मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

मिसाल : आज भी मंदिर के सामने चाय-बिस्कुट बेचती हैं सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री की बहन…


मिसाल : आज भी मंदिर के सामने चाय-बिस्कुट बेचती हैं सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री की बहन…


मोहमाया छोडकर वैरागी बनना क्या होता है, यह कोई योगी आदित्यनाथ और उनके परिवार से पूछे। गोरक्षनाथ पीठ जैसे प्रख्यात मंदिर के महंत और पांच बार सांसद और अब मुख्यमंत्री होने के बाद भी उनका परिवार उसी हाल में है, जैसे कि पहले था। जब योगी महंत भी नहीं थे। योगी आदित्यनाथ सन्यासी बनने के लिए एक बार घर से बाहर निकले तो फिर वापस मुड़कर नहीं देखे।



आज जहां एक बार सांसद-विधायक होते ही लोग अपने परिवार क्या रिश्तेदारों को भी मालामाल कर देते हैं, वहीं योगी आदित्यनाथ त्याग और इमानदारी की मिसाल पेश करते हैं| वह ऐसे तथाकथित राजनीतिज्ञों को आइना भी दिखाते है।मुश्किलों में दिन कट रहें है बहन केतीन बहनों में से सबसे छोटी बहन शशि ऋषिकेश से लगभग 30 किलोमीटर ऊपर जंगलों में झोपड़ीनुमा दुकान पर रोजगार कर रही हैं। वह नीलकंठ मंदिर से ऊपर पार्वती मंदिर के पास प्रसाद, फूल माला और बिस्कुट बेचकर अपने परिवार का पेट पाल रही हैं। वैसे तो योगी आदित्यनाथ की दो बहनें ठीक-ठाक परिवार में हैं, सिर्फ शशि को ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बहन का कहना है कि “आज से 27 साल पहले जब योगी आदित्यनाथ उत्तराखंड के पंचूर गांव में रहते थे तो पूरा परिवार हर त्यौहार को एक साथ मिलकर मनाता था।“



योगी कहते थे-कमाऊंगा तो गिफ्ट दूंगा

योगी की बहन शशि का कहना है कि बचपन में रक्षाबंधन के त्यौहार के दिन वह अपने चारों भाइयों को सामने बैठाकर राखी बांधती थीं और उपहार के नाम पर योगी आदित्यनाथ उर्फ़ अजय बिष्ट उनसे यही कहा करते थे कि अभी तो फिलहाल में कुछ नहीं कमा रहा हूं, लेकिन जब बड़ा हो जाऊंगा तो तुम्हें खूब सारे उपहार दूंगा। वहीं, अजय बिष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ बचपन में राखी के त्यौहार पर अपने पिता से पैसे लेकर अपनी तीनों बहनों को दिया करते थे। शशि बताती हैं कि पैसे देने के बाद योगी आदित्यनाथ पिता के चले जाने के बाद उनसे वही पैसे दोबारा मांगा करते थे।





आज के योगी आदित्यनाथ की 27 साल पहले अजय बिष्ट के तौर पर पहचान थी। यही वह समय था, जब वह घर छोड़कर गोरखपुर पहुंचे थे। बहन का कहना है कि इसके बाद से वह कभी योगी से नहीं मिलीं। तभी से भाई की कलाई पर राखी न बांध पाने का हर बार मलाल रहता है।

Input : Live Bavaal
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Google की नौकरी छोड़ शुरू किया समोसे बेचना, आज है 50 लाख से ज्यादा का मालिक


Google की नौकरी छोड़ शुरू किया समोसे बेचना, आज है 50 लाख से ज्यादा का मालिक

अगर कोई गूगल की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ समोसे बेचना शुरू करे तो लोग उसे बेवकूफ ही कहेंगे, लेकिन जब आपकी सालाना कमाई 50 लाख रुपये के पार पहुंच जाए तो शायद लोगों को अपनी राय बदलनी पड़ेगी. जानें इस शख्स की कहानी.



अगर कोई गूगल की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ समोसे बेचना शुरू करे तो लोग उसे बेवकूफ ही कहेंगे, लेकिन जब आपकी सालाना कमाई 50 लाख रुपए के पार पहुंच जाए तो शायद लोगों को अपनी राय बदलनी पड़ेगी. यह कामयाबी मुनाफ कपाड़िया ने हासिल की है. आइए जानते हैं कौन हैं ये मुनाफ और कैसे हासिल किया ये मुकाम…



एक झटके में छोड़ दी नौकरी: मुनाफ कपाड़िया की फेसबुक प्रोफाइल में लिखा है कि मैं वो व्यक्ति हूं जिसने समोसा बेचने के लिए गूगल की नौकरी छोड़ दी. लेकिन उनके समोसे की खासियत यह है कि वह मुंबई के पांच सितारा होटलों और बॉलिवुड में खासा लोकप्रिय है. मुनाफ ने एमबीए की पढ़ाई की थी और उसके बाद उन्होंने कुछ कंपनियों में नौकरी की और फिर चले गए विदेश. विदेश में ही कुछ कंपनियों में इंटरव्‍यू देने के बाद मुनाफ को गूगल में नौकरी मिल गई. कुछ सालों तक गूगल में नौकरी करने के बाद मुनाफ को लगा कि वह इससे बेहतर काम कर सकते हैं. बस फिर क्‍या था, लौट आए घर.



इस आइडिया के बाद शुरू की कंपनी: मुनाफ भारत में द बोहरी किचन नाम का रेस्‍टोरेंट चलाते हैं. मुनाफ बताते हैं कि उनकी मां नफीसा टीवी देखने की काफी शौकीन हैं और टीवी के सामने काफी वक्त बिताया करती थीं. उन्हें फूड शो देखना काफी पसंद था और इसलिए वह खाना भी बहुत अच्छा बनाती थीं. मुनाफ को लगा कि वह अपनी मां से टिप्स लेकर फूड चेन खोलेंगे. उन्होंने रेस्टोरेंट खोलने का प्लान बनाया और अपनी मां के हाथों का बना खाना कई लोगों को खिलाया. सबने उनके खाने की तारीफ की. इससे मुनाफ को बल मिला और वह इस सपने को पूरा करने में लग गए.



देशभर में हो गए मशहूर: मुनाफ का द बोहरी किचन न सिर्फ मुंबई बल्कि देशभर में मशहूर है. उनके रेस्तरां का सबसे बेहतरीन, लजीज और मशहूर फूड आइटम मटन समोसा माना जाता है. मगर द बोहरी किचन सिर्फ मटन समोसा के लिए ही मशहूर नहीं है, नरगि‍सी कबाब, डब्‍बा गोश्‍त, करी चावल समेत ऐसी कई डिशेज हैं जिनके लिए भी ‘द बोहरी किचन’ मशहूर है. कीमा समोसा के अलावा मटन रान भी रेस्तरां का एक मशहूर और लजीज खाना है.





हर महीने करते हैं लाखों रुपए की कमाई: बीते दो साल में ही रेस्तरां का टर्नओवर 50 लाख रुपये तक पहुंच गया है. ‘द बोहरी किचन’ को अपने लजीज खाने के लिए कई सेलेब्स द्वारा भी तारीफ मिल चुकी है. आशुतोष गोवारिकर और फराह खान जैसी मशहूर हस्तियां भी “द बोहरी किचन” के लजीज खाने का लुत्फ उठा चुके हैं और सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ भी कर चुके हैं.

Input : News18
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बुधवार, 11 अप्रैल 2018

इस डिजिटल इंडिया में एक पत्रकार ऐसा भी .... पढ़े पूरी खबर



अनुज वर्मा जी की कलम ✍ से 


[ इस न्यूज़ आर्टिकल के लेखक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद में हिंदुस्तान समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार हैं ]

इस डिजिटल इंडिया में एक पत्रकार ऐसा भी...

उत्तर प्रदेश / मुजफ्फरनगर - मुज़फ्फर नगर में एक पत्रकार ऐसा भी है 
जिसके पास न अपनी छपाई मशीन है, 

न कोई स्टाफ और न सूचना क्रांति के प्रमुख साधन-संसाधन। 
मात्र कोरी आर्ट शीट और काले स्केज ही उसके पत्रकारिता के साधन हैं। 
तमाम शहर की दूरी अपनी साईकिल से तय करने वाले और एक-एक हफ्ता बगैर धुले कपड़ों में निकालने वाले इस पत्रकार का नाम है दिनेश। 
जो गाँधी कालोनी का रहने वाला है। 
हर रोज अपनी रोजी रोटी चलाने के अलावा दिनेश पिछले सत्रह वर्षों से अपने हस्तलिखित अख़बार 
"विद्या दर्शन" को चला रहा है। 
प्रतिदिन अपने अख़बार को लिखने में दिनेश को ढाई-तीन घंटे लग जाते हैं। 
लिखने के बाद दिनेश अखबार की कई फोटोकॉपी कराकर शहर के प्रमुख स्थानों पर स्वयं चिपकाता है। 

हर दिन दिनेश अपने अख़बार में किसी न किसी प्रमुख घटना अथवा मुद्दे को उठाता है 
और उस पर अपनी गहन चिंतनपरक निर्भीक राय रखते हुए खबर लिखता है।

पूरा अख़बार उसकी सुन्दर लिखावट से तो सजा ही होता है 
साथ ही उसमें समाज की प्रमुख समस्याओं और उनके निवारण पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है।
सुबह से शाम तक आजीविका के लिये हार्डवर्क करने वाले दिनेश को अख़बार चलाने के लिये किसी भी प्रकार की सरकारी अथवा गैर सरकारी वित्त सहायता प्राप्त नहीं नहीं है। 
गली-गली आइसक्रीम बेचने के जैसे काम करके दिनेश अपना जीवन और अख़बार चलाता है। 
अपने गैर विज्ञापनी अख़बार से दिनेश किसी भी प्रकार की आर्थिक कमाई नहीं कर पाता है। 

फिर भी अपने हौसले और जूनून से दिनेश निरंतर सामाजिक परिवर्तन के लिये अख़बार चला रहा है। 
श्रम साध्य इस काम को करते हुए दिनेश मानता है 
कि भले ही उसके पास आज के 
हिसाब से साधन-संसाधन नहीं हैं और न ही उसके अख़बार का पर्याप्त प्रचार-प्रसार है फिर भी 
यदि कोई एक भी उसके अख़बार को ध्यान से पढता है अथवा किसी एक के भी विचार-परिवर्तन में उसका अख़बार रचनात्मक योगदान देता है 

तो उसका अख़बार लिखना सार्थक है।
बगैर किसी स्वार्थ, 
बगैर किसी सशक्त रोजगार और बगैर किसी सहायता के खस्ताहाल दिनेश अपनी तुलना इस देश के आम नागरिक से करता है। 

बात सही भी है। 
भले ही उसका अख़बार बड़े पाठकवर्ग अथवा समाज का प्रतिनिधित्व न करता हो परंतु वह खुद तो इस देश में गरीबों और मज़लूमों की एक बड़ी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है। 

इस देश में पत्रकारिता का जो इतिहास रहा है वह देश की आज़ादी से सम्बद्ध रहा है। 

आज़ादी के बाद पत्रकारिता जनता के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने लगी। 

परंतु आज हम सब जानते हैं कि आज पत्रकारिता किसका प्रतिनिधित्व कर रही है। 

ऐसे में दिनेश अपने दिनोदिन क्षीण होते वज़ूद के बावजूद पत्रकारिता के बदल चुके मूल्यों पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। 

इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है जिसमें दिनेश या दिनेश जैसे लोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। 

हमारे बदलते मानवीय मूल्यों पर सवाल खड़ा करता है 
कि क्या हम एक ऐसे ही समाज का निर्माण करने में व्यस्त हैं जिसमें सब आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। 
किसी को किसी के दुःख अथवा समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। 

ऐसे बहुत से सवाल खड़ा करता दिनेश और उसका अखबार इस दौर की बड़ी त्रासदी की ओर इशारा करता है जिसे समझने की आज बेहद जरुरत है।

अगर यह खबर आपको अच्छी लगी हो तो कृपया व्हाट्सएप , फेसबुक , ट्विटर पर शेयर करें ...🙏

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गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

वीडियो: बजरंग बली को हटाने आई सभी मशीने अचानक हुई बंद


        गौरव सिंह गौतम (मुख्य संपादक)

उत्तर प्रदेश में एक ऐसे अनोखे मंदिर का मामला सामने आया है, जिसने हर किसी को होश उड़ा कर रख दिए हैं. बता दें कि 130 साल पुराने मंदिर मे ऐसा अनोखा चमत्कार देखने को मिल रहा है. जिसका ये वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से देखा और लगातर शेयर किया जा है. यहां बजरंग बली के चमत्कार के चलते उनकी मूर्ति उठाने मे हजारो कुंतल बजन उठाने वाली जेसीबी मशीनों के साथ एरा विभाग के कर्मचारियों के दांत खट्टे हो गए. बजरंग बाली की इस मूर्ती उठाने के दौरान तीन दिन मे तीन जेसीबी मशीनों सहित कई और मशीने खराब हो गई.

मंदिर हटाना चाहती है एरा कंपनी:

मामला थाना तिलहर के नेशनल हाइवे 24 के कचियानी खेड़ा मंदिर का है। जहां पर 130 साल पहले बरम देव और बजरंग बली की प्रतिमा की स्थापना की गई थी । लेकिन रोड चौड़ीकरण के चलते एरा कंपनी को हटाना चाहती है। लेकिन यहाँ बजरंग बली की विशालकाय प्रतिमा हटाना निर्माणाधीन कंपनी को बडा महंगा साबित हो रहा है।  2 दिन से 3 क्रेन प्रतिमा को हटाने के लिए लगी ,पर हिला भी नही सकी बजरंग बली की प्रतिमा और मशीने खराब हो गई ।जिसके बाद आज प्रतिमा को तोड़ने के लिए जरनेटर और बैब्रेट मशीन को लगाया गया। लेकिन जरनेटर और मशीन भी खराब हो गई।

ग्रामीणों ने एरा कंपनी को चेताया:

ग्रामीणों ने बजरंगबली की प्रतिमा को हटाने के बजाय डिवाइडर के बीच में ही रहने की माँग को जोर दिया है।और यदि प्रतिमा को हटाया तो  जबरदस्त विरोध भी करने की चेतावनी भी दी है। वही मंदिर की प्रतिमा भारी मशीनों से भी हटाने मे नाकाम होने पर मंदिर मे और भी आस्था बढ़ गई है और अब लोग प्राचीन मंदिर को एक सच्चा मंदिर मान रहे है।

जिसके चलते आज हिन्दू युवा वाहिनी सहित दर्जनों ग्रामीणों के एरा के जीएम का पुतला फूंका और मंदिर को यथा स्थिति रखने की मांग की कहा अगर फिर भी मंदिर को तोड़ा गया तो बड़ा आंदोलन होगा, फिलहाल तनाव बना हुआ है.

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सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

फतेहपुर में ऊबड़-खाबड़ भूमि को ‘अन्नपूर्णा’ बनाता ‘जेसीबी मैन’

✍गोविंद दुबे वरिष्ठ पत्रकार (दैनिक जागरण)
 ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी के हौसले की कहानी से सभी वाकिफ हैं, जिन्होंने अकेले पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता तैयार किया। अब एक और शख्स से मिलिए, जिसे लोग ‘जेसीबी मैन’ कहते हैं। यह हैं फतेहपुर के अमौली ब्लॉक में भरसा के मजरे केवटरा गांव के 75 वर्षीय भावन निषाद। नोन नदी किनारे बसे इस गांव में भावन ने 25 वर्षों में 50 बीघा ऊबड़-खाबड़ जमीन समतल कर उसे ‘अन्नपूर्णा’ बना दिया। आज भी बूढ़ी काया में फौलादी इरादे समेटे भावन नदी किनारे और भी जमीनों को खेती के योग्य बनाने में जुटे हैं, गीता के इस उपदेश को आत्मसात करते हुए कि ‘सुखी रहना है तो निष्काम भाव से कर्म करो।’
भावन के तैयार किए खेतों में अब गेहूं, चना व सरसों की फसल लहलहा रही है। नदी की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर फावड़ा चलाते हुए 75 साल के बूढे़ को देखकर हर किसी के मन में सवाल उठता है कि इस उम्र में इतनी मेहनत क्यों और किसके लिए? इसका जवाब भावन देते हैं, ‘पत्नी की मौत के बाद अकेला हो गया तो सोचा कि गांव के लिए ही कुछ किया जाए। मेरी समतल की गई जमीन से सैकड़ों लोगों का पेट भरता है, क्या यह पुण्य नहीं है।’

प्रधान प्रतिनिधि वीरेंद्र निषाद कहते हैं कि भावन को इससे मतलब नहीं है कि जमीन किसकी है और इसकी पैदावार कौन लेगा। वह निष्काम भाव से जमीन समतल करते हैं। जिसका मालिकाना हक होता है, वह जमीन पर फसल तैयार कर पैदावार लेता है। इस मेहनत के एवज में ‘जेसीबी मैन’ को लोग केवल दोनों पहर की रोटी दे देते हैं। न भी दें तो वह खुद बनाकर पेट भरते हैं।

सुबह उठते ही भावन निषाद फावड़ा लेकर जंगलों की ओर निकल जाते हैं ऊंची-नीची जमीन को बराबर करने। चार घंटे की मेहनत के बाद ही खाना खाते हैं। जमीन का मालिक खाना लेकर जंगल खुद पहुंच जाता है। भावन रोज आठ से दस घंटे फावड़ा चलाने का कार्य करते हैं।

थम गया गांव का पलायन

भावन अपनी मेहनत के बल पर समूचे समाज को एक बड़ा संदेश दे रहे। आज गांव के कई परिवारों की रोजी-रोटी का साधन खेती बन गई है। जगराम निषाद, लार्लू सिंह, प्रकाश वीर, जयकरन निषाद ने बताया कि बेकार जमीन पर खेती होगी, यह कभी हम लोगों ने सोचा ही नहीं था। जेसीबी लाकर जमीन बराबर कराने का पैसा भी नहीं था। अब गेहूं, सरसो, चना की फसल होने लगी तो कमाने बाहर चले गए परिवारों ने गांव में आकर खेती संभाल ली है।

दूसरे भी हुए प्रेरित

भावन के जज्बे और सोच ने गांव के दूसरे लोगों को भी प्रेरित किया। इसका सुखद परिणाम रहा कि अन्य ग्रामीणों ने ट्रैक्टर और फावड़े के जरिए 450 बीघा जमीन समतल कर पैदावार के योग्य बना दिया। गांव में अभी करीब 1000 बीघा ऊबड़-खाबड़ जमीन बची है।

बेकार जमीन को उपजाऊ बनाने में भावन जैसी लगन अन्य लोगों में हो जाए तो किसानों की आय दोगुनी क्या चार गुनी बढ़ सकती है। इसके लिए भावन को संगठन सम्मानित करेगा।

- भुवन भाष्कर द्विवेदी, निदेशक, खेत-किसान उत्पादक संगठन
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रविवार, 4 फ़रवरी 2018

मानवता की मिशाल कौशाम्बी जेलर

✍ गौरव सिंह (संपादक आत्मगौरव न्यूज़)

कौशांबी जेलर की पहल से होगी गरीब बंदियों की बेटियों की शादी
कहा जाता है कि अगर अधिकारी  बढ़िया बेहतर करे तो उसकी प्रशंसा जितनी की जाये उतनी काम है। यही हाल है कौशांबी जेल अधीक्षक बी.एस.मुकुंद का। उन्होंने जब से जेल की जिम्मेदारी संभाली है तब से जेल का कायाकल्प करने में कोई कसार नहीं छोड़ी है। वह कभी जेल में खेल प्रतियोगिता का आयोजन करवाके बंदियों को चुस्त दुरुस्त रखते हैं तो कभी बंदियों को कपड़े आदि बांटकर एक मिशाल पेश करते हैं। तभी तो अभी हाल ही में जिला जज सुरेंद्र पाल सिंह, चंद्र विजय श्रीनेत सी.जे.एम., मनीष कुमार वर्मा ज़िलाधिकारी एवं प्रदीप गुप्ता, पुलिस अधीक्षक, कौशाम्बी द्वारा जेल का आकस्मिक संयुक्त निरीक्षण किया गया। जेल में बेहतर रखरखाव और कोई अव्यवस्था ना मिलने पर जिला अधिकारी ने उन्हें प्रशस्तिपत्र भी दिया था।

निर्धन बंदियों की बेटियों की होगी शादी

उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिला कारागार में आज में निरुद्ध असहाय, निर्धन, वृद्ध, दिव्यांग, विधवा महिला बंदी एवं ऐसे बंदी जिनकी पुत्रियों की शादी तय हो गयी है और उनके पास धन की व्यवस्था नहीं है। ऐसे बंदियो को राज्य सरकार की और से संचालित लाभकारी योजना की जानकारी प्रेम प्रकाश, सचिव, ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण, मंजू सोनकर, ज़िला समाज कल्याण अधिकारी द्वारा जानकारी दी गयी तथा बंदियो की स्क्रीनिंग की गयी।

साप्ताहिक निरीक्षण में लगभग 35 सिद्धदोष एवं 20 विचाराधीन बंदी वृद् , बंदी अशोक पासी दिव्यांग, विचाराधीन बंदी पुद्दन- पुत्री की शादी की योजना, महिला बंदी चम्पा- विधवा पेंशन, महिला बंदी शूकुल एवं दससी वृद्धा अवस्था पेंशन के लिए पात्र पायी गयी। जिनके आवेदन पत्र आनलाइन भरवाने की कार्यवाही आरम्भ की गयी है। इनकी पात्रता हेतु अन्य आवश्यक काग़ज़ात जैसे आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर एत्यादि की कार्यवाही की जा रही। सभी औपचारिकताए पूर्ण होने पर नियमानुसार उपयुक्त पात्र बंदियो को राज्य की लाभकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा। निरीक्षण के दौरान बीएसमुकुंद प्रभारी जेल अधीक्षक, ज्ञान लता पाल, संजय राय, राम शंकर सरोज सभी उपकारापाल, केदारनाथ शुक्ला चीफ़ हेड वार्डर उपस्थित रहे।

सराहनीय कार्य करते रहते हैं जेलर

बता दें कि कौशांबी के जेलर से कैदियों को भी काफी लगाव है। वो इसलिए कि जेलर जेल को बेहतर बनाने में जुटे हैं। अन्य जेलों की तुलना में यहां की व्यवस्थाएं काफी अच्छी हैं। जेलर समय-समय पर वह खेलकूद प्रतियोगिता सहित साफ-सफाई के लिए अभियान चलाते रहते हैं। वह जेल के भीतर चिकित्सा कैम्प और बंदियों को गर्म कपड़े बांटने का भी कार्य कर चुके हैं।





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