रविवार, 18 मार्च 2018

आखिर क्या हैं विक्रम संवत ? पढ़े पूरी खबर

आखिर क्या हैं विक्रम संवत ?  पढ़े पूरी खबर

गणतांत्रिक युग का आगाज है विक्रम संवत

जनक राजवंश के आखिरी राजा कनाल की बलि उनके गढ में ही चढाने के बाद मिथिला की राजधानी पर दूसाध जाति के राजा सलहेस का राज स्थापित हुआ। लेकिन बाकी जनपदों में क्षत्रप खुद को राजा घोषित कर दिये। 
जनक राजवंश के नाश होने के बाद पडोसी राज्यों की मजबूत सेना और जनता में स्वीकार्यता के अभाव में मिथिला के विभिन्न क्षत्रपों के बीच इस बात को लेकर सहमति बनी कि एक संघ बनाया जाये। 

जिसमें जनपदों का अधिकार एक सदस्य के रूप में हो और एक निश्चितकाल खंड पर लगान का हिसाब दिया जाये। इस संघ का नाम लिच्छवी रखा गया और सबसे बडा और प्रभावी जनपद के रूप में मिथिला इस संघ शामिल हुआ। जनपदों में से संघ के राजा का चुनाव का अधिकार जनता को दिया गया। यह पहला मौका था जब जनता को यह अधिकार मिला था कि वो जनपदों में से किसी एक क्षत्रप को अपना राजा चुन सके। 

ईसा पूर्व 57 साल पहले बने इस संघ के पहले राजा बने धर्मपाल भूमिवर्मा विक्रमादित्य। लिच्छवी गणराज्य की शासन प्रणाली को समयावधि के अनुकूल चलाने के लिए एक पंचांग का निर्माण किया गया। जिसमें सप्ताह के सात दिन और साल के 12 माह निर्धारित किये गये। यह गणतंत्र की सबसे पहली देन है। राजतंत्र में समय की कोई गणना नहीं थी, जबकि गणतंत्र में समय की गणना ही सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता हैं।

 इस तथ्य को गुजरात के खोजकर्ता पं. भगवान लाल इन्द्रजी ने भी सही ठहराया है।
लिच्छवी गणराज्य का गठन और पतन कई बार हुआ। जनपद जुडते रहे और अलग होते रहे। 


करीब 800 वर्षों तक यह व्यवस्था कायम रही। इसके बावजूद कहा जा सकता है कि लिच्छवी गणराज्य एक सफल प्रयोग नहीं रहा, बावजूद इसके इसने न केवल विश्व को गणतंत्र दिया, बल्कि एक कलेंडर भी दिया, जिसे हम बिक्रम संवत के नाम से जानते हैं...
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