रविवार, 4 फ़रवरी 2018

अमीर न हुए तो क्या हुआ , दिल के अमीर तो हैं।

लघु कथा :- ✍गौरव सिंह गौतम (युवा पत्रकार)

यूपी / फतेहपुर  - ये पिक आप को थोड़ा अजीब लग रही होगी , की ये किन बच्चों और युवक की हैं।

पिक में जो ये दो बच्चे और युवक दिख रहे आइये उनसे आपका भी परिचय करवा ही देते हैं।
ये सज्जन व्यक्ति हैं राजू शिवहरे जी जो कस्बें असोथर में जरौली,कौहन रोड़ पर एक चाट समोसे की छोटी सी दुकान पिछले कई वर्षों से चला रहे हैं।
अगर देखा जाय तो कस्बे में सर्वाधिक लोकप्रिय चाट की दुकान हैं ,लोकप्रिय होने की विशेषता यह हैं कि राजू भाई व उनकी धर्मपत्नी जी का सज्जन मृदुभाषी स्वभाव व उनकी चाट समोसे खिलाने पर साफ सफ़ाई व स्वच्छता।
कस्बे का अधिकतर युवा वर्ग शाम होते ही राजू भाई की दुकान पर आपको चाट खाते हुए दिख जाएगां , मैं भी कभी कभार चला जाता हूँ ।
अभी पिछले कुछ दिनों पहले गया तो देखा कि लगभग पिछले छह माह से जो लड़का (उमेश) जिसकी उम्र लगभग 15 वर्ष होगी जो कि राजू भाई की दुकान में शाम को भाई का थोड़ा सा हाथ बटा देता था ।
उसके साथ एक और लगभग आठ दस साल का लड़का उसको भैया भैया कर रहा था ।
मैंने भी उत्सुकता वश पूंछ लिया की ये अपने साथ किसको ले आया ये कौन हैं जो तुझे  भैया भैया कर रहा हैं ।
उसने बताया कि मेरा छोटा भाई हैं , मुझे बहुत बुरा लगा कि अपना तो कार्य कर ही रहा हैं और साथ मे अपने छोटे भाई को यहीं पर ले आया , थोड़ी नाराजगी मैंने राजू भाई से भी जताई कि ये ठीक नहीं हैं भैया ये छोटा लड़का भी रहेगा क्या आपके पास इसको इसके गांव भेज दो इसके मां ,पिता के पास यहां पर क्या करेगा ।
उस बड़े लड़के उमेश को भी मैं डांटने फटकारने लगा कि अपना तो भविष्य बर्बाद ही किए हैं और अपने भाई का भी कर रहा हैं ।
मेरे डांटने पर बड़े लड़के की आंखे ड़बड़बा आयी तो मैंने पूंछा की अरे अरे क्या हो गया , रोने क्यो लगा बात क्या हैं बता तो सही ,
फिर जो उसने बताया उसकी बात सुनकर मेरी नजरों में राजू भाई कि इज्जत और बढ़ गई ।
उसकी कहानी सुनकर मेरा भी ह्रदय द्रवित हो गया ।
कुछ व्यक्तिगत कारणों की वजह से बच्चों के पिता का नाम मैं नही बताऊंगा पर इन बेबस बच्चों की मजबूरी जरूर बताऊंगा , ये बच्चे हैं किशनपुर थानाक्षेत्र के थुरयानीं गांव के रहने वाले हैं , इनका पिता आज से लगभग पांच या दस वर्ष पहले गांव के ही 24 से अधिक लूट , हत्या समेत आदि संगीन मामलों के हिस्ट्रीशीटर बदमाश कल्लू निषाद की हत्या के आरोप पर जेल में सजा काट रहा हैं ।
इन बेबस बेसहारा बच्चों के पिता का परिवार अत्यंत निर्धन वर्ग से संबंधित हैं ।
उमेश के छोटे भाई के जन्म के कुछ माह बाद ही इन बच्चों की मां टीबी की गंभीर बीमारी से ग्रसित होने व निर्धनता के कारण समुचित उपचार न करवा पाने पर इन बच्चों को भगवान भरोसे छोड़कर स्वर्ग सिधार गई।
पिता जेल में और मां की असमय मृत्यु से व निर्धनता के कारण बच्चों पर दुखो का पहाड़ टूट गया था।
कुछ दिनों तक परिवारिक जनों ने इन बच्चों को भोजन दिया ,पर कुछ दिन बाद ही पारिवारिक जनो को भी दो टाइम का भोजन देने पर ये बच्चे बोझ लगने लगें।
उमेश ने 10 वर्ष की उम्र में ही गांव में छोटे भाई को छोड़कर शहर फतेहपुर व खागा में होटलों आदि में छोटा मोटा कार्य कर अपना पेट पालता रहा , व छोटे भाई को भी बीच बीच में गांव देख आता था।
लगभग छह माह पहले वह असोथर कस्बें आ गया और राजू भाई के यहां छोटा मोटा कार्य कर राजू भाई के काम में उनका भी हांथ बंटा देता था ।
भाई के परिवार घर के साथ एकदम घुलमिल जाने पर उसने अपने छोटे भाई के बारे में भी राजू भाई से बताया कि भैया मेरे छोटे भाई को भी गांव से लिवा लाइए , गांव में उस छोटे भाई को भोजन मिलने जाने लाले थे ।
मानवता के नाते दिसंबर में कड़ाके की ठंड के समय राजू भाई उसके छोटे भाई को भी अपने घर ले आये हैं ।
उसको नए स्वेटर ,कपड़े दिलाने के साथ साथ उमेश को प्रतिमाह 1500 से 2000 रुपए देते हैं।
राजू भाई के लड़के तो नही हैं पर दो छोटी बच्चिया हैं 
वह उमेश व छोटू दोनों भाईयों को अपने घर के सदस्यों की तरह ही रख रहे हैं।
छोटे भाई का पास ही के विद्यालय में दाखिला भी करवा दिया हैं।
मुझे इन बेबस बेसहारा बच्चों की कहानी सुनकर बड़ा दुख हुआ , पर प्रशन्नता भी हुई कि चलिए राजू भाई जैसे लोग मानवता की मिशाल बनकर इन बच्चों का पेट तो पाल ही रहें हैं।
मैंने इन बेबस बच्चों की कहानी इसलिए लिख डाली की लोगो का नजरिया बदल सके ।

मेरे विचार से केवल दिखावे मात्र के लिए गांवो और जिलों को गोद लेने वाले नेताओं व शासन के उच्चाधिकारियों को भी इन जैसे बेसहारा गरीब बच्चों को भी गोद लेने के बारे सोचना चाहिए।


हमारे देश में न जाने कितने ऐसे उमेश और छोटू बेबस मजबूरी की वजह से होटलों और ढाबो में चाय पिलाते व बर्तन धोते हुए आपको दिख जाएंगे ।

और हां अंत मे विनम्र निवेदन हैं पोस्ट अच्छी लगी हो तो शेयर जरूर करें 🙏😊
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