#हम_मिडिल_क्लास_आदमी..
गौरव सिंह गौतम ( प्रधान संपादक आत्म गौरव न्यूज़.कॉम )
हम मिडिल क्लास आदमी हैं।
जब हम गोवा नहीं जा पाते तो चुप मार के अपने गाँव या नजदीक ही किसी धार्मिक स्थल चले जाते हैं ।
एक उमर तक ना हम ढेर आस्तिक हैं ना कम नास्तिक। कुछ कुछ मौक़ापरस्त
पीड़ा में होते हैं तो भगवान को याद करते हैं।
जब सब कुछ तबाह हो जाए तो भगवान को दोष देते हैं और जब मनोकामना पूरी हो जाए तो भगवान को किनारे कर देते हैं।
हम मोदी ,योगी , अखिलेश आदि नेताओं को गरियाते हैं और एक्टरों शाहरुख , सलमान आदि को पूजते हैं।
हम अपने नेता विधायक , सांसद खुद चुनते हैं पर उनसे सवाल नहीं कर पाते ।
उनको ना कोस के ख़ुद को कोसते हैं।
अमिताभ और सचिन हमारे भगवान होते हैं।
हमको अटल बिहारी बाजपेयी के अलावा कोई और नेता लीडर लगता ही नहीं।
हम वो हैं जो कभी कभी फटे दूध की चाय बना लेते हैं। एक ईयर फ़ोन में दोस्त के साथ रेडियो पे नग़मे सुन लेते हैं।
गरमी हो या बारिश हमें विंडो सीट ही चाहिए होती है।
१५ ₹/किलो आलू जब हम मोलभाव करके १३ में और धनिया फ़्री मे लेके घर लौटते हैं तो सीना थोड़ा चौड़ा कर लेते हैं।
हम कभी कभी फ़ेरी वाले से हो किसी बड़े शॉपिंग मॉल में डिस्काउंट के चक्कर में समान अनायास ही ख़रीद लेते हैं।
हम पैसे उड़ाते तो हैं पर हिसाब दिमाग़ में रखते हुए चलते हैं।
हम दिया उधार जल्दी वापस नहीं माँग पाते ना ही लिया हुआ जल्दी चुका पाते हैं।
संकोच जैसे हिमोग्लोबिन में तैरता हो हमारे।
हम ताला मारते हैं तो उसे दो तीन बार खींच के चेक कर लेते है कि ठीक से तो बंद हुआ है ना?
बिजली की लाइट कटी हो तो बोर्ड की सारी स्विच ओन ओफ़ करके कन्फ़र्म करते हैं की कटी ही है।
हमें ख़ुद की बिजली कटी होने पे तकलीफ़ तब तक नहीं होती जब तक पड़ोसी के यहाँ भी ना आ रही हो ।
बेकरी वाला बिस्क़िट और हल्दीराम की नमकीन हम सिर्फ़ ख़ास मेहमानों के लिए रखते हैं।
ज़िंदगी में कभी हवाई यात्रा का मौक़ा मिला तो हम उसका टिकट(बोर्डिंग पास सहित) हाई स्कूल-इण्टर की मार्कशीट की तरह सहेज के रखते हैं।
हम स्लीपर ट्रेन में आठ की आठ सीटों पे बैठे यात्रियों की बात चाव से सुनते हैं और उनको अपनी तकलीफ़ और क़िस्से सुनाते हैं ।
भीड़ में कोई चेहरा पसंद भी आ जाए तो पलट के देखना अपनी तौहीन समझते हैं।
कोई लिफ़्ट माँग ले तो रास्ते भर ये सोचते रहते हैं कि यार बैठा ही लिया होता।
हम घर से दफ़्तर और दफ़्तर से घर बस यही हिसाब लगाते हुए आते हैं कि लिए गए ऋण की किश्त और घर के ख़र्चे के बाद कुछ सेविंग मुमकिन है क्या ?
अपने लिए नए जूते लेने के लिए हम दस बार सोचते हैं और दोस्तों के साथ पार्टी में उससे दुगने पैसे उड़ा देते हैं। हम इमोशनल होते हैं तो रो देते हैं पर आँसू नहीं गिराते। आँसू सिर्फ़ वहीं गिराते हैं जहाँ मालूम होता है कि सामने वाला आँसू चुन लेगा।
हम अपनी गलतीयों को याद नहीं करना चाहते।
वाहवाही को हम ज़िंदगी से ज़्यादा सिरियस लेते हैं।
हम किसी के व्यंग का जवाब उसे नज़रअन्दाज़ करके देते हैं।
हम झगड़ा तब तक नहीं करते जबतक सामने वाला इतना इम्पोर्टेंट ना हो।
हमें दूसरों के आगे चुप रहना पसंद है और अपनों के आगे तो हम उसे चुप करा करा के सुनाते हैं।
कोई सम्मन से बात भर कर ले हम उसे सिर चढ़ा लेते हैं और जो कोई फन्ने खाँ बना तो नज़र में .
मिडिल क्लास लोग हैं।
हम माता जी के हाथ का बना सुबह का खाना शाम को भी खा लेते हैं और कभी कभी तो अगली सुबह भी ।
प्रेम को हम सीरियासली लेते हैं।
हम जब प्रेम करते हैं और तो अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं उनपे और बना लेते एक मुकम्मल दुनिया। अपने अपने बजट से।
मिडिल क्लास आदमी अपनी छोटी छोटी ख़्वाहिशों को बड़े बड़े अरमान के साथ जी लेता है।
गाने की लिरिक्स ना याद हो तो आधा गा के पूरी धुन गुनगुना लेते हैं।
कभी कभी शैम्पू न मिलने पर साबुन से बाल भी धुल लेते हैं ।
छोटी छोटी ख़ुशियों को पनीर खा के सेलेब्रेट कर लेते हैं।
मिडिल क्लास आदमी उतना ही सच्चा होता है जितनी निरछल उसकी मुस्कान ।
देखिएगा कभी ।
और अंत में आप सब को मेरा प्रणाम 🙏
लेख में कुछ अनुचित लगा हो तो क्षमा करिएगा ...
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