बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

शिवरात्रि विशेष - आज भी पूजे मिलते हैं शिवलिंग  


गौरव सिंह गौतम (मुख्य संपादक आत्मगौरव न्यूज़.कॉम)

फतेहपुर जनपद में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां बंद कपाट में शिव के गण या कोई अदृश्य शक्ति उनकी पूजा करके चली जाती हैं। 
वहां पर फूल बेलपत्र तथा चावल मिलता है। 
अपने आप में यह अद्भुत अविश्वसनीय और अकल्पनीय है। यह शिव मंदिर जनपद मुख्यालय से 35 किलो मीटर दूर असोथर कस्बे के बीचों बीच स्थित है । इसकी की महिमा अनोखी है सावन माह में सोमवार को यहां मेले जैसा दृश्य हो जाता है यह मंदिर शक्ति पीठ मोटे महादेवन  के नाम से प्रसिद्ध है ।

हजारों साल पुराना है शिव मंदिर

असोथर कस्बें के बीचों बीच पर स्थिति यह शिव मंदिर हजारो साल पुराना है। 
इसकी वास्तविक तिथि किसी को नहीं मालूम की कब मंदिर का निर्माण किया गया है। 
लेकिन इतना जरुर लोग बताते है कि यह मंदिर द्वापर युग का है। 
इस शिवलिंग की कहानी भी महाभारत के पात्र अश्वस्थामा के जीवन के क्षणों से जुड़ी हुई है।

अदृश्य शक्ति करती है शिवलिंग की पहले पूजा, 
कपाट खोलने पर मिलता है फूल बेलपत्र

मंदिर में एक शिवलिंग है इसके संबंध में स्थानीय लोगो का कहना है कि रात को जब मंदिर बंद किया जाता है उस समय मंदिर की सफाई की जाती है और शिवलिंग पर कोई भी वस्तु नहीं छोड़ी जाती। 
लेकिन, जब मंदिर के कपाट खोले जाते है तो शिवलिग पर फूल , बेलपत्र , चावल या अन्य पूजन सामग्री चढ़ाई हुई मिलती है। 
कस्बे में एक लोकोक्ति हैं कि आज भी मोटे महादेवन मंदिर में महाभारत काल के पांडवों व कौरवों गुरु द्रोण के पुत्र अश्वस्थामा आज भी सफेद घोड़े पर सवार हो शिव की पूजा अर्चना करने आते हैं , बुजर्गों के अनुसार पूर्व में असोथर कस्बा अश्वस्थामा मंदिर के पास बसा हुआ था , पूर्व में मोटे महादेवन मंदिर वीरान जंगल इलाके में था , जो कि आज कस्बें के बीचो बीच हैं।
इसके अलावा एक मान्यता  हैं कि मोटे महादेवन मंदिर में शिवलिंग (ईशान कोण) की ओर झुकी हैं।
पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान कोण की संज्ञा दी गई है। 
यह दो दिशाओं का सर्वोतम मिलन स्थान है। 
यह स्थान भगवान शिव और जल का स्थान भी माना गया है। 
ईशान को सदैव स्वच्छ और शुद्ध रखना चाहिए। 
पूजा स्थान के लिए ईशान कोण को विशेष महत्व दिया जाता है।
यह शिवलिंग काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर झुकी हुई हैं , 
कहते हैं जो कोई भी यहा सच्चे मन से अराधना करता है तो उसकी मनोकामना 21 दिन में पूरी होती है, यहां पर वैसे रोज कई शिव भक्त आते है पर कुछ लोग इसमे खास होते है क्योंकि वो यहां ही नहीं गैर जनपदों के होते हैं नहीं और पूजन करके अपनी मनोकामना पूरी होने की मुराद मांगते हैं ।

अति प्राचीन है इस मंदिर का इतिहास

जानकार बताते है महाभारत युद्ध के बाद अजर अमर अश्वस्थामा पांडवो पुत्रों की हत्या का पश्चाताप करने लिए यहां पर पूर्व से अब तक अनवरत पूजा अर्चना करते आ रहे हैं ।

हालांकि बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार राजस्थान राज्य जयपुर के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मान सिंह ने मंदिर महात्म सुनने  व उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार लगभग 250 वर्ष पहले करवाया था ।
वर्तमान में इस मंदिर का जीर्णोद्धार जिले के नामी ट्रांसपोर्टर शिवप्रकाश शुक्ला जी द्वारा करवाया गया हैं ।

औरंगजेब भी नहीं तोड़ सका शिवलिंग को 

मुगल शासक औरंगजेब के शासन के समय 1873 ईशवी० में देश मे अधिकतर शिवलिंग को क्षत विक्षत कर दिया गया था , परंतु कहते हैं जैसे ही औरंगजेब के सैनिकों ने इस मंदिर के प्रांगण में घुसने की कोशिश की उन पर आश्चर्यजनक रूप से एक साथ बहुत अधिक मधुमखियों ने हमला कर दिया , जिससे वह मंदिर तोड़ना तो दूर की बात रही , वह अपनी ही जान बचाकर वहां से भाग निकले ।



[शक्ति पीठ मोटे महादेवन मंदिर में पूजा अर्चना करते श्रद्धालु]


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मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

श्रीमद् भागवत सप्ताह का हुआ समापन


फतेहपुर - असोथर कस्बे के मजरे विधातीपुर,  में चल रही श्रीमद् भागवत सप्ताह का सोमवार को समापन हो गया। 
पीलीकोठी चित्रकूट से आयी कथावाचक  साध्वी मधुबाला ने कथा के महत्व और श्रवण पर प्रकाश डाला। 
उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति से ही जीवन का कल्याण होता है। 
इसलिए आडंबर के बगैर भगवान की भक्ति करनी चाहिए।  श्रीमदभागवत कथा का पारायण मनुष्य की वह अद्वितीय शक्ति है,जो उसके अंत:करण को शुद्ध कर जीवन बदल देती है। 
इसके मूल सारांश का अध्ययन व श्रवन कर अपने जीवन में उतारें। साध्वी मधुबाला ने कहा कथा श्रवण जन्म-जन्मांतर के पुण्य का फल है और बताया कि बड़े भाग्य से मनुष्य का तन मिलता है तथा बड़े सौभाग्य से मनुष्य को कथा सुनने का मौका मिलता है। 
श्रीमद् भागवत मनुष्य को मोक्ष की तरफ ले जाती है। 
भागवत कथा सुनने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। भागवत कल्पवृक्ष है। 
श्रीमद् भागवत अत्यंत गोपनीय रहस्यात्मक पुराण है। 
यह भगवत्स्वरूप का अनुभव कराने वाला और समस्त वेदों का सार है। 
आज अंतिम दिन श्रीमद् भागवत कथा की रसधार पुरे गांव में बहने लगी। 
श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में कृष्ण और सुदामा की लीला अमर-प्रेम मित्रता पर बिशेष चर्चा हुई। 
प्रसंगानुसार जीवंत झांकी निकाली गयी। 
श्रद्धालुओं ने गीत-नृत्य का घंटों आनंद उठाया। 
इस बीच कथावाचक साध्वी मधुबाला ने भगवान की रोचक प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डाला। 
कहा कि भगवान की लीला जीवनोपयोगी है, 
इसे आत्मसात कर हम अपना यही लोक और परलोक दोनों सुधार सकते हैं। 
भगवान कृष्ण की लीला के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान को जो भाव से थोड़ा देता है उसे भगवान संपूर्ण सुख प्रदान कर देते हैं। 
मन-मोहक झाँकियों के माध्यम से प्रभु की सरस ललित ब्रज लीलाओं का प्रस्तुतीकरण किया गया। 
जिसे देखककर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। 
जहां भगवान के नाम नियमित रूप से लिया जाता है। 
वहां सुख, समृद्धि व शांति बनी रहती है। 
जीवन को कर्मशील बनाना है तो श्रीमदभागवत कथा का श्रवण करें। 
यह जीवन जीने की कला सीखाती है।
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सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

शिवरात्रि विशेष - ऐसा शिव मंदिर जहां पर होती हैं हर इच्छा पूरी



✍गौरव सिंह गौतम (संपादक)

फतेहपुर - जनपद फतेहपुर मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर गाजीपुर व असोथर के मध्य में स्थित अति प्राचीन जागेश्वर धाम मंदिर हैं , जो क्षेत्र सहित जनपद फतेहपुर में अलौकिक छटा बिखेर रहा हैं , लोगों की ऐसी मान्यता हैं कि यहाँ पर सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना पूर्ण होती हैं ।
लोगों का मानना हैं व बुजुर्ग जानकर लोगो का कहना हैं कि स्वयंभू शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा महाभारत काल में अज्ञातवास के समय पांडवों ने की थी। 
बाद में असोथर स्टेट के महराज भगवंत राय खींची जी ने जागृत शिवलिंग की पूजा-अर्चना के साथ मेला की शुरुआत कराई।
असोथर-गाजीपुर के मध्य स्थित जागेश्वर धाम से भक्तों की अटूट आस्था है।
महाभारत काल में यह क्षेत्र राज विराट के अधीन था।
यही कुंती पुत्र पांडवों ने अज्ञातवास के समय रहकर जंगल में प्रकट शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कर तप किया था।
बाद में अश्वस्थामा जी इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते रहे। 
एक लोकोक्ति हैं कि एक बार खींची वंश के राजा भगवंत राय ने शिवलिंग की गहराई जानने के लिए खुदाई करवाई तथा उसे सीधा करने के लिए हाथी के पैर में रस्सी बांधकर खिंचवाया गया तो हाथी की मृत्यु हो गई। 
कालांतर में भागलपुर बिहार निवासी प्रवक्ता द्वारा भव्य मंदिर का निर्माण संवत 1950 में करवाया गया। 
इस धाम में महाशिवरात्रि से होली तक 15 दिन का मेला लगता है।
सावन मास में तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। पुजारी त्रिभुवन नाथ गोस्वामी का कहना है कि इस दिव्य धाम में बिहार, मध्य प्रदेश सहित कई जनपद से भक्त दर्शन करने आते हैं।

विश्व के शीर्ष विश्विद्यालयों में एक एमिटी यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ० अजय राणा जी इस शिव मंदिर के अनन्य भक्त हैं अभी पिछले वर्ष 28 जुलाई 2017 को उन्होंने ने सपरिवार इस मंदिर में दर्शन व रूद्राभिषेक किया , और मंदिर परिसर के पास ही एक विश्वविद्यालय खोलने के लिए जमीन भी देखी हैं ।

(जागेश्वर धाम में सपरिवार रुद्राभिषेक करते एमिटी यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ० अजय राणा )

श्रावण मास  के पहले सोमवार व शिवरात्रि को  मंदिर में भक्तों का तांता लगता हैं ,
गाजीपुर व असोथर के मध्य में स्थित जागेश्वर धाम भक्तों की अपार श्रद्धा का केंद्र है ।
मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले हर भक्त की मनोकामना भगवान् भोले नाथ पूरी करते हैं ।

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रविवार, 29 अक्तूबर 2017

रामायण की कहानी हर कोई जानता है, पर उसमें छिपी ये 13 छोटी-छोटी कहानियां आपको नहीं पता होंगी

रामायण हिन्दू धर्म के दो सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है. भगवान राम के जीवन पर आधारित इस ग्रन्थ में लोगों की अपार श्रद्धा है. वाल्मिकी जी द्वारा लिखी गयी रामायण में कई सीखने लायक बातें हैं. लेकिन कई ऐसी बातें भी हैं, जो आपको रामायण के बारे में नहीं पता होंगी. आज हम आपको ऐसी ही कुछ बातें बता रहे हैं.

1. वाल्मिकी ने सबसे पहले रामायण लिखी थी, तुलसीदास ने बाद में रामचरितमानस नाम से इसी का रूपांतर लिखा था.

2. सीता जनक की नहीं, भूदेवी की पुत्री थीं. वो धरती पर मां लक्ष्मी का अवतार थीं.

3. जब रावण भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश गया था, तब उन्हें नंदी ने द्वार पर रोक लिया था. रावण ने नंदी का मज़ाक उड़ाया था. इस पर क्रोधित होकर नंदी ने उसे श्राप दिया था कि उसके साम्राज्य का सर्वनाश बन्दर करेंगे. ये श्राप सच हुआ और वानर सेना द्वारा रावण के साम्राज्य का विनाश हुआ.


4. लक्ष्मण अपने भाई और भाभी की सुरक्षा के लिए इतने तत्पर थे कि वो 14 साल के वनवास के दौरान एक क्षण को भी नहीं सोये. नींद की देवी निंद्रा ने कहा था कि उनकी जगह किसी और को सोना होगा, तो लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला 14 साल तक सोती रहीं. मेघनाद को वरदान मिला था कि उसे केवल वो ही हरा सकता है, जो नींद को हरा चुका हो, इसलिए लक्ष्मण उसका वध कर पाए.

5. राम और उनके भाइयों के जन्म से पहले राजा दशरथ को कौशल्या से शांता नाम की एक बेटी हुई थी. कौशल्या की बड़ी बहन वर्षिणी और उनके पति राजा रोमपद की कोई संतान नहीं थी. दशरथ ने उन्हें अपनी पुत्री दान की थी.

6. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने खुद अपना सिर काट लिया था, लेकिन उसका सिर बार-बार उग जाता था. इस तरह उसने 10 बार अपना सिर काटा. भगवान शिव ने यही दस सिर रावण को लौटाए थे.



7.भगवान राम विष्णु का अवतार थे, भरत उनका सुदर्शन चक्र थे और शत्रुघन उनका शंख, लक्ष्मण को उनके शेष नाग का अवतार माना जाता है.

8. एक बार जब भगवान राम यम से भेंट कर रहे थे, तब उन्होंने लक्ष्मण को पहरा देने के लिए कहा था. यम ने उनके सामने शर्त रखी थी कि जो भी इस बीच उनके कक्ष में प्रवेश करेगा, उसे मरना होगा. इस बीच ऋषि दुर्वासा वहां पहुंच गए और रोके जाने पर अयोध्या को श्राप देने की बात करने लगे. इस पर लक्ष्मण को भीतर जाना पड़ा. इसके बाद उन्होंने सरयू जाकर अपने प्राण त्याग दिए.


9. राम के राजा बनने के बाद, एक बार उनके दरबार में नारद ने हनुमान को विश्वामित्र के अलावा सभी ऋषियों को प्रणाम करने को कहा, क्योंकि विश्वामित्र एक समय पर राजा थे. इसके बाद नारद ने जाकर विश्वामित्र को भड़काया और उन्होंने भगवान राम से हनुमानजी को सज़ा देने को कहा. राम जी अपने गुरु का आदेश नहीं टाल सकते थे, इसलिए उन्होंने हनुमानजी पर तीर चलाये, लेकिन हनुमानजी राम-राम जपते रहे और उन्हें कुछ नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र भी चलाया, पर उसका भी उन पर कोई असर नहीं हुआ. ये देख कर नारदजी ने युद्ध रुकवा दिया.

10. धन के देवता कुबेर, रावण के सौतेले भाई थे. रावण ने उन्हें हरा कर लंका को जीता था.

11. राम सेतु जब बन रहा था, तब एक गिलहरी भी अपना योगदान देना चाहती थी. जब वो छोटे पत्थर उठाकर लायी, तो बंदरों ने उस पर हंसना शुरू कर दिया. इससे दुखी होकर वो श्री राम के पास बैठ गयी. तब श्री राम ने उसे प्यार से सहलाया था, तभी से गिलहरियों के ऊपर धारियां बन गयीं.


12. जब भगवान राम और उनकी सेना से लड़ने के लिए केवल रावण बचा था, तब उसने अपनी विजय के लिए एक यज्ञ करवाया. अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए उसे ये यज्ञ बीच में छोड़ कर नहीं जाना था. ये जानने पर भगवान राम ने बाली के बेटे अंगद को वानर सेना के साथ रावण के महल में भेजा.

वानर वहां जाकर हुडदंग मचाने लगे, लेकिन रावण पर कोई असर नहीं हुआ. अंगद ने मंदोदरी के बाल खींचना शुरू कर दिया. मंदोदरी ने इस पर रावण को ताना मारा कि राम अपनी पत्नी के लिए कितना कुछ कर रहे हैं और उसे भी मंदोदरी की रक्षा करनी चाहिए. इस पर रावण को यज्ञ छोड़ना पड़ा और उसकी हार हुई.



13. युद्ध के बाद हनुमानजी हिमालय चले गए थे. वहां उन्होंने पहाड़ों पर अपने नाखूनों से खोद कर भगवान राम की कहानी लिख दी थी. जब वाल्मिकी अपनी रामायण दिखाने वहां पहुंचे, तो ये देख कर निराश हो गए कि हनुमानजी की राम कथा उनसे बेहतर है. ये देख कर हनुमानजी ने अपनी राम कथा को मिटा डाला.
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गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

माता पार्वती के पसीने की बूंद से हुई इस पेड़ की उत्पत्ति

इंटरनेट डेस्क। हिंदू धर्म में बेलपत्र का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करता है और उन्हें बेलपत्र अर्पित करता है तो भगवान उसकी हर इच्छा पूरी करते हैं। क्या आपको पता है भगवान शिव पर बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है और इसके पीछे क्या कहानी छिपी हुई है, अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं .......

बेलपत्र की कहानी :-
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदृंचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ। माना जाता है कि इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं।

फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
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सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनों ने निर्जला व्रत रखा, खूब चला सेल्फी का दौर

सुहागिनों ने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखकर करवाचौथ का त्योहार उत्साह और श्रद्धा से मनाया।
इसे लेकर बाजारों में रौनक छाई रही।

महिलाओं ने इस त्योहार को लेकर जमकर खरीदारी की। सुहागिनों ने सोलह शृंगार कर दिनभर व्रत रखकर पति की दीर्घायु की कामना की।
महिलाओं ने सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना की और करवाचौथ की कहानी सुनी।
करवाचौथ के पर्व को लेकर महिलाओं में भारी उत्साह दिखाई दिया।
बाजारों में मिट्टी के करवा और कथा के कलेंडरों की जमकर बिक्री होती देखी गई।
नकली गहनों व कांच की चूड़ियों की दुकानों पर भी महिलाओं की भारी भीड़ देखी गई, पति भी अपनी पत्नियों को खुश करने के लिए अच्छे से अच्छा उपहार खरीदने में जुटे रहे।
इसे लेकर ज्वेलर्स के यहां भी अच्छी खासी भीड़ रही।
सुबह से ही महिलाओं ने मंदिरों में पूजा अर्चना की।
फिर दोपहर बाद सुहागिनों ने सामूहिक रूप से पूजा अर्चना की और बुजुर्ग महिलाओं से कथा सुनी।
महिलाओं ने इकट्ठा होकर पूजा के दौरान एक दूसरे से करवा बदले और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की।
इनमें कुछ नवविवाहिताओं के अलावा ऐसी कुंवारी युवतियां भी थीं, जिनका निकट भविष्य में विवाह होने वाला है।
उन्होंने भी अपने होने वाले वर की सलामती के लिए व्रत रखकर ईश्वर से मंगल की प्रार्थना की। कुछ पतियों ने भी दांपत्य जीवन सुखमय बनाए रखने के लिए व्रत रखकर ईश्वर से प्रार्थना की। कृष्णबिहारी नगर निवासी पूजा,  अमरजई की मीनाक्षी व ऋतु आदि ने बताया कि उनका यह पहला करवाचौथ था।
इसके लिए दो दिन पहले से ही ब्यूटी पार्लर से शृंगार का सामान लाकर व मेहंदी लगवाकर विशेष तैयारी कर रखी थी।
यह पर्व पति के प्रति समर्पण और प्रेम दर्शता है।

बाजारों में रही भीड़ :

करवा चौथ को लेकर बाजारों में जमकर खरीदारी हुई।
इसके चलते शहर के विभिन्न बाजारों में भीड़ रही। चौक बाजार , शॉपिंग मॉल के अलावा देवीगंज , हरिहरगंज के बाजारों में दुकानों पर अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली।
दुकानदार भी इस मौके को भुनाने में पीछे नहीं रहे।
उन्होंने अपना सामान दुकानों से बाहर निकालकर सजाया हुआ था।
रविवार को छुट्टी के चलते लोगों ने बाजारों में समय व्यतीत किया।
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बीमार महिलाओं ने भी रखा व्रत :

सौभाग्यवती (सुहागिन) महिलाओं में करवा चौथ को लेकर आस्था देखने लायक थी। पति की दीर्घायु के लिए गंभीर बीमारियों की चपेट में रहने के बावजूद कई महिलाओं ने यह व्रत रखा।
उन्होंने तड़के चार बजे से पहले दवाई-गोली की खुराक ली।
इसके बाद उन्होंने अपना विधिवत रूप से व्रत रखा। राधानगर निवासी किडनी रोग से पीड़ित माया सिंह ने बड़ी श्रद्धा से यह व्रत रखा।
उन्होंने दवाई रात में ही ले ली।
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क्यों रखा जाता है करवा चौथ का व्रत :

किवदंती कथाओं के अनुसार करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति से अटूट प्रेम करती थी।
उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। वह अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी।
एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया।
तभी एक मगरमच्छ ने उसके पति के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। पतिव्रता करवा नामक स्त्री ने यम देवता का आह्वान कर कहा-यदि मेरे सुहाग को कुछ हुआ तो अपनी पतिव्रता शक्ति से यमदेव व यमलोक का नाश कर देगी। यमराज ने उसकी दिव्य शक्ति व पतिव्रत धर्म से घबरा कर उसके पति को सुरक्षित वापस कर दिया और मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन से गणेश चतुर्थी को स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु के लिए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चुतर्थी को रखे जाने वाला व्रत करवा चौथ के नाम से जाना जाने लगा।

सफाई के साथ पौधरोपण करके मनाया करवाचौथ :

कस्बा असोथर में महिलाओं ने करवाचौथ का त्योहार घरों में फूलों के पौधे लगाकर मनाया। साथ ही कुछ महिलाओं ने घरों में सफाई अभियान भी चलाया।

खूब चला सेल्फी का दौर

शृंगार नारी की शोभा है तो सबसे बड़ी कमजोरी भी।
करवा चौथ के पूजन के लिए जुटी महिलाओं के बीच अपने शृंगार को कैमरे में कैद कर लेने की होड सी मची रही।
महिलाएं अपनी सखियों के साथ सेल्फी लेते हुए प्रसन्नचित्त नजर आ रही थीं।
पूजन से पहले और बाद तो सेल्फी समझ में आई लेकिन पूजन के दौरान भी कुछ महिलाएं सेल्फी में मगन दिखीं।
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शनिवार, 30 सितंबर 2017

दशहरा या विजयदशमी : किस विजय का प्रतीक हैं?


दशहरा और विजयादशमी नवरात्री के नौ दिनों के बाद आता है। इस दशमी को विजय दशमी क्यों कहते हैं? किस विजय का प्रतीक है ये?

नवरात्रि और दशहरा ऐसे सांस्कृतिक उत्सव हैं जो सभी के लिए महत्वपूर्ण और अहम हैं। ये उत्सव चैतन्‍य के देवी स्वरुप को पूरी तरह से समर्पित है। कर्नाटक में दशहरा चामुंडी से जुड़ा है, और बंगाल में दुर्गा से। इस तरह से अलग-अलग जगहों पर यह अलग-अलग देवियों से जुड़ा है, पर मुख्य रूप से स्त्रीत्व या देवी के बारे में ही है।

दशहरा – उत्सव का दसवां दिन

नवरात्रि, बुराई और ऊधमी प्रकृति पर विजय पाने के प्रतीकों से भरपूर है। इस त्यौहार के दिन, जीवन के सभी पहलुओं के प्रति, जीवन में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तूओं के प्रति अहोभाव प्रकट किया जाता है। नवरात्रि के नौ दिन, तमस रजस और सत्व के गुणों से जुड़े हैं। पहले तीन दिन तमस के होते हैं, जहां देवी रौद्र रूप में होती हैं – जैसे दुर्गा या काली। उसके बाद के तीन दिन लक्ष्मी को समर्पित हैं – ये देवी सौम्य हैं, पर भौतिक जगत से सम्बंधित हैं। आखिरी तीन दिन सरस्वती देवी यानि सत्व से जुड़े हैं, ये ज्ञान और बोध से सम्बंधित हैं।

दशहरा –  जीत का दिन

इन तीनों में अपना जीवन समर्पित करने से आपके जीवन को एक नया रूप मिलता है। अगर आप तमस में अपना जीवन लगाते हैं तो आपके जीवन को एक तरह की शक्ति आएगी। अगर आप रजस में अपना जीवन लगाएंगे, तो आप किसी अन्य तरीके से शक्तिशाली होंगे। और अगर आप सत्व में अपना जीवन लगाएंगे, तो एक बिलकुल अलग तरीके से शक्तिशाली बन जाएंगे। लेकिन अगर आप इन सबसे परे चले जाएं तो फिर ये शक्तिशाली बनने की बात नहीं होगी, फिर आप मुक्ति की ओर चले जाएंगे। नवरात्रि के बाद दसवां और अंतिम दिन विजयादशमी या दशहरा का होता है –  इसका मतलब है कि आपने इन तीनों पर विजय पा ली है। आपने इन में से किसी के भी आगे घुटने नहीं टेके, आपने हर गुण के आर-पार देखा। आपने हर गुण में भागीदारी निभाई, पर आपने अपना जीवन किसी गुण को समर्पित नहीं किया। आपने सभी गुणों को जीत लिया। ये ही विजयदशमी है – विजय का दिन। इसका संदेश यह है – कि जीवन की हर महत्वपूर्ण वस्तु के प्रति अहोभाव और कृतज्ञता का भाव रखने से कामयाबी और विजय प्राप्त होती है।

दशहरा – भक्ति और अहोभाव

हम अपने जीवन को सफल बनाने के लिए बहुत से उपकरणों को काम में लाते हैं। जिन उपकरणों से हम अपना जीवन रचते हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण हमारा अपना शरीर और मन है। जिस धरती पर हम चल्रते हैं, जिस हवा में सांस लेते हैं, जो पानी हम पीते हैं और जो खाना खाते हैं – इन सभी वस्तूओं के प्रति अहोभाव रखने से हमारे जीवन में एक नई संभावना पैदा हो सकती है। इन सभी पहलुओं के प्रति अहोभाव और भक्ति रखने से हमें अपने सभी प्रयत्नों में सफलता मिलेगी।

दशहरा प्रेम और उल्लास के साथ मनाएं

इस तरह से नवरात्रि के नौ दिनों के प्रति या जीवन के हर पहलू के प्रति एक उत्सव और उमंग का नजरिया रखना और उसे उत्सव की तरह मनाना सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आप जीवन में हर चीज को एक उत्सव के रूप में लेंगे तो आप बिना गंभीर हुए जीवन में पूरी तरह शामिल होना सीख जाएंगे। दरअसल ज्यादातर लोगों के साथ दिक्क्त यह है कि जिस चीज को वो बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं उसे लेकर हद से ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। अगर उन्हें लगे कि वह चीज महत्वपूर्ण नहीं है तो फिर उसके प्रति बिल्कुल लापरवाह हो जाएंगे- उसमें जरूरी भागीदारी भी नहीं दिखाएंगे। जीवन का रहस्य यही है कि हर चीज को बिना गंभीरता के देखा जाए, लेकिन उसमें पूरी तरह से भाग लिया जाए- बिल्कुल एक खेल की तरह।

भारतीय परंपरा में दशहरा हमेशा उल्लास से भरपूर त्यौहार रहा है, जहां समाज के सभी लोग एक साथ मिलकर नाचते और घुल मिल जाते हैं। लेकिन पिछले दो सौ सालों के बाहरी आक्रमणों और बाहरी प्रभावों की वजह से, ये परंपरा अब खो गयी है। वरना दशहरा हमेशा से ही उल्लास से भरा रहा है। बहुत सी जगहों में ये अब भी उल्लास से भरपूर है, पर अन्य जगहों पर यह परंपरा खो रही है। हमें इसे फिर से स्थापित करना होगा। विजयदशमी या दशहरा इस देश में सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है – चाहे वो किसी भी जाति, वर्ग या धर्म का हो – और इसे उल्लास  और प्रेम के साथ मनाया जाना चाहिए। ये मेरी इच्छा और आशीर्वाद है कि आप दशहरा पूरी भागीदारी, आनंद और प्रेम के साथ मनाएं।
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