गुरुवार, 1 नवंबर 2018

कौन हैं ये बुजुर्ग जो रेलवे स्टेशन पर दिखते है फिल्मी अंदाज में !


कौन हैं ये बुजुर्ग जो रेलवे स्टेशन पर दिखते है फिल्मी अंदाज में !

इस अजीब नज़ारे को देखकर हर कोई हैरत में पड़ जाता है जब बड़ी बड़ी मूंछो वाला एक 80 वर्षीय बुजुर्ग एक रेलवे स्टेशन पर कुर्सी डालकर बैठता है और साथ में होते हैं कई गनर और सैकड़ो लोगों का हुजूम .आइये जानते क्या है पूरा मामला .

दरसल ये बुजुर्ग और कोई नही कुंडा से निर्दलीय विधायक राजा भैया के पूज्नीय पिता जी भदरी नरेश श्री महाराजा उदय प्रताप सिंह जी है. जो की शुरू से ही एक कट्टर हिन्दू छवि वाले व्यक्ति रहे हैं और इस उम्र में भी वो सनातन धर्म के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई देते हैं…
दरसल महाराज उदय सिंह जी कुंडा रेलवे स्टेशन पर कई सालों से वो पुण्य कार्य कर रहे हैं जो कार्य सरकारें व बड़ी बड़ी सामाजिक संस्थाएं भी नही कर सकती . 
महाराजा उदयप्रताप जी कई वर्षों से प्रतिदिन कुंडा स्टेशन पर रेलवे यात्रियों को मुफ्त में { पानी – लस्सी – छाछ – नाश्ता- खाना} आदि का भंडारा करते हैं..

जिसे देखकर सभी लोग हैरत में पड़ जाते हैं कि कैसे कोई इंसान इतना बड़ा दान कर सकता है वो भी लगातार बर्षो तक सब जानते है कि अब राजतन्त्र नही रहा जनतन्त्र आने पर राजाओ की लगभग सारी सम्पत्ति सरकार ने लेली थी .
फिर भी आज वही राजाओ वाला रुतबा और त्याग आज के समय मे रखना बहुत ही बड़ी बात है .
इस पर महाराज उदय प्रताप सिंह जी का बस इतना ही कहना होता है कि मानव सेवा ही सनातन धर्म है . 
मैं वही कर रहा हूँ

शायद इसी त्याग और भाव के लिए लोग बड़े महाराज को पूजते हैं.
और इसलिये समाज उन्हें और राजा भैया को गरीबों का मसीहा कहता हैं.. 
क्योंकि यही छवि आज राजा भैया में भी दिखती है .
और राजा भैया द्वारा किये गए 800 से ज्यादा गरीव कन्यायों के विवाह- निकाह इस बात का जीता जागता उदाहरण है….
हमे गर्व है कि भारत मे अभी भी ऐसे महान लोग हैं जो सनातनी परम्परा को जीवित बनाये हुए हैं.

आत्म गौरव न्यूज़ .com की ओर से महराज जी को बहुत बहुत साधुवाद 🙏

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शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

यूपी - योगीराज में बेपटरी कानून व्यवस्था दिनदहाड़े लगातार दो हत्याओं से सहमा फतेहपुर

यूपी - योगीराज में बेपटरी कानून व्यवस्था दिनदहाड़े लगातार दो हत्याओं से सहमा फतेहपुर

फतेहपुर - जनपद मुख्यालय के कोतवाली शहर क्षेत्र में लगातार दिनदहाड़े हुई दो लोगों की हत्या के बाद लोगों में दहशत व्याप्त है। पुलिस अभी एक मामले को पूरी तरह सुलझा भी नहीं पाई थी कि हत्यारों ने दूसरी वारदात को अंजाम देकर फतेहपुर पुलिस की नींद उड़ा दी है।

हालांकि दोनों मामले की प्राथमिकी दर्ज कर पुलिस छानबीन में जुट गयी है।
2 दिन पूर्व में आईटीआई रोड पर दिन दहाड़े दौड़ाकर बुजुर्ग की की गई थी हत्या इसी तर्ज में आज शनिवार सुबह 5:00 बजे मॉर्निंग वॉक के लिए निकल रहे बुजुर्ग को अज्ञात दो बाइक सवार हमलावरों ने गोली मारकर बेरहमी से हत्या कर दी 
शनिवार की सुबह शहर कोतवाली क्षेत्र के आबू नगर मोहल्ले के रहने वाले पुत्तन यादव चाय की दुकान से वापस घर जाते समय अज्ञात बाइक सवार बदमाशों ने आज सुबह गोली मार कर निर्मम हत्या कर दी आक्रोशित परिजनों व लोगों ने शव को सड़क में रख जाम लगा दिया था , हालांकि प्रशासन के आने के बाद स्थिति सामान्य हुई ,
दो दिन के अंदर दो हत्याओं ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

कोई प्रशासन को कोस रहा है तो कोई योगी सरकार को दोषी ठहरा रहा है।

अभी पूर्व में शहर के आईटीआई रोड़ में दिनदहाड़े हुई बुजुर्ग की हत्या के 72 घंटे भी नहीं बीते थे , कि हत्यारों ने दूसरी घटना को अंजाम दे दिया।

फतेहपुर में 72 घंटो के अंदर ही गोवर्धन मिश्रा व पुत्तन यादव की हत्या से लोगों में दहशत है। हालांकि फतेहपुर पुलिस मामले के शीघ्र उद्भेदन का दावा कर रही है, लेकिन पुलिस से लोगों का भरोसा अब उठने लगा है।
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सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

बुंदेलखंड का रॉबिनहुड या डकैत ...


                  बुंदेलखंड का रॉबिनहुड या डकैत

✍ गौरव सिंह मुख्य सम्पादक

बुंदेलखंड ( चित्रकूट ) - उत्तर प्रदेश के जनपद चित्रकूट में रैपुरा क्षेत्र के देवकली गांव में राम प्यारे पटेल का बड़ा बेटा शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ ने 32 साल तक बागी जीवन व्यतीत किया। ददुआ के बारे में यह एक बात और रोचक है कि वह 32 साल के डकैत करियर के दौरान कभी पुलिस के हाथ नहीं लगा। वह पहला डकैत था जो 32 साल तक आतंक करता रहा, लेकिन पुलिस उस तक नहीं पहुंच पाई थी। 

बताया जाता है कि पिता की मौत का बदला लेने के लिए ही ददुआ ने हथियार उठाया था और आठ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।

राजनीतिक गलियारों में बुन्देलखण्ड की पूरी डोर चाहे वो विधानसभा हो या लोकसभा , नगर पंचायत हो या नगर पालिका ,जिला पंचायत अध्यक्ष हो या ग्राम प्रधान हो सभी का निर्णय ददुआ की अनुमति के बगैर नहीं होता था। एक पक्ष जो आतंक के इस पर्याय को औरों से अलग करता है, वो ये की पूरे क्षेत्र में एक बात लगभग हर मुह से कही जाती है कि 'ददुआ कभी गरीबों पर जुल्म नहीं करता था, बल्कि उनकी ज्यादा से ज्यादा मदद ही करता था, जिसके कारण उसे 'भारत के रॉबिनहुड' की भी संज्ञा दी जाती थी।

1992 में इलाहाबाद, बांदा और फतेहपुर के संयुक्त पुलिस अभियान में दस्यु सरगना फतेहपुर में धाता क्षेत्र के घटईपुर और नरसिंहपुर कबरहा गांव के बीच गन्ने के खेतों में फंस गया था। उस समय ददुआ के साथ करीब 72 डकैत साथी मौजूद थे। इस घेराबंदी में पुलिस के 500 जवान नियुक्त थे। ददुआ के विधायक पुत्र वीर सिंह ने बताया कि अपने को पूरी तरह से घिरा पाकर ददुआ ने संकल्प लिया था कि यदि मैं बच जाता हूं तो पंचमुखी हनुमान मन्दिर की स्थापना करूंगा और ददुआ बाल-बाल बच गया। इसके बाद 1996 में ददुआ ने उसी स्थान पर मन्दिर की स्थापना की थी। 2004 में पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति बिठाकर प्राण प्रतिष्ठा की थी।

धाता फतेहपुर में बना दस्यु सम्राट ददुआ का मंदिर

दस्यु सरगना के बढते आतंक से परेशान उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसको जिंदा अथवा मुर्दा पकडने के एवज में सात लाख रुपये का ईनाम घोषित किया था। घोषणा के समय केवल स्केच द्वारा बनाया गया काल्पनिक चित्र ही पत्रकारों को दिया गया था। इसके बाद फरवरी 2007 में चित्रकूट स्थित घनघोर जगमल के जंगल में एसटीएफ की मुठभेड में दस्यु ददुआ दस डकैतों के साथ मारा गया। दस्यु ददुआ के मारे जाने के 24 घंटे के अंदर उसके शिष्य डकैत अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया ने उन छह एसटीएफ जवानों को घात लगाकर मार दिया जो ददुआ को मारे जाने वाले पुलिस दल में शामिल थे।

आस -पास के गांवों में जहा एक वर्ग उसे मसीहा मानता है वही एक वर्ग उसे डकैत की संज्ञा देता है इसलिए ये निष्कर्ष निकाल पाना बेहद मुश्किल है कि वास्तव में उसे रॉबिनहुड कहा जाना चाहिए या फिर एक डकैत....

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रविवार, 21 अक्तूबर 2018

यूपी: असोथर थानाध्यक्ष ने किया ऐसा काम, तहरीर देने आए गरीब माँ - बेटी ने किया सलाम



यूपी: असोथर थानाध्यक्ष ने किया ऐसा काम, तहरीर देने आए गरीब माँ - बेटी ने किया सलाम


फतेहपुर - उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के असोथर थानाध्यक्ष नेे एक ऐसी मिसाल पेश की जिसकी वजह से फरियाद करने आये फरियादियों के चहेरे पर खुशी आ गई और थानाध्यक्ष अपनी दरियादिली के कारण प्रशंसा का पात्र बन गये हैं। 

जनपद फतेहपुर के असोथर थाना क्षेत्र के गांव पुरबुज़ुर्ग निवासी गेंदालाल एक गरीब रिक्शा चालक है। 
वो रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। उसका पड़ोसी के साथ किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई।

थानाध्यक्ष ने पेश की मानवता की मिसाल

पड़ोसियों ने गेंदालाल के घर में घुसकर मारपीट की जिसकी शिकायत करने गेंदालाल की पत्नी उमा देवी अपनी दो पुत्री व एक पुत्र को लेकर असोथर थाने पहुंची थी। 
वहां पर असोथर थाना प्रभारी कमलेश कुमार पाल ने पहले तो पीड़ित की समस्या सुनी और उसका समाधान करने के बाद एक अनोखी मिसाल पेश की। 
उमा देवी की की नाबालिग बच्चियों  व बच्चे के नंगे पैर, फटे हुए कपड़े देखकर असोथर थाना प्रभारी कमलेश कुमार पाल ने अपनी ओर से बच्चे व दोनों बच्चियों के लिए कपड़े, दुपट्टा व पैरों मै पहनने के लिए चप्पल भेंट की। 
वहीं थाना प्रभारी की दरियादिली को देखकर माँ व बच्चें पुलिस की तारीफ करते हुए अपने घर लौट गए।
   

' हम पुलिस के बारे में बुरा ही सुनते थे '

पीड़ित उमा देवी ने बताया कि हमारी कुछ शिकायत थी वही करने के लिए हम थाने आये थे। दरोगा साहब ने पहले तो हमारी शिकायत सुनी उसके बाद हमारी गरीबी देखते हुए मेरे बच्चों को चप्पल, चुन्नी व बढियावाला सूट  दिलवाया । 
हम पुलिस के बारे में बुरा सुनते थे लेकिन पुलिस बहुत बढ़िया हैऔर हम बहुत खुश है।

   

थानाध्यक्ष ने इस बारे में कहा

असोथर थानाध्यक्ष कमलेश कुमार पाल ने कहा कि ये माँ पुत्री पुरबुजुर्ग गांव के है। 
पिता रिक्शा चलाता है ,बहुत गरीब लोग है। बिनाकपड़ों व  चप्पलो के बच्चे इसके साथ आई थें इनमें एक बच्ची थोड़ी बड़ी भी हैं जो करीब 10 साल की है। 
ऐसी स्थिति में मुझे लगा कि सवेदनशीलता बरतनी चाहिए।  सबसे पहले तो शिकायत का समाधान कर रहा हूँ। 
उसके लिए एक दरोगा को जांच करने भेज दिया है।
साथ ही साथ उसकी गरीबी को देखते हुए अपने निजी खर्चे से बच्चियों के लिए मैंने चप्पल सूट व दुप्पटा भी लाकर दिया है। 
यह मेरी व्यक्तिगत भावनायें हैं।

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सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

आज विशेष जन्मतिथि Dr. Abdul Kalam


आज विशेष जन्मतिथि 


अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल #कलाम अथवा 
ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम  (15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015) जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे।वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति,
जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे।
इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा।

इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई।

कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए।पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये।

प्रारंभिक जीवन


15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ।इनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे।इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पाँच भाई एवं पाँच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे।अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियो को भलीभाँति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।

अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था।कलाम ने 1950में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यानएसएलवी 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था।

पुरस्कार एवं सम्मान


कलाम के 79 वें जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया गया था। इसके आलावा उन्हें लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान की गयी थीं भारत सरकार द्वारा उन्हें 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण का सम्मान प्रदान किया गया जो उनके द्वारा इसरो और डी आर डी ओ में कार्यों के दौरान वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिये तथा भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य हेतु प्रदान किया गया था।

1997 में कलाम साहब को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया जो उनके वैज्ञानिक अनुसंधानों और भारत में तकनीकी के विकास में अभूतपूर्व योगदान हेतु दिया गया था।

वर्ष 2005 में स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने कलाम के स्विट्ज़रलैंड आगमन के उपलक्ष्य में 26 मई को विज्ञान दिवस घोषित किया।नेशनल स्पेस सोशायटी ने वर्ष 2013 में उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान सम्बंधित परियोजनाओं के कुशल संचलन और प्रबंधन के लिये वॉन ब्राउन अवार्ड से पुरस्कृत किया।

निधन


27 जुलाई 2015 की शाम अब्दुल कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंगमें 'रहने योग्य ग्रह' पर एक व्याख्यान दे रहे थे जब उन्हें जोरदार कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) हुआ और ये बेहोश हो कर गिर पड़े।लगभग 6:30 बजे गंभीर हालत में इन्हें बेथानी अस्पताल में आईसीयू में ले जाया गया और दो घंटे के बाद इनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी गई।अस्पताल के सीईओ जॉन साइलो ने बताया कि जब कलाम को अस्पताल लाया गया तब उनकी नब्ज और ब्लड प्रेशर साथ छोड़ चुके थे। अपने निधन से लगभग 9 घण्टे पहले ही उन्होंने ट्वीट करके बताया था कि वह शिलोंग आईआईएम में लेक्चर के लिए जा रहे हैं।

कलाम अक्टूबर 2015 में 84 साल के होने वाले थे।मेघालय के राज्यपाल वी॰ षडमुखनाथन; अब्दुल कलाम के हॉस्पिटल में प्रवेश की खबर सुनते ही सीधे अस्पताल में पहुँच गए। बाद में षडमुखनाथन ने बताया कि कलाम को बचाने की चिकित्सा दल की कोशिशों के बाद भी शाम 7:45 पर उनका निधन हो गया।

सादर नमन🙏🙏

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रविवार, 14 अक्तूबर 2018

फतेहपुर - शांतिपूर्ण त्योहार निपटाने को लेकर पुलिस सतर्क


फतेहपुर - शांतिपूर्ण त्योहार निपटाने को लेकर पुलिस सतर्क

फतेहपुर - नवरात्रि और विजयादशमी को लेकर पुलिस चौकस और चुस्त दुरूस्त दिख रही है।

उच्चाधिकारियों के निर्देश पर सभी एसएचओ, एसओ अपने-अपने क्षेत्रों में रात्रि के समय गश्त कर रहे है जिससे आमजन में सुरक्षा का माहौल व्याप्त है वहीं अपराधियों के साथ ही अराजकत्त्वों में खासा हड़कंप मचा हुआ है।

आज शाम पुलिस अधीक्षक राहुल राज के निर्देश पर सभी थाना प्रभारियों ने पैदल गश्त किया।

थरियांव थानाध्यक्ष श्रवण कुमार सिंह के निर्देशन में उपनिरीक्षक अश्विनी सिंह ने कस्बा बाजार , थरियांव गांव , दुर्गा पूजा पंडालों सहित दर्जन भर जगहों पर पुलिस दल बल के साथ गश्त किया और लोगों से आवाहन किया कि वह शांति बनाये रखने में पुलिस को सहयोग करें।

पुलिस अधीक्षक राहुल राज ने भी स्पस्ट आदेश दिए है कि कानून व्यवस्था में जरा भी लापरवाही करने वालों को बख्शा नहीं जाएगी।

वहीं दूसरी ओर असोथर थाना प्रभारी कमलेश कुमार पाल ने भी अपने क्षेत्र में दुर्गा पूजा पंडालों व कस्बें में गश्त कर गतिविधियों की जानकारी ली और पैदल गश्त कर लेागों से पूछताछ की।

इसी तरह अन्य कोतवाली और थाना प्रभारियों ने उच्चाधिकारियों के निर्देश पर अपने-अपने क्षेत्रों में गश्त किया और लोगों को सुरक्षा और शांतिपूर्ण माहौल का संदेश दिया।
फतेहपुर पुलिस की चौकसी से लोगों में सुरक्षा का माहौल व्याप्त है ।
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बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

नवरात्रि विशेष

 नवरात्रि विशेष
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥ 

नवरात्रि के पावन पर्व के मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। 

#मां #दुर्गा को #सर्वप्रथम #शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। 

इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है। 

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। 

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। 
बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। 

वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। 

पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

जय माता दी🙏
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