाई 2018

लघुकथा - #जाकी_रही_भावना_जैसी

आज की कहानी #जाकी_रही_भावना_जैसी 


वकील साहब गाँव के रहने वाले थे ।
पुस्तैनी जायदाद भी काफी थी ।
चार भाइयों का परिवार था ।
 दो भाई वकील बने तो कस्बे में रहते और शेष दो खेती का काम कराते थे । 
इस समय दो भाइयों की पत्नियाँ गर्भवती थीं और दोनों कस्बे में थीं । 
छोटी के समय आने पर प्रसव हुआ तो मृत शिशु को जन्म दिया और संक्रमण ऐसा हुआ कि उसके गर्भाशय को निकालने की दशा में ही नमिता का जीवन बचना संभव था , 
बड़े भाई ने बहू के जीवन को महत्वपूर्ण समझा और अनुमति प्रदान कर दी ।
             कुछ ही महीनों बाद उनकी पत्नी ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया। 
वकील साहब ने अपनी पत्नी की अनुमति से एक बेटा नमिता की गोद में डाल दिया और भाई से कहा कि यह तुम्हारा बेटा है और इसको पालो ।
           ये घटना परिवार में चारों ओर फैल गई । 
किसी ने सराहा कि कौन माँ बाप अपना बच्चा देने की हिम्मत करता है । 
एक सज्जन कुछ कुटिल सोच के थे बोले - "लोग समझ ही नहीं पाये , वकील ने अपनी बुद्धि लगाई और बेटा दे दिया कि जायदाद का हिस्सा अपने पास ही रहेगा । 
कुल जायदाद का आधा हिस्सा मिलेगा तो उन्हीं के बेटों को । अगर कहीं भाई ने कोई दूसरा बच्चा गोद ले लिया तो एक हिस्सा हाथ से निकल जायेगा ।"
     
वहाँ बैठे लोगों ने सोचा -' जाकी रही भावना जैसी।'

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रविवार, 8 जुलाई 2018

हम मिडिल क्लास आदमी


#हम_मिडिल_क्लास_आदमी.. 

गौरव सिंह गौतम ( प्रधान संपादक आत्म गौरव न्यूज़.कॉम )

हम मिडिल क्लास आदमी हैं। 
जब हम गोवा नहीं जा पाते तो चुप मार के अपने गाँव या नजदीक ही किसी धार्मिक स्थल चले जाते हैं ।

एक उमर तक ना हम ढेर आस्तिक हैं ना कम नास्तिक। कुछ कुछ मौक़ापरस्त 

पीड़ा में होते हैं तो भगवान को याद करते हैं। 
जब सब कुछ तबाह हो जाए तो भगवान को दोष देते हैं और जब मनोकामना पूरी हो जाए तो भगवान को किनारे कर देते हैं।

हम मोदी ,योगी , अखिलेश आदि नेताओं को गरियाते हैं और एक्टरों शाहरुख , सलमान आदि को पूजते हैं। 

हम अपने नेता विधायक , सांसद खुद चुनते हैं पर उनसे सवाल नहीं कर पाते । 
उनको ना कोस के ख़ुद को कोसते हैं। 
अमिताभ और सचिन हमारे भगवान होते हैं। 

हमको अटल बिहारी बाजपेयी के अलावा कोई और नेता लीडर लगता ही नहीं।

हम वो हैं जो कभी कभी फटे दूध की चाय बना लेते हैं। एक ईयर फ़ोन में दोस्त के साथ रेडियो पे नग़मे सुन लेते हैं। 
गरमी हो या बारिश हमें विंडो सीट ही चाहिए होती है। 
१५ ₹/किलो आलू जब हम मोलभाव करके १३ में और धनिया फ़्री मे लेके घर लौटते हैं तो सीना थोड़ा चौड़ा कर लेते हैं।

हम कभी कभी फ़ेरी वाले से हो किसी बड़े शॉपिंग मॉल में डिस्काउंट के चक्कर में समान अनायास ही ख़रीद लेते हैं। 
हम पैसे उड़ाते तो हैं पर हिसाब दिमाग़ में रखते हुए चलते हैं। 
हम दिया उधार जल्दी वापस नहीं माँग पाते ना ही लिया हुआ जल्दी चुका पाते हैं। 
संकोच जैसे हिमोग्लोबिन में तैरता हो हमारे।

हम ताला मारते हैं तो उसे दो तीन बार खींच के चेक कर लेते है कि ठीक से तो बंद हुआ है ना? 
बिजली की लाइट कटी हो तो बोर्ड की सारी स्विच ओन ओफ़ करके कन्फ़र्म करते हैं की कटी ही है। 
हमें ख़ुद की बिजली कटी होने पे तकलीफ़ तब तक नहीं होती जब तक पड़ोसी के यहाँ भी ना आ रही हो ।

बेकरी वाला बिस्क़िट और हल्दीराम की नमकीन हम सिर्फ़ ख़ास मेहमानों के लिए रखते हैं।
ज़िंदगी में कभी हवाई यात्रा का मौक़ा मिला तो हम उसका टिकट(बोर्डिंग पास सहित) हाई स्कूल-इण्टर की मार्कशीट की तरह सहेज के रखते हैं। 

हम स्लीपर ट्रेन में आठ की आठ सीटों पे बैठे यात्रियों की बात चाव से सुनते हैं और उनको अपनी तकलीफ़ और क़िस्से सुनाते हैं ।

भीड़ में कोई चेहरा पसंद भी आ जाए तो पलट के देखना अपनी तौहीन समझते हैं। 

कोई लिफ़्ट माँग ले तो रास्ते भर ये सोचते रहते हैं कि यार बैठा ही लिया होता। 
हम घर से दफ़्तर और दफ़्तर से घर बस यही हिसाब लगाते हुए आते हैं कि लिए गए ऋण की किश्त और घर के ख़र्चे के बाद कुछ सेविंग मुमकिन है क्या ?

अपने लिए नए जूते लेने के लिए हम दस बार सोचते हैं और दोस्तों के साथ पार्टी में उससे दुगने पैसे उड़ा देते हैं। हम इमोशनल होते हैं तो रो देते हैं पर आँसू नहीं गिराते। आँसू सिर्फ़ वहीं गिराते हैं जहाँ मालूम होता है कि सामने वाला आँसू चुन लेगा।

हम अपनी गलतीयों को याद नहीं करना चाहते। 
वाहवाही को हम ज़िंदगी से ज़्यादा सिरियस लेते हैं। 
हम किसी के व्यंग का जवाब उसे नज़रअन्दाज़ करके देते हैं। 
हम झगड़ा तब तक नहीं करते जबतक सामने वाला इतना इम्पोर्टेंट ना हो। 
हमें दूसरों के आगे चुप रहना पसंद है और अपनों के आगे तो हम उसे चुप करा करा के सुनाते हैं।

कोई सम्मन से बात भर कर ले हम उसे सिर चढ़ा लेते हैं और जो कोई फन्ने खाँ बना तो नज़र में .  
मिडिल क्लास लोग हैं। 
हम माता जी के हाथ का बना सुबह का खाना शाम को भी खा लेते हैं और कभी कभी तो अगली सुबह भी । 

प्रेम को हम सीरियासली लेते हैं। 
हम जब प्रेम करते हैं और तो अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं उनपे और बना लेते एक मुकम्मल दुनिया। अपने अपने बजट से। 
मिडिल क्लास आदमी अपनी छोटी छोटी ख़्वाहिशों को बड़े बड़े अरमान के साथ जी लेता है।

गाने की लिरिक्स ना याद हो तो आधा गा के पूरी धुन गुनगुना लेते हैं। 
कभी कभी शैम्पू न मिलने पर साबुन से बाल भी धुल लेते हैं । 
छोटी छोटी ख़ुशियों को पनीर खा के सेलेब्रेट कर लेते हैं। 

मिडिल क्लास आदमी उतना ही सच्चा होता है जितनी निरछल उसकी मुस्कान । 
देखिएगा कभी ।

और अंत में आप सब को मेरा प्रणाम 🙏 
लेख में कुछ अनुचित लगा हो तो क्षमा करिएगा ...

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बुधवार, 4 जुलाई 2018

युवा नायक स्वामी विवेकानंद

 युवा नायक स्वामी विवेकानंद जी 

✍ प्रधान संपादक गौरव सिंह गौतम की कलम से


महज ३९ साल की आयु में दुनिया का दिल जीतकर चले जाना आसान नहीं होता। 
निश्चिततौर पर ऐसा कोई असाधारण व्यक्ति ही कर सकता है। 
असाधारण होना नायक होने का पहला और नैसर्गिक गुण है। नायक प्रभावशाली होता है, 
वह लोगों की भीड़ को अपनी बातों से सम्मोहित कर सकता है। 
नायक अपने तेज से लोगों को अपनी ओर खींच सकता है। 
वह नई राह बनाता है लोगों के चलने के लिए। उसके पास समस्याएं नहीं बल्कि उनके हल होते हैं। 
नायक विचारवान, तर्कशील और तत्काल निर्णय लेने में सक्षम होता है। 
वह साहस, उत्साह और ऊर्जा से लबरेज रहता है। नायक कुशलता से लोगों का नेतृत्व करता है। इसके साथ ही तमाम दूसरे गुण कथनी-करनी में ईमानदार, आकर्षक व्यक्तित्व, न्याय प्रियता, निरपेक्षता, निर्लिप्तता, त्याग, संयम, शुचिता, वीरता, ओज, क्षमाभाव, प्रेम, समन्वयीकरण, प्रबंधन, परोपकार, परहित चिंता, दृढ़ता और इच्छाशक्ति भी नायक को औरों से अलग करते हैं। 
       स्वामी विवेकानंद ने ३९ वर्ष की अल्पायु में नायक के इन सब गुणों का प्रगटीकरण किया। अब विचार करने की बात है कि स्वामी विवेकानंद नायक किसके? स्वामी विवेकानंद यूं तो सबके नायक साबित होते हैं। उनको लेकर कहीं कोई भेद नहीं है। न जाति के आधार पर उन्हें किसी ने बांटा है, न विचारधारा के नाम पर। लिंग और आयुवर्ग के आधार पर भी वे किसी एक के नायक नहीं है। वे तो सबकी बात करते हैं। फिर भी स्वामी विवेकानंद युवाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। दरअसल, स्वामी विवेकानंद के चिंतन में सदैव युवा केन्द्रीय बिन्दु रहा। स्वामी जी कहते थे कि मेरी आशा युवाओं में, इनमें से ही मेरे कार्यकर्ता आएंगे। स्वामी भली-भांति जानते थे कि भारत और हिन्दू धर्म के उत्थान में ओजस्वी और बलशाली युवाओं की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। युवा यदि देश और धर्म से विमुख होगा तो स्थितियां बदतर हो जाएंगी। इसलिए स्वामी जी अकसर युवाओं का आव्हान करते थी कि उठो और अपनी जिम्मेदारी संभालो। जागो युवा साथियो, अपनी कमर कसकर खड़े हो जाओ। भारत मां की सेवा के लिए सामथ्र्य जुटाओ।  
       स्वामी विवेकानंद बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी बातों में जादू था। तभी तो ११ सितंबर १८८३ को शिकागो में उनका जादू सिर चढ़कर बोला था। महज कुछ पलों में अपनी बात रखने का मौका स्वामी विवेकानंद को मिला था। इन चंद पलों में ही भारत के विवेक ने अमेरिका और दुनियाभर से जमा लोगों की बीच आनंद की लहर पैदा कर दी। इसके बाद तो धर्मसभा के आयोजकों ने उनका बड़े रोचक तरीके से इस्तेमाल किया। जब किसी के भाषण से श्रोताओं का मन ऊबने लगता और वे जाने को होते तब बीच में मंच पर आकर आयोजक उद्घोषणा करते कि एक भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद बोलेंगे, इतना सुनते ही भीड़ वहीं ठिठक जाती। यह जादू आज भी बरकरार है। रामकृष्ण मिशन और विवेकानंद केन्द्र सहित स्वामी जी के विचारों को लेकर काम कर रहे अलग-अलग संगठनों के मुताबिक आज भी स्वामीजी को पढऩे और समझने के लिए युवा लालायित रहते हैं। इन संगठनों से युवा बड़ी संख्या में जुड़कर काम भी कर रहे हैं। दरअसल, युवा स्वामी विवेकानंद को औरों की अपेक्षा अपने अधिक निकट पाते हैं। युवाओं के मन में स्वामीजी की युवा संन्यासी, देशभक्त युवक और क्रांतिकारी प्रणेता की छवि बसी हुई है। स्वामी विवेकानंद भी अकसर अपने भाषणों में आव्हान करते थे कि संसार को बस कुछ सौ साहसी युवतियों-युवकों की जरूरत है। स्वामी जी युवाओं में साहस भी असीम चाहते थे। समुद्र को पी जाने का साहस, समुद्र तल से मोती लेकर आने का साहस, मृत्यु का सामना कर सकने का साहस और पहाड़-सी चुनौतियों को स्वीकार कर सकने का साहस स्वामी जी युवाओं में चाहते थे। स्वामीजी हिन्दू संन्यासी होकर युवाओं से मंदिर में बैठकर माला जपने और देवता के आगे अगरबत्ती लगाने की बात नहीं कहते थे। वे हमेशा युवाओं के मन की बात करते थे, सिर्फ मन की नहीं असल में युवाओं के उत्थान की, राष्ट्र के विकास की और समाज के सुदृढि़करण की बात। उनका तो मानना था कि सबसे पहले हमारे तरुणों को मजबूत बनना चाहिए। धर्म इसके बाद की वस्तु है। युवा शक्तिशाली होगा, नशे-व्यसन से दूर होगा और कर्मशील होगा तो बाकी सब समस्याओं को दूर भगाना आसान होगा। 

स्वामी जी युवाओं को संबोधित करते हैं - 'मेरे मित्रो, शक्तिशाली बनो, मेरी तुम्हें यही सलाह है। तुम गीता के अध्याय की अपेक्षा फुटबाल के द्वारा ही स्वर्ग के अधिक समीप पहुंच सकोगे। ये कड़े शब्द हैं लेकिन मैं उन्हें कहना चाहता हूं क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करता हूं। तुम्हारे स्नायु और मांसपेशियां अधिक मजबूत होने पर तुम गीता अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे।इसलिए जाओ मैदान में फुटबाल खेलो।' 

      अपनी ओजस्वी वाणी और तर्क के आधार पर विश्व में भारत की आध्यात्मिक परंपरा का डंका बजाने वाले 
स्वामी विवेकानंद तरुणों में ही लोकप्रिय नहीं है, वे युवतियों के भी हीरो हैं। इस युवा संन्यासी ने भारत की स्त्री शक्ति की भी चिंता की। उनकी महत्ता प्रतिपादित की। स्त्रियों को उनका अस्तित्व याद दिलाया। फलत: अमेरिका सहित यूरोप की कई स्त्रियां उनकी अनुयायी बन गईं। स्वामीजी के मार्ग पर चल निकलीं। स्त्रियों के साथ उस समय हो रहे दोयम दर्जे के व्यवहार पर विवेकानंद ने रोष प्रकट किया और पुरुष सत्ता को संभलने की चेतावनी दी। स्वामीजी कहते थे कि स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुए बिना संसार के कल्याण की कोई संभावना नहीं है। एक पक्षी का केवल एक पंख के सहारे उड़ पाना संभव नहीं है। यहां स्पष्ट कर देना होगा कि स्वामीजी भारत में स्त्रियों की स्थिति को लेकर ही चिंतित नहीं थे वरन् उनकी चिंता दुनियाभर में स्त्रियों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर थी। स्वामीजी सीधे स्त्रियों से भी अपेक्षा करते थे कि वे अपने काम स्वयं करें, पुरुषों के भरोसे रहे ही नहीं। उनका स्पष्ट मत था कि स्त्रियों में अवश्य ही यह क्षमता होनी चाहिए कि वे अपनी समस्याएं अपने ढंग से हल कर सकें। उनका यह कार्य न कोई दूसरा कर सकता है और न ही दूसरे को करना चाहिए। स्त्रियों को शिक्षित करने की दिशा में भी स्वामी जी की चिंता स्पष्ट दिखती है। वे जानते थे कि स्त्री शिक्षा के मायने क्या हैं। परिवार और समाज निर्माण की बुनियाद स्त्रियों के हाथ में पुरुषों की अपेक्षा कुछ अधिक रहती है। स्पष्ट है ऐसे में घर में मां और बहन का पढ़ा-लिखा होना कितना जरूरी है। स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रिय शिष्या भगिनी निवेदिता (मार्गरेट नोबल) को भारत में नए सिरे से नारी शिक्षा की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से ही भगिनी निवेदिता ने सारदा बालिका विद्यालय की स्थापना की। साथ ही देशभर में नारी शिक्षा को मजबूत करने के लिए आंदोलन भी चलाया। 
       साहस, उत्साह और ऊर्जा के पुंज स्वामी विवेकानंद के क्रांतिकारी विचार उनके समय से अब तक युवाओं को आत्मविश्वास से भर देते हैं। विवेकानंद का नाम मस्तिष्क में आते ही हृदय स्फूर्ति और उत्साह से भर जाता है। स्वामीजी के ओजस्वी विचार आज भी युवाओं को प्रेरणा देते हैं। 'उठो जागो और तब तक न रुको जब तक मंजिल न प्राप्त हो जाए' स्वामी विवेकानंद का यह वाक्य आज भी दुनियाभर के युवाओं का मार्गदर्शन करने का काम करता है। विद्यार्थी जीवन में तो अधिकतर युवा इस वाक्य को सदैव अपने अध्ययन की मेज के सामने लिखकर ही रखते हैं। युवाओं को स्वामी विवेकानंद अपने नायक तो दिखते ही हैं, मित्र की तरह भी महसूस होते हैं। युवाओं में स्वामी विवेकानंद की लोकप्रियता का कारण है कि उनकी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि यह भी सच है कि वर्तमान युवा पीढ़ी उन्हें आदर्श जरूर मानती है लेकिन उनके विचारों और सिद्धांतों का पालन करने में बहुत पीछे है। जरूरत इस बात की है युवा आगे आएं और अपने नायक को अपने जीवन में उतारें। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत को फिर से विश्वगुरु कोई बना सकता है तो वह है भारत की युवाशक्ति। स्वामी विवेकानंद के स्वप्न को साकार करने की महती जिम्मेदारी भारत की युवा पीढ़ी पर है, वे ऐसा कर सकते हैं, बस उन्हें जरूरत है अपने हीरो विवेकानंद के बताए मार्ग पर आगे बढऩे की। भारत की युवा शक्ति को जागृत करने और नई सोच देने के लिए विवेकानंद बहुत कुछ कह गए हैं। आज के युवा उसे पढ़ें, समझें और तब तक नहीं रुकें, जब तक स्वामी जी के स्वप्न साकार नहीं हो जाएं। 
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रविवार, 17 जून 2018

#आज_विशेष #पितृ_दिवस / 'पिता दिवस' / 'फ़ादर्स डे'


Author ✍ Gaurav Singh Gautam 

#पितृ_दिवस / 'पिता दिवस' / 'फ़ादर्स डे' पिताओं के सम्मान में एक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है, 

जिसमें पितृत्व, पितृत्व-बंधन तथा समाज में पिताओं के प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। 
विश्व के अधिकतर देशों में इसे जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। 
कुछ देशों में यह अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है। 
यह माता के सम्मान हेतु मनाये जाने वाले मातृ दिवस का पूरक है। 
पिता पिता एक ऐसा शब्द जिसके बिना किसी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 
एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसकी तुलना किसी और रिश्ते से नहीं हो सकती। 
बचपन में जब कोई बच्चा चलना सीखता है तो सबसे पहले अपने पिता की उंगली थामता है। 
नन्हा सा बच्चा पिता की उँगली थामे और उसकी बाँहों में रहकर बहुत सुकून पाता है। 
बोलने के साथ ही बच्चे जिद करना शुरू कर देते है और पिता उनकी सभी जिदों को पूरा करते हैं। 
बचपन में चॉकलेट, खिलौने दिलाने से लेकर युवावर्ग तक बाइक, कार, लैपटॉप और उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने तक आपकी सभी माँगों को वो पूरा करते रहते हैं लेकिन एक समय ऐसा आता है जब भागदौड़ भरी इस ज़िंदगी में बच्चों के पास अपने पिता के लिए समय नहीं मिल पाता है। 

इसी को ध्यान में रखकर पितृ दिवस मनाने की परंपरा का आरम्भ हुआ

इतिहास पितृ दिवस की शुरुआत बीसवीं सदी के प्रारंभ में पिता धर्म तथा पुरुषों द्वारा परवरिश का सम्मान करने के लिये मातृ दिवस के पूरक उत्सव के रूप में हुई। 
यह हमारे पूर्वजों की स्मृति और उनके सम्मान में भी मनाया जाता है। 
पितृ दिवस को विश्व में विभिन तारीखों पर मनाते है- जिसमें उपहार देना, पिता के लिये विशेष भोज एवं पारिवारिक गतिविधियाँ शामिल हैं। 

आम धारणा के विपरीत, वास्तव में पितृ दिवस सबसे पहले पश्चिम वर्जीनिया के फेयरमोंट में 5 जुलाई, 1908 को मनाया गया था। 6 दिसम्बर, 1907 को मोनोंगाह, पश्चिम वर्जीनिया में एक खान दुर्घटना में मारे गए 210 पिताओं के सम्मान में इस विशेष दिवस का आयोजन श्रीमती ग्रेस गोल्डन क्लेटन ने किया था। 
'प्रथम फ़ादर्स डे चर्च' आज भी सेन्ट्रल यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च के नाम से फ़ेयरमोंट में मौजूद है पौराणिक मान्यता हमारे ग्रन्थों में माता-पिता और गुरु तीनों को ही देवता माना गया है। जिस स्थूल जगत् में हम हैं, 
उसमें वही हमारे वास्तविक देवता हैं। 
इनकी सेवा और भक्ति में कसर रह जाए तो फिर ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं। 
और अगर हमने इनकी सेवा पूरे मन से की तो भगवान स्वयं कच्चे धागे से बंधे भक्त के पीछे-पीछे चल पड़ते हैं। 
आखिर श्रवण कुमार में ऐसा क्या ख़ास था कि किसी भी भगवान से उनकी अहमियत कम नहीं है। माता-पिता की भक्ति और सेवा ने उसे भक्त प्रह्लाद और ध्रुव के बराबर का आसन दिलाया है। 
पिता चाहे कैसे भी वचन बोले, कैसा भी बर्ताव करे, संतान को उनके प्रति श्रद्धा और विनम्रता से आज्ञाकारी होना ही चाहिए। केवल इतना सूत्र भर साध लेने से हम उस ईश्वर के राज्य के अधिकारी बन जाते हैं, जिसे पाने के लिए जाने कितने तपस्वियों ने शरीर गलाया, बरसों साधना की। 




कन्धे पर माता-पिता को लेकर तीर्थ कराने निकला श्रवण जब उनकी प्यास बुझने के लिए पानी भरते हुए राजा दशरथ का एक तीर लग जाने से प्राण त्यागता है, तब यही कहता है- 
"मेरे माता-पिता प्यासे हैं, आप उन्हें जाकर पानी पिला दें।" प्राण त्यागते हुए भी जिसे अपने माता-पिता का ध्यान रहे, वह संतान उस युग में ही नहीं, इस युग में भी धन्य है। 
उसे किसी काल की परिधि में नहीं बांध सकते।

आप सब को आत्म गौरव न्यूज़.कॉम की ओर से पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ..

जय सिया राम 🚩🚩

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गुरुवार, 15 मार्च 2018

लघु - कथा " प्रेरणा का स्रोत "


✍ गौरव सिंह गौतम (संपादक)

#दोस्तों ,जिंदगी है तो संघर्ष हैं,तनाव है,काम का दबाब है, ख़ुशी है,डर है !लेकिन अच्छी बात यह है कि ये सभी स्थायी नहीं हैं!समय रूपी नदी के प्रवाह में से सब प्रवाहमान हैं!कोई भी परिस्थिति चाहे ख़ुशी की हो या ग़म की, कभी स्थाई नहीं होती ,समय के अविरल प्रवाह में विलीन हो जाती है!
ऐसा अधिकतर होता है की जीवन की यात्रा के दौरान हम अपने आप को कई बार दुःख ,तनाव,चिंता,डर,हताशा,निराशा,भय,रोग इत्यादि के मकड़जाल में फंसा हुआ पाते हैं  हम तत्कालिक परिस्थितियों के इतने वशीभूत हो जाते हैं  कि दूर-दूर तक देखने पर भी हमें कोई प्रकाश की किरण मात्र भी दिखाई नहीं देती , दूर से चींटी की तरह महसूस होने वाली परेशानी हमारे नजदीक आते-आते हाथी के जैसा रूप धारण कर लेती है  और हम उसकी विशालता और भयावहता के आगे समर्पण कर परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी हो जाने देते हैं,वो परिस्थिति हमारे पूरे वजूद को हिला डालती है ,हमें हताशा,निराशा के भंवर में उलझा जाती है…एक-एक क्षण पहाड़ सा प्रतीत होता है और हममे से ज्यादातर लोग आशा की कोई  किरण ना देख पाने के कारण  हताश होकर परिस्थिति के आगे हथियार डाल देते हैं!
अगर आप किसी अनजान,निर्जन रेगिस्तान मे फँस जाएँ तो उससे निकलने का एक ही उपाए है ,बस -चलते रहें!   अगर आप नदी के बीच जाकर हाथ पैर नहीं चलाएँगे तो निश्चित ही डूब जाएंगे !  जीवन मे कभी ऐसा क्षण भी आता है, जब लगता है की बस अब कुछ भी बाकी नहीं है ,ऐसी परिस्थिति मे अपने  आत्मविश्वास और साहस के साथ सिर्फ डटे रहें क्योंकि-
“हर चीज का हल होता है,आज नहीं तो कल होता है|”
एक बार एक राजा की सेवा से प्रसन्न होकर एक साधू नें उसे एक ताबीज दिया और कहा की राजन  इसे अपने गले मे डाल लो और जिंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आये की जब तुम्हे लगे की बस अब तो सब ख़तम होने वाला है ,परेशानी के भंवर मे अपने को फंसा पाओ ,कोई प्रकाश की किरण नजर ना आ रही हो ,हर तरफ निराशा और हताशा हो तब तुम इस ताबीज को खोल कर इसमें रखे कागज़ को पढ़ना ,उससे पहले नहीं!
राजा ने वह ताबीज अपने गले मे पहन लिया !एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार करने घने जंगल मे गया!  एक शेर का पीछा करते करते राजा अपने सैनिकों से अलग हो गया और दुश्मन राजा की सीमा मे प्रवेश कर गया,घना जंगल और सांझ का समय ,  तभी कुछ दुश्मन सैनिकों के घोड़ों की टापों की आवाज राजा को आई और उसने भी अपने घोड़े को एड लगाई,  राजा आगे आगे दुश्मन सैनिक पीछे पीछे!   बहुत दूर तक भागने पर भी राजा उन सैनिकों से पीछा नहीं छुडा पाया !  भूख  प्यास से बेहाल राजा को तभी घने पेड़ों के बीच मे एक गुफा सी दिखी ,उसने तुरंत स्वयं और घोड़े को उस गुफा की आड़ मे छुपा लिया !  और सांस रोक कर बैठ गया , दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज धीरे धीरे पास आने लगी !  दुश्मनों से घिरे हुए अकेले राजा को अपना अंत नजर आने लगा ,उसे लगा की बस कुछ ही क्षणों में दुश्मन उसे पकड़ कर मौत के घाट उतार देंगे !  वो जिंदगी से निराश हो ही गया था , की उसका हाथ अपने ताबीज पर गया और उसे साधू की बात याद आ गई !उसने तुरंत ताबीज को खोल कर कागज को बाहर निकाला और पढ़ा !   उस पर्ची पर लिखा था — #यह_भी_कट_जाएगा “
राजा को अचानक  ही जैसे घोर अन्धकार मे एक  ज्योति की किरण दिखी , डूबते को जैसे कोई सहारा मिला !  उसे अचानक अपनी आत्मा मे एक अकथनीय शान्ति का अनुभव हुआ !  उसे लगा की सचमुच यह भयावह समय भी कट ही जाएगा ,फिर मे क्यों चिंतित होऊं !  अपने प्रभु और अपने पर विश्वासरख उसने स्वयं से कहा की हाँ ,यह भी कट जाएगा !
और हुआ भी यही ,दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज पास आते आते दूर जाने लगी ,कुछ समय बाद वहां शांति छा गई !  राजा रात मे गुफा से निकला और किसी तरह अपने राज्य मे वापस आ गया !
दोस्तों,यह सिर्फ किसी राजा की कहानी नहीं है यह हम सब की कहानी है !हम सभी परिस्थिति,काम ,तनाव के दवाव में इतने जकड जाते हैं की हमे कुछ सूझता नहीं है ,हमारा डर हम पर हावी होने लगता है ,कोई रास्ता ,समाधान दूर दूर तक नजर नहीं आता ,लगने लगता है की बस, अब सब ख़तम ,है ना?
जब ऐसा हो तो २ मिनट शांति से बैठिए ,थोड़ी गहरी गहरी साँसे लीजिये !  अपने आराध्य को याद कीजिये और स्वयं से जोर से कहिये –यह भी कट जाएगा !   आप देखिएगा एकदम से जादू सा महसूस होगा , और आप उस परिस्थिति से उबरने की शक्ति अपने अन्दर महसूस करेंगे
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लघु - कथा महान वैज्ञानिक " स्टीफन विलियम हॉकिंग "



#स्टीफन_विलियम_हॉकिंग 

(८ जनवरी १९४२ – १४ मार्च २०१८), एक विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी,ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान केन्द्र (Centre for Theoretical Cosmology) के शोध निर्देशक थे।

#प्रारंभिक_जीवन

स्टीफ़न हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी 1942 को फ्रेंक और इसाबेल हॉकिंग के घर में हुआ। परिवार वित्तीय बाधाओं के बावजूद, माता पिता दोनों की शिक्षा ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में हुई जहाँ फ्रेंक ने आयुर्विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की और इसाबेल ने दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया।वो दोनों द्वितीय विश्व युद्ध के आरम्भ होने के तुरन्त बाद एक चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में मिले जहाँ इसाबेल सचिव के रूप में कार्यरत थी और फ्रेंक चिकित्सा अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्यरत थे।हॉकिंग की दो छोटी बहन, फिलिप्पा और मैरी के अलावा एक दत्तक भाई एडवर्ड भी है।

#स्नातक_वर्ष

एक डॉक्टरेट छात्र के रूप में हॉकिंग का पहला वर्ष मुश्किल था। उन्हें शुरू में निराश किया गया था कि उन्हें आधुनिक खगोल विज्ञान के संस्थापकों में से एक डेनिस विलियम कैसामा नियुक्त किया गया था, जो कि विख्यात खगोलशास्त्री फ्रेड होल के पर्यवेक्षक के रूप में था, और उन्होंने गणित में उनके प्रशिक्षण में काम करने के लिए अपर्याप्त पाया सामान्य सापेक्षता और ब्रह्मांड विज्ञान। मोटर न्यूरॉन रोग के साथ निदान होने के बाद, हॉकिंग अवसाद में गिर गया - हालांकि उनके डॉक्टरों ने सलाह दी कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखता है, तो उन्होंने महसूस किया कि थोड़ी सी बात है। हालांकि, डॉक्टर की भविष्यवाणी की तुलना में उसकी बीमारी अधिक धीरे धीरे आगे बढ़ रही है। हालांकि हॉकिंग को असमर्थित रूप से घूमने में कठिनाई होती थी, और उनका भाषण लगभग अपुष्ट था, प्रारंभिक निदान यह था कि वह केवल दो साल तक जीने के लिए निराधार साबित हुआ। कैसामा के प्रोत्साहन के साथ, वह अपने काम पर लौट आए। जून 1 9 64 में व्याख्यान में हॉकिंग ने फ्रेड होल और उनके छात्र जयंत नारलीकर के काम को सार्वजनिक रूप से चुनौती दी, जब प्रतिभा और चमक के लिए प्रतिष्ठा विकसित करना शुरू किया।

जब हॉकिंग ने अपने स्नातक अध्ययन शुरू किया, तो भौतिकी समुदाय में ब्रह्मांड के निर्माण की प्रचलित सिद्धांतों के बारे में बहुत बहस हुई: बिग बैंग सिद्धांत और स्थिर राज्य सिद्धांत। ब्लैक होल्स के केंद्र में स्पेसटाइम विलक्षणता के रोजर पेनरोस के प्रमेय से प्रेरित होकर, हॉकिंग ने पूरे ब्रह्मांडको उसी सोच को लागू किया; और, 1965 के दौरान उन्होंने इस विषय पर अपनी थीसिस लिखी।1966 में हॉकिंग की थीसिस को मंजूरी दे दी गई। अन्य सकारात्मक घटनाक्रम भी थे: हन्किंग ने गोन्विले और कैयूस कॉलेज में एक रिसर्च फेलोशिप प्राप्त की; उन्होंने मार्च 1966 में सामान्य सापेक्षता और ब्रह्माण्ड विज्ञान में विशेषज्ञता वाले गणित और सैद्धांतिक भौतिकी में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की; और उनका निबंध शीर्षक "अकेले और स्पेस-टाइम की ज्यामिति" ने पेनोरोज़ द्वारा एक के साथ शीर्ष सम्मान के साथ उस वर्ष के प्रतिष्ठित एडम्स पुरस्कार जीत लिया।

#कार्य
स्टीफ़न हॉकिंग ने ब्लैक होल और बिग बैंग सिद्धांत को समझने में अहम योगदान दिया है। उनके पास 12 मानद डिग्रियाँ हैं और अमरीका का सबसे उच्च नागरिक सम्मान उन्हें दिया गया है।

“मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई। इसके रहस्य लोगों के खोले और इस पर किये गये शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है।”
#स्टीफ़न हॉकिंग


इच्छामृत्यु पर विचार

“लगभग सभी मांसपेशियों से मेरा नियंत्रण खो चुका है और अब मैं अपने गाल की मांसपेशी के जरिए, अपने चश्मे पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़कर ही बातचीत करता हूँ।”
#स्टीफ़न हॉकिंग

#मृत्यु

एक परिवार के प्रवक्ता के मुताबिक, 14 मार्च 2018 की सुबह सुबह अपने घर कैंब्रिज में हॉकिंग की मृत्यु हो गई थी। उनके परिवार ने उनके दुःख व्यक्त करने वाले एक बयान जारी किया था
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रविवार, 4 फ़रवरी 2018

अमीर न हुए तो क्या हुआ , दिल के अमीर तो हैं।

लघु कथा :- ✍गौरव सिंह गौतम (युवा पत्रकार)

यूपी / फतेहपुर  - ये पिक आप को थोड़ा अजीब लग रही होगी , की ये किन बच्चों और युवक की हैं।

पिक में जो ये दो बच्चे और युवक दिख रहे आइये उनसे आपका भी परिचय करवा ही देते हैं।
ये सज्जन व्यक्ति हैं राजू शिवहरे जी जो कस्बें असोथर में जरौली,कौहन रोड़ पर एक चाट समोसे की छोटी सी दुकान पिछले कई वर्षों से चला रहे हैं।
अगर देखा जाय तो कस्बे में सर्वाधिक लोकप्रिय चाट की दुकान हैं ,लोकप्रिय होने की विशेषता यह हैं कि राजू भाई व उनकी धर्मपत्नी जी का सज्जन मृदुभाषी स्वभाव व उनकी चाट समोसे खिलाने पर साफ सफ़ाई व स्वच्छता।
कस्बे का अधिकतर युवा वर्ग शाम होते ही राजू भाई की दुकान पर आपको चाट खाते हुए दिख जाएगां , मैं भी कभी कभार चला जाता हूँ ।
अभी पिछले कुछ दिनों पहले गया तो देखा कि लगभग पिछले छह माह से जो लड़का (उमेश) जिसकी उम्र लगभग 15 वर्ष होगी जो कि राजू भाई की दुकान में शाम को भाई का थोड़ा सा हाथ बटा देता था ।
उसके साथ एक और लगभग आठ दस साल का लड़का उसको भैया भैया कर रहा था ।
मैंने भी उत्सुकता वश पूंछ लिया की ये अपने साथ किसको ले आया ये कौन हैं जो तुझे  भैया भैया कर रहा हैं ।
उसने बताया कि मेरा छोटा भाई हैं , मुझे बहुत बुरा लगा कि अपना तो कार्य कर ही रहा हैं और साथ मे अपने छोटे भाई को यहीं पर ले आया , थोड़ी नाराजगी मैंने राजू भाई से भी जताई कि ये ठीक नहीं हैं भैया ये छोटा लड़का भी रहेगा क्या आपके पास इसको इसके गांव भेज दो इसके मां ,पिता के पास यहां पर क्या करेगा ।
उस बड़े लड़के उमेश को भी मैं डांटने फटकारने लगा कि अपना तो भविष्य बर्बाद ही किए हैं और अपने भाई का भी कर रहा हैं ।
मेरे डांटने पर बड़े लड़के की आंखे ड़बड़बा आयी तो मैंने पूंछा की अरे अरे क्या हो गया , रोने क्यो लगा बात क्या हैं बता तो सही ,
फिर जो उसने बताया उसकी बात सुनकर मेरी नजरों में राजू भाई कि इज्जत और बढ़ गई ।
उसकी कहानी सुनकर मेरा भी ह्रदय द्रवित हो गया ।
कुछ व्यक्तिगत कारणों की वजह से बच्चों के पिता का नाम मैं नही बताऊंगा पर इन बेबस बच्चों की मजबूरी जरूर बताऊंगा , ये बच्चे हैं किशनपुर थानाक्षेत्र के थुरयानीं गांव के रहने वाले हैं , इनका पिता आज से लगभग पांच या दस वर्ष पहले गांव के ही 24 से अधिक लूट , हत्या समेत आदि संगीन मामलों के हिस्ट्रीशीटर बदमाश कल्लू निषाद की हत्या के आरोप पर जेल में सजा काट रहा हैं ।
इन बेबस बेसहारा बच्चों के पिता का परिवार अत्यंत निर्धन वर्ग से संबंधित हैं ।
उमेश के छोटे भाई के जन्म के कुछ माह बाद ही इन बच्चों की मां टीबी की गंभीर बीमारी से ग्रसित होने व निर्धनता के कारण समुचित उपचार न करवा पाने पर इन बच्चों को भगवान भरोसे छोड़कर स्वर्ग सिधार गई।
पिता जेल में और मां की असमय मृत्यु से व निर्धनता के कारण बच्चों पर दुखो का पहाड़ टूट गया था।
कुछ दिनों तक परिवारिक जनों ने इन बच्चों को भोजन दिया ,पर कुछ दिन बाद ही पारिवारिक जनो को भी दो टाइम का भोजन देने पर ये बच्चे बोझ लगने लगें।
उमेश ने 10 वर्ष की उम्र में ही गांव में छोटे भाई को छोड़कर शहर फतेहपुर व खागा में होटलों आदि में छोटा मोटा कार्य कर अपना पेट पालता रहा , व छोटे भाई को भी बीच बीच में गांव देख आता था।
लगभग छह माह पहले वह असोथर कस्बें आ गया और राजू भाई के यहां छोटा मोटा कार्य कर राजू भाई के काम में उनका भी हांथ बंटा देता था ।
भाई के परिवार घर के साथ एकदम घुलमिल जाने पर उसने अपने छोटे भाई के बारे में भी राजू भाई से बताया कि भैया मेरे छोटे भाई को भी गांव से लिवा लाइए , गांव में उस छोटे भाई को भोजन मिलने जाने लाले थे ।
मानवता के नाते दिसंबर में कड़ाके की ठंड के समय राजू भाई उसके छोटे भाई को भी अपने घर ले आये हैं ।
उसको नए स्वेटर ,कपड़े दिलाने के साथ साथ उमेश को प्रतिमाह 1500 से 2000 रुपए देते हैं।
राजू भाई के लड़के तो नही हैं पर दो छोटी बच्चिया हैं 
वह उमेश व छोटू दोनों भाईयों को अपने घर के सदस्यों की तरह ही रख रहे हैं।
छोटे भाई का पास ही के विद्यालय में दाखिला भी करवा दिया हैं।
मुझे इन बेबस बेसहारा बच्चों की कहानी सुनकर बड़ा दुख हुआ , पर प्रशन्नता भी हुई कि चलिए राजू भाई जैसे लोग मानवता की मिशाल बनकर इन बच्चों का पेट तो पाल ही रहें हैं।
मैंने इन बेबस बच्चों की कहानी इसलिए लिख डाली की लोगो का नजरिया बदल सके ।

मेरे विचार से केवल दिखावे मात्र के लिए गांवो और जिलों को गोद लेने वाले नेताओं व शासन के उच्चाधिकारियों को भी इन जैसे बेसहारा गरीब बच्चों को भी गोद लेने के बारे सोचना चाहिए।


हमारे देश में न जाने कितने ऐसे उमेश और छोटू बेबस मजबूरी की वजह से होटलों और ढाबो में चाय पिलाते व बर्तन धोते हुए आपको दिख जाएंगे ।

और हां अंत मे विनम्र निवेदन हैं पोस्ट अच्छी लगी हो तो शेयर जरूर करें 🙏😊
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