[ घायल गौवंश का उपचार करते असोथर पशु चिकित्सक डॉ प्रदीप व गौसेवक युवा सूरज व सुमित ]
असोथर के युवाओं की निश्वार्थ गौसेवा मानवता की मिसाल
गायों की निःस्वार्थ सेवा कर मानवता का संदेश देते असोथर कस्बें के युवा गौसेवक
✍ गौरव सिंह गौतम (संपादक)
फतेहपुर / असोथर - हिन्दू धर्म मे गाय का बड़ा ही पूजनीय स्थान है और हिन्दू धर्म के वेद, पुराणों, शास्त्रों व उपनिषदों मे गौ सेवा को सबसे पावन कर्म की उपमा दी जाती है, मगर ये काफी अजीब ही कहा जायेगा कि अश्वस्थामा व धर्म की नगरी असोथर में यूँ तो कहने के लिए भी एक भी गौशाला मौजूद नहीं है ,
वर्तमान योगी सरकार के आदेश के चलते प्रदेश में गायों की बेहतरी के शोर शराबे के बीच इन सब आंकड़ों और दावों के ठीक उलट कस्बें की रोडों और गलियों पर छुट्टा घूमती भूखी, बीमार और असहाय गायें कस्बें में गायों की बदहाली की कुछ और ही हकीकत बयाँ करती है।
जिसको देखकर आमजन को यहां गौ सेवा व गौ सम्वर्धन के नाम पर हाल फिलहाल सब शून्य ही दिखाई देता है।
गायों की दुर्दशा तथा समाज, प्रशासन और सरकार की संवेदनहीनता को देखकर आखिरकार कस्बें के दो युवाओं सूरज सिंह चौहान , सुमित शुक्ला ने अपने युवा साथियों का समूह बनाकर स्वयं ही गायों की सेवा करने का बीड़ा उठा डाला।
कई प्रारम्भिक दिक्कतों के बावजूद इन युवाओं के द्वारा निःस्वार्थ गो सेवा का पुनीत कार्य शुरू किया गया जो अब असोथर कस्बें में एक अलग ही संदेश दे रहा है।
और इन युवाओं का गौ सेवा में परस्पर सहयोग करते हैं असोथर विकासखंड के सरकारी चिकित्सक डॉ प्रदीप जी ...
सूरज व सुमित गौसेवकों के दिन की शुरूआत ही गंभीर रूप घायल और बीमार गायों के उपचार से होती है और इसके लिए युवाओं ने अलग से एक युवा टीम भी बनाई है जो क्षेत्र में भ्रमण के दौरान मोबाईल पर असोथर पशु चिकित्सक प्रदीप जी के दिशा निर्देश पर गायों का उपचार करती है ये तो रही गाय के उपचार की बात इसके अलावा ये गौसेवक मृत गौवंश का अपने खर्च पर ही अंतिम संस्कार कर पर्यावरण को प्रदूषण से भी बचाते है।
इस टीम को जहाँ कहीं भी दिन भर भूखी प्यासी गायें दिखती है, उसी स्थान पर ये गौसेवक चूनी-भूसी देकर उनकी भूख मिटाकर खुद भी संतुष्ट होते है।
शुरुवात में जहां लोग इन गौसेवकों को बड़ी अजीब नजर से देखते थे।
वही अब कस्बे के लोग भी इन गौ सेवको की मेहनत और लगन देखकर बढ़चढ़ कर सहयोग कर रहे है।
क्या कहना गौसेवक युवाओं का
असोथर कस्बें के रहने वाले गौसेवक सूरज सिंह कहते हैं कि जब से लोगों ने अपने खेतों पर धारदार ब्लेड वाले तारो की लगाना शुरू किया है तब से घायल गायो की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है,
ऐसे में प्रशासन यदि सख्ती दिखाए तो इनकी संख्या में अंकुश लग सकता है।
इनके साथी सुमित शुक्ला का कहना है उमसभरी धूप व गर्मी के मौसम में गौ सेवा काफी कठिन लेकिन इससे जो मन को शन्ति मिलती है वो अपने आप में अनुपम है।
गौसेवक युवाओं का कहना है कि बेजुबान अपने दर्द को खुद बयाँ नहीं कर सकते लेकिन इस कार्य को करते हुए हमारा गायों से ऐसा आत्मीय लगाव हो गया है एक आवाज में दौड़ी चली आती है।
बहुत खूब।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,,, भईया जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,,, भईया जी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया...
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