सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

फतेहपुर में ऊबड़-खाबड़ भूमि को ‘अन्नपूर्णा’ बनाता ‘जेसीबी मैन’

✍गोविंद दुबे वरिष्ठ पत्रकार (दैनिक जागरण)
 ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी के हौसले की कहानी से सभी वाकिफ हैं, जिन्होंने अकेले पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता तैयार किया। अब एक और शख्स से मिलिए, जिसे लोग ‘जेसीबी मैन’ कहते हैं। यह हैं फतेहपुर के अमौली ब्लॉक में भरसा के मजरे केवटरा गांव के 75 वर्षीय भावन निषाद। नोन नदी किनारे बसे इस गांव में भावन ने 25 वर्षों में 50 बीघा ऊबड़-खाबड़ जमीन समतल कर उसे ‘अन्नपूर्णा’ बना दिया। आज भी बूढ़ी काया में फौलादी इरादे समेटे भावन नदी किनारे और भी जमीनों को खेती के योग्य बनाने में जुटे हैं, गीता के इस उपदेश को आत्मसात करते हुए कि ‘सुखी रहना है तो निष्काम भाव से कर्म करो।’
भावन के तैयार किए खेतों में अब गेहूं, चना व सरसों की फसल लहलहा रही है। नदी की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर फावड़ा चलाते हुए 75 साल के बूढे़ को देखकर हर किसी के मन में सवाल उठता है कि इस उम्र में इतनी मेहनत क्यों और किसके लिए? इसका जवाब भावन देते हैं, ‘पत्नी की मौत के बाद अकेला हो गया तो सोचा कि गांव के लिए ही कुछ किया जाए। मेरी समतल की गई जमीन से सैकड़ों लोगों का पेट भरता है, क्या यह पुण्य नहीं है।’

प्रधान प्रतिनिधि वीरेंद्र निषाद कहते हैं कि भावन को इससे मतलब नहीं है कि जमीन किसकी है और इसकी पैदावार कौन लेगा। वह निष्काम भाव से जमीन समतल करते हैं। जिसका मालिकाना हक होता है, वह जमीन पर फसल तैयार कर पैदावार लेता है। इस मेहनत के एवज में ‘जेसीबी मैन’ को लोग केवल दोनों पहर की रोटी दे देते हैं। न भी दें तो वह खुद बनाकर पेट भरते हैं।

सुबह उठते ही भावन निषाद फावड़ा लेकर जंगलों की ओर निकल जाते हैं ऊंची-नीची जमीन को बराबर करने। चार घंटे की मेहनत के बाद ही खाना खाते हैं। जमीन का मालिक खाना लेकर जंगल खुद पहुंच जाता है। भावन रोज आठ से दस घंटे फावड़ा चलाने का कार्य करते हैं।

थम गया गांव का पलायन

भावन अपनी मेहनत के बल पर समूचे समाज को एक बड़ा संदेश दे रहे। आज गांव के कई परिवारों की रोजी-रोटी का साधन खेती बन गई है। जगराम निषाद, लार्लू सिंह, प्रकाश वीर, जयकरन निषाद ने बताया कि बेकार जमीन पर खेती होगी, यह कभी हम लोगों ने सोचा ही नहीं था। जेसीबी लाकर जमीन बराबर कराने का पैसा भी नहीं था। अब गेहूं, सरसो, चना की फसल होने लगी तो कमाने बाहर चले गए परिवारों ने गांव में आकर खेती संभाल ली है।

दूसरे भी हुए प्रेरित

भावन के जज्बे और सोच ने गांव के दूसरे लोगों को भी प्रेरित किया। इसका सुखद परिणाम रहा कि अन्य ग्रामीणों ने ट्रैक्टर और फावड़े के जरिए 450 बीघा जमीन समतल कर पैदावार के योग्य बना दिया। गांव में अभी करीब 1000 बीघा ऊबड़-खाबड़ जमीन बची है।

बेकार जमीन को उपजाऊ बनाने में भावन जैसी लगन अन्य लोगों में हो जाए तो किसानों की आय दोगुनी क्या चार गुनी बढ़ सकती है। इसके लिए भावन को संगठन सम्मानित करेगा।

- भुवन भाष्कर द्विवेदी, निदेशक, खेत-किसान उत्पादक संगठन
Previous Post
Next Post

0 टिप्पणियाँ:

Thanks for Visiting our News website..