मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

फतेहपुर - महिलाओं की जागरूकता से भागा H.I.V एड्स

✍ GAURAV SINGH GAUTAM 

(Editor in chief www.aatmgauravnews.com)

फतेहपुर - वर्ष 2005 में नेहरू युवा संगठन टीसी को जनपद फ़तेहपुर के विकास खंड भिटौरा के एक गाँव में अपने एक स्वस्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्थ कैंप के आयोजन के समय एक विचित्र तरह की बीमारी का पता चला । 
संस्था ने प्रभावित लोगो का परीक्षण करवाया तो पता चला की यह तो लाइलाज बीमारी एड्स है। जो अब तक 52 लोगो में फैल चुका है । कारण पता करने पर पता चला की यहाँ की 80 प्रतिशत युवा मुंबई में जीविकोपार्जन हेतु विभिन्न तरह के कार्य करते है । यह बीमारी इनके दुर्व्यसनों के कारण वहां से लेकर अपने परिवारिजनों मे बाँट रहें है । जिनमें गंभीर रूप से ग्रसित महिलाये और बच्चे भी शामिल हैं । 
संस्था ने जिले से लेकर राष्ट्र स्तर तक के स्वस्थ एवं इनसे जुड़ी संस्थाओं को इस प्रकरण से अवगत कराया लेकिन किसी ने भी शुद्ध नहीं ली । जिला स्वास्थ्य विभाग भी संस्था प्रतिनिधियों के संघर्ष के बाद मात्र दो कैंप करके इतिश्री करली । 
संस्था के लिए यह जटिल और चुनौतीपूर्ण होता जा रहा था । वर्ष 2008 तक HIV पजिटिव की  17 मरीजों की मौतें हो चुकी थी ।

तब संस्था ने अपने ही श्लोगन 

"एड्स का ज्ञान - बचाये जान" 



को सार्थक करने हेतु लोगो को जागरूक करने हेतु दीवार लेखन, जागरूकता कैंप , हैंड बिल्स का वितरण , घर घर जाकर परामर्श आदि तरीको से गाँव वालों के मध्य जागरूकता प्रसार कार्य शुरू किया और पीड़ितों को वीसीटीसी सेंटर फ़तेहपुर , ART सेंटर कानपुर से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू करदी। 
ज्ञान स्वरूपा आंगनवाड़ी को मुख्य भूमिका मे रख अभियान को गति दी गई । 
गाँव के प्रधान एवं पंचायत सदस्यों को निगरानी एवं सलाहकार के रूप में रख कर महिलों के स्वास्थ्य समूह गठित कर मासिक समीक्षा का कार्य संस्था ने करना शुरू कर दिया । महिला स्वास्थ्य समूह की पीड़ित अनीता एवं विद्या जिन्होंने क्रमश: अपना पति और जेठ खोया था ने अभियान को तेज गति दी महिलों को इस बात के लिए राजी कर लिया की पति जब परदेश से आए तो पहले एचआईवी की जांच कराये। संतुष्ट होने पर ही साथ सुलाएँ । 
कार्य कठिन था लेकिन जीवन बचाने की कीमत पर सभी पतियों को करना पड़ा। 
इन सारी प्रक्रियाओं का सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा की अभियान की चर्चा इस ग्राम युवा जिन जिन शहरों में कार्य करते थे बात वहां तक पहुँच गई और अभियान के प्रभाव से वहाँ रहने वाले बुजुर्ग कामगार नवयुवकों को रेड लाइट एरिया में जाने से रोकने में सफल होनें लगे । 
रोग से ग्रसित होने के उपरांत हुई मौतों का उदाहरण तथा गाँव जाकर जांच करने के झंझट ने अच्छा प्रभाव डाला । परिणामत: अभियान संचालन के बाद कोई नया केश दर्ज नहीं हुआ । 

वर्ष 2010 तक इस बीमारी से ग्रसित मात्र 10 लोग ही बचे । जिनका इलाज आज भी एआरटी सेंटर कानपुर एवं मुंबई में हो रहा है। 
संस्था अपने इस प्रभावी अभियान की सफलता के लिया संस्था प्रमुख राजेन्द्र प्रसाद साहू तथा टीम के सुधा तिवारी, रमेशचन्द्र , नाजनी बानों तथा आगनबाड़ी ज्ञान स्वरूपा, आशा बहू करुणा देवी, ग्राम प्रधान धनराज सिंह, पूर्व प्रधान कल्लू सिंह, जितेंद्र कुमार सिंह , सहयोगी संस्था के प्रतिनिधि जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव , अमरनाथ सिंह को बहुत बहुत धन्यवाद व आभार के पात्र हैं ।
जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से इस लाइलाज बीमारी एड्स के प्रति लोगो को जागरूक कर असामयिक मौतों से बचाया है । 

इस तरह चला अभियान

- एड्स के बचाव के लिए स्लोगन लिखाए गए
- महिलाओं के समूह बनाकर बचाव के उपाय बताए गए
- शिविर लगाकर साल में दो बार जांच कराई गई
- महिलाओं ने बिना जांच रिपोर्ट के पुरूषों से बनाई दूरी
- बुजुर्ग भी आगे आए और बाहर जाने वाले युवाओं को दी सीख
- जो बीमार थे उनके साथ व्यवहार का सीखा तरीका
- संस्था व विभाग से बराबर बनाए रखा संपर्क, चलता रहा अभियान
- परदेश बाबूओं का भी समूह बनाकर किया गया जागरूक ।


नेहरू युवा संगठन संस्था के प्रमुख राजेंद्र राज साहू जी




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