रविवार, 28 अप्रैल 2019

फतेहपुर - बावन इमली 162 बरस पुरानी दास्तान एक महीने तक इमली के पेड़ में लटके रहें 52 शहीदों के शव

फतेहपुर - बावन इमली 162 बरस पुरानी दास्तान
एक महीने तक इमली के पेड़ में लटके रहें 52 शहीदों के शव

गौरव सिंह गौतम


फतेहपुर : 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी जब देश में फूटी तो इससे यूपी का फतेहपुर भी अछूता नहीं रहा।

यहां की माटी में जन्मे लालों ने गोरों से गुरिल्ला युद्ध कर उनके पैर उखाड़ने शुरू कर दिए थे और फतेहपुर जिले का 32 दिनों तक अझुआ से खजुहा तक का क्षेत्र अंग्रेजों से मुक्त था। 
इस लड़ाई के एक योद्धा वीर सपूत थे बिंदकी के अटैया रसूलपुर (अब पधारा) गांव के 

"ठाकुर जोधा सिंह अटैया"

छापामार युद्ध में पारंगत जोधा सिंह अटैया ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया.
अवध व बुंदेलखंड के क्रांतिकारियों के संपर्क आए . जोधा सिंह ने 27अक्टूबर 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा व एक अंग्रेज सिपाही को घेरकरमार डाला था, जब वह एक घर में सो रहा था .
7 दिसंबर 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर एक अंग्रेज परस्त को भी मार डाला और रानीपुर गांव में बनी पुलिस चौकी के घोड़े हांक ले गए। 
इसी क्रांतिकारी गुट ने 9 दिसम्बर को जहानाबाद में गदर काटी और छापा मारकर ढंग से तहसीलदार को बंदी बना लिया .
जोधा सिंह ने दरियाव सिंह और शिवदयाल सिंह के साथ गोरिल्ला युद्ध की शुरुआत की थी 

4 फरवरी 1858 को जोधा सिंह अटैया पर ब्रिगेडियर करथ्यू ने असफल आक्रमण किया .

साहसी जोधा सिंह अटैया को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डकैत घोषित कर दिया

जोधा सिंह ने आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया ..
किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयागराज से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया ...
कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था .
पर जोधासिंह की योजना अचूक थी 
उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया 
अब अंग्रेजों ने कर्नल नील केे नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी। 
इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी ..
इस बीच अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले इस वीर सपूत को खबर मिली कि वीर योद्धा ठाकुर दरियाव सिंह को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया ..
इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ .

उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी। इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया; पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं ..
जब जोधासिंह  अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया। तभी उनको व उनके 51 क्रांतिकारी साथियों को 28 अप्रैल 1858 को कर्नल क्रस्टाइल की घुड़सवार सेना ने बंदी बना लिया ..
इसके बाद पारादान के पास स्थित इसी इमली के पेड़ पर सभी को फांसी दे दी गई ..
तब से इस इमली के पेड़ को बावनी इमली के नाम से पुकारा जाता है ..
उस वक्त अंग्रेजों का इतना खौफ था कि किसी ने इन शहीदों के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार नहीं किया ..
सभी शव कंकाल एक माह तक पेड़ पर ही झूलते रहे .

तब लगभग  3/4 जून 1858 की रात में रामपुर पहुर निवासी ठाकुर महराज सिंह ने 900 साथियों के साथ सभी के अस्थि पंजर उतरवाए और शिवराजपुर गंगा घाट में अंतिम संस्कार किया .. 
आज भी यहां भारत मां के इन अमर सपूतों को याद किया जाता है ..
तब से बावनी इमली का यह वृक्ष तीर्थ बन गया है..
🙏
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